Bihar News: पिंडदान करने गया पहुंच रहे लाखों लोग, भूतों के पहाड़ पर तीर्थयात्रियों का जमावड़ा

गया में पितृपक्ष मेले की धूम दिखाई दे रही है. देश के अलग-अलग कोने से तीर्थयात्री यहां पहुंच रहे हैं. हालांकि गया जी में तमाम वेदियों पर तीर्थयात्री पिंडदान के लिए आते हैं, लेकिन इस सब में प्रेत पर्वत जिसे भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है उसका अलग महत्व

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Jatin Madan
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पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान.( Photo Credit : News State Bihar Jharakhand)

गया में पितृपक्ष मेले की धूम दिखाई दे रही है. देश के अलग-अलग कोने से तीर्थयात्री यहां पहुंच रहे हैं. हालांकि गया जी में तमाम वेदियों पर तीर्थयात्री पिंडदान के लिए आते हैं, लेकिन इस सब में प्रेत पर्वत जिसे भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है उसका अलग महत्व है. ये पितृपक्ष मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा. मेले के तीसरे दिन यानि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रेतशिला, ब्रह्मा कुंड, राम कुंड, रामशिला और कागबली पर श्राद्ध करने का विधान है. इन वेदियों की अपनी अपनी महता है. इन्हीं वेदियों में से एक प्रेतशिला है, जो गयाजी विष्णु पद से करीब 8 मील की दूरी पर स्थित है. इसका पूरा नाम प्रेत पर्वत है. इसे भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. मान्यता है कि अकाल मृत्यु से परलोक सिधारने वाले गया जी में स्थित मुख्य वेदियों में से एक प्रेतशिला पिंडवेदी में निवास करते हैं.

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पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान

प्रेतशिला पर्वत के नीचे ब्रह्म कुंड स्थित है. ब्रह्म कुंड से लगभग 400 सीढियां चढ़कर प्रेतशिला यानि कि प्रेत पर्वत पहुंचते हैं. यहां अकाल मृत्यु से मरने वालों के नाम से पिंडदान करने पर आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया जी की मुख्य वेदियों में से एक प्रेतशिला के चट्टानों में छिद्र है. कहा जाता है, कि इन छिद्रों में प्रेत आत्मा वास करते हैं. यहां जब तीर्थ यात्री अपने पितर को प्रेत आत्मा से मुक्ति दिलाने के लिए पिंडदान करते हैं. तो छिद्र से पितर पिंडदान ग्रहण कर लेते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. मान्यता ये भी है कि संध्या के बाद यहां कोई नहीं रहता. क्योंकि संध्या के समय प्रेतशिला पर प्रेतों के भगवान आते हैं. इसी वजह से प्रेतशिला वेदी में पितरों के पिंडदान का विधान है.

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भूतों के पहाड़ पर तीर्थयात्रियों का जमावड़ा

पितरों को अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाने के लिए यहां पहाड़ पर सत्तू उड़ाने का भी प्रचलन है. इस मान्यता के पीछे ये तर्क दिया जाता है कि अकाल मृत्यु में सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है और पिंडदान के बाद ही इसका सेवन किया जाता है. इसी मानयता को लेकर तीर्थयात्री प्रेतशिला पर सतू उड़ाते हैं. इससे अकाल मृत्यु वाले पितर आत्मा अपने वंश परिवार को आशीर्वाद देते हैं और प्रसन्न होकर स्वर्गलोक को जाते हैं. गया में लगने वाला पितृपक्ष मेले की शुरूआत 28 सितंबर से ही शुरू हो गई है. हर बार की तरह इस बार भी तीर्थयात्री देश के कोने-कोने से पितरों के पिंडदान के लिए गया जी पहुंच रहे हैं. इस बार मेले में 10 लाख से ज्यादा तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है. ऐसे में शासन-प्रशासन ने भी चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं.

रिपोर्ट : अभिषेक कुमार

HIGHLIGHTS

  • पितृपक्ष मेले में हो रहा पिंडदान
  • पिंडदान करने पूरे देश के पहुंच रहे लोग
  • पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान
  • भूतों के पहाड़ पर तीर्थयात्रियों का जमावड़ा

Source : News State Bihar Jharkhand

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