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जानिए कौन हैं छठी मैया, क्यों दिया जाता है सूर्य देव को अर्घ्य

नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है और अगले चार दिनों तक इसकी धूम रहती है. छठ पर्व के दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

Updated on: 30 Oct 2022, 10:35 AM

highlights

. छठी मैया ब्रह्माजी की हैं मानस पुत्री
. देवी प्रत्युषा की होती है उपासना 
. नींबू का शरबत पीकर तोड़ती हैं व्रत

Patna:

छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है. आज व्रती पहला अर्घ्य भगवान भास्कर को देंगी. कल जहां खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद उनका निर्जला उपवास शरू हो गया. नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है और अगले चार दिनों तक इसकी धूम रहती है. इस व्रत को संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है. छठ पर्व के दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ पर्व को लेकर सभी घाटों को सजा दिया गया है. साथ ही साथ प्रशासन ने पुख्ता इंतेजाम कर रखा है. ताकि छठ व्रतियों को कोई तकलीफ ना हो. 

कौन है छठी मैया 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं. ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब उन्होंने अपने आपको दो भागों में बांट दिया था. ब्रह्माजी का दायां भाग पुरुष और बांया भाग प्रकृति के रूप में सामने आया. प्रकृति देवी ने सृष्टि के लिए अपने आपको छह भागों में विभाजित कर दिया और छठा अंश षष्ठी देवी के नाम से जाना गया, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है. छठी मैया बच्चों की सुरक्षा, आरोग्य और सफलता का आशीर्वाद देती हैं. जब बच्चे का जन्म होता है तब छठवें दिन इन्हीं मैया की पूजा की जाती है.

देवी प्रत्युषा की होती है उपासना 

मान्यता है कि सायंकाल के समय सूर्य अपने पत्नी देवी प्रत्युषा के साथ समय व्यतीत करते हैं. इसी कारण शाम के समय छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देते समय देवी प्रत्युषा की उपासना की जाती है. ऐसा करने से व्रत की मनोकामना जल्द ही पूर्ण हो जाती है. यह भी माना जाता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और जीवन की कई समस्याओं से राहत मिलती है. साथ ही रोगों से भी मुक्ति मिलती है.

सूर्य देवता को जल और दूध करते हैं अर्पित 

कार्तिक मास की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर इस व्रत का समापन होता है. घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए व्रती के साथ पूरा परिवार पहुंचता है और सूर्य आराधना करता है. अर्घ्य में लोग सूर्य देवता को जल और दूध अर्पित करते हैं. इसके बाद चीनी और नींबू का शरबत पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं, फिर अन्न ग्रहण करती हैं.