जानिए क्या है महापर्व छठ के 'अरता पात' का खास महत्व, मुस्लिम परिवार की भी जुड़ी है आस्था
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा में अब कुछ ही दिन रह गए हैं. छठ पूजा को लेकर लोग तैयारी भी शुरू कर दिए है.
highlights
- महापर्व छठ के 'अरता पात' का खास महत्व
- 17 नवंबर से होगी छठ पूजा की शुरुआत
- छठ पूजा को लेकर बिहार में तैयारी तेज
Chapra:
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा में अब कुछ ही दिन रह गए हैं. छठ पूजा को लेकर लोग तैयारी भी शुरू कर दिए है. कहीं घाट को लेकर लोग तैयारी में जुटे हुए हैं तो कहीं पूजन की सामग्री जुटाने में लोग व्यस्त है. बिहार से कोसों दूर देश के कोने-कोने में बैठे लोग भी घर पहुंचने लगे है. बजार में छठ पूजा को लेकर तैयारियां भी जोरो से चल रही है. वहीं, छठ महापर्व में कुछ महत्वपूर्ण सामग्री होती है, जिनका लोग खास ध्यान रखते हैं और कुछ नियमों का भी पालन करना जरूरी होता है. छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता की पूजा की जाती है. इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का कठिन उपासना रख कर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं.
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जानिए क्या है अरता पात का खास महत्व
छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली कुछ महत्वपूर्ण सामग्रियों में अरता-पात भी शामिल है जिसकी जरूरत पड़ती है. इसे बनाने की प्रक्रिया नहीं सिर्फ जटिल है, बल्कि इसमें शुद्धता का भी खास ख्याल रखा जाता है. छपरा के गरखा प्रखंड के सैदपुर झौवा गांव में छठ पूजा के लिए बना अरता-पात लगातार कई दशकों से बनाया जा रहा है. जहां से बिहार के बाजारों के अलावा दिल्ली, मुंबई आदि शहरों में अरता-पात पहुंचता है. इसे गांव के हिंदू, मुस्लिम सभी परिवार शुद्धता से घरों में तैयार करते है. जिसके बाद जिले और प्रदेश के व्यवापारी इसे खरीद कर ले जाते है. अरता का पात तैयार करने में अकवन का रुई का प्रयोग होता है, जो इंसान के शरीर के लिए काफी हानिकारक होता है. इस वजह से इस गांव के कई लोग टीबी से ग्रसित हो चुके है. इसके बावजूद इस गांव के परिवार हर साल आरता का पात तैयार करते है.
17 नवंबर से होगी छठ पूजा की शुरुआत
दीपावली के छह दिन बाद यानि 17 नवंबर से छठ पूजा शुरू होगी और 20 नवंबर इसका समापन होगा. लोकआस्था का यह महापर्व पूरे बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा का महत्व एक बिहारियों से अगर पूछा जाए तो उनके अनुसार छठ पूजा एक पर्व नहीं बल्कि आस्था है. पटना में भी तैयारी धूमधाम से चल रही है. चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत नहा खाय से होती है. जिसके अगले दिन खरना तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देते है और अगले दिन उगते सूर्य को प्रार्थना कर प्रसाद और अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद व्रत का पारन यानि समापन होता है.
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