कटिहार गोलीकांड: SP और DGP पर भी दर्ज हो सकती है FIR, जानिए-क्या है आम आदमी का अधिकार?
एक पुलिसकर्मी दूसरे पुलिसकर्मी के खिलाफ पहले तो एफ.आई.आर. नहीं दर्ज करेगा और अगर दर्ज भी कर लेगा तो विवेचना के दौरान उसका नाम निकालकर उसे क्लीन चिट दे देगा.
highlights
- 156 (3) Cr.P.C. के दाखिल करनी होगी याचिका
- जिले के CJM कोर्ट में दाखिल करनी होती है याचिका
- कोर्ट के आदेश पर पुलिस को दर्ज करना पड़ता है FIR
Katihar:
कटिहार गोलीकांड में पुलिस की गोली से दो लोगों की मौत हुई है. हालांकि, एसपी द्वारा बार-बार बयान बदला जा रहा है. पहले एसपी कहते हैं कि पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में गोली चलाई गई थी जो प्रदर्शनकारियों को लगी और अब कह रहे हैं कि पुलिस की गोली से किसी भी प्रदर्शनकारी की मौत नहीं हुई है. इतना ही नहीं एसपी ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि एक शख्स ने ही दोनों लोगों को गोली मारी है और सीसीटीवी फुटेज भी जारी किया है. हालांकि, सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे शख्स के पास किसी भी प्रकार का हथियार नहीं दिखाई देता. एसपी के ताजा बयान के मुताबिक, शख्स द्वारा गोली मारी गई और तुरंत वह संभलकर भीड़ में शामिल हो जाता है. कटिहार गोलीकांड मामले में पुलिस द्वारा 42 नामजद और 1200 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की गई है.
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अब आम आदमी अगर एफआईआर दर्ज कराने जाएगा वो भी पुलिस के खिलाफ तो शायद ही एफआईआर दर्ज होगी. जिन दो प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है उनकी तरफ से भी आवेदन अगर पुलिस के समक्ष दिया जाएगा तो भी पुलिस जांच करने का बहाना कहकर बात टालती रहेगी और एफ.आई.आर. नहीं दर्ज करेगी. क्योंकि, चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं और यही बात पुलिस पर भी लागू होती है. एक पुलिसकर्मी दूसरे पुलिसकर्मी के खिलाफ पहले तो एफ.आई.आर. नहीं दर्ज करेगा और अगर दर्ज भी कर लेगा तो विवेचना के दौरान उसका नाम निकालकर उसे क्लीन चिट दे देगा.
156 (3) Cr.P.C. का इस्तेमाल करें
कानून की किताब में यह भी प्रावधान है कि अगर पुलिस आपकी एफ.आई.आर. नहीं दर्ज कर रही है तो कोर्ट आपके लिए खुला है. आप संबंधित न्यायालय में पुलिस के खिलाफ याचिका दाखिल कर सकते हैं. पुलिस के खिलाफ अधिकतर मामले मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट (CJM) की कोर्ट में दाखिल की जाती है. Cr.P.C. की धारा 156 (3) में ये प्रावधान है कि याचिका में आम आदमी, SHO, CO, SP, DIG, IG, ADG, DGP तक को आरोपी बना सकता है. परिवाद दाखिल करने के बाद कोर्ट की कार्रवाई आगे बढ़ती है.
Cr.P.C. 200 के तहत परिवादी का दर्ज होता है बयान
Cr.P.C. 156 (3) के तहत दाखिल किए गए परिवाद में सबसे पहले कोर्ट आपकी याचिका पर सुनवाई करने को तैयार होता है और अगली डेट देता है. अगली डेट पर Cr.P.C. 200 के तहत परिवादी अपना बयान न्यायालय के समक्ष दर्ज कराता है. Cr.P.C. 200 का बयान खुद जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) दर्ज करते हैं और पीड़ित द्वारा कही गई एक - एक बात खुद अपने हाथ से लिखते हैं.
Cr.P.C. 202 के तहत साक्षियों का दर्ज होता है बयान
Cr.P.C. 156 (3) के तहत दाखिल किए गए परिवाद में दूसरे स्टेप ये होता है कि Cr.P.C. 200 के तहत बयान दर्ज करने के बाद अगली डेट पर Cr.P.C. 202 के तहत घटना अथवा मामले से जुड़े साक्षियों का बयान लिया जाता है. जो घटना की तस्दीक करते हैं और तस्दीक पीड़ित के पक्ष में करते हैं. यानि की गवाहों की गवाही होती है, जिसे पेशकार द्वारा दर्ज किया जाता है. Cr.P.C. 202 के तहत ही घटना अथवा मामले से जुड़े सारे सबूतों को परिवार का हिस्सा बनाया जाता है.
कोर्ट क्या करता है ऑर्डर?
परिवादी के बयान, साक्षियों के बयान, घटना अथवा मामले से जुड़े दूसरे साक्ष्यों को देखते हुए कोर्ट अपना फैसला सुनाती है. कोर्ट को लगता है कि मामले की विवेचना पुलिस को सौंपने से विवेचना अच्छे से होगी तो उस मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देती है. परिवादी जिस-जिस के खिलाफ सबूत न्यायालय में दिया गया रहेगा उन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश कोर्ट देती है. कोर्ट के आदेश पर मजबूरन पुलिस को एफ.आई.आर. दर्ज करना पड़ता है. इसके अलावा कोर्ट परिवाद को कंप्लेन के रूप में भी दर्ज करती है. कंप्लेन के रूप में परिवाद के दर्ज होने पर पुलिस के हाथ में कुछ नहीं रहता. कोर्ट जब जिसकी जरूरत समझती है उसे तलब कर लेती है. गुण दोष के आधार पर कोर्ट ट्रायल पूरा होने के बाद दोषियों को सजा देती है और निर्दोष लोगों को बरी कर देती है.
कुल मिलाकर Cr.P.C. 156(3) कानून के किताब की वह धारा है जो एक आम आदमी को ये अधिकार देता है कि अगर उसके पास साक्ष्य है तो बड़े से बड़े पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोर्ट के आदेश पर मुकदमा दर्ज करवा सकता है.
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