logo-image

जयंती विशेष: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की कहानी, दल बदलने में थे माहिर, चारा घोटाले में भी आया नाम

बड़े भाई ललित नारायण की 3 जनवरी 1975 को हत्या के बाद इंदिरा गांधी ने जगन्नाथ मिश्रा को 11 अप्रैल 1975 को पहली बार बिहार की मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठने का मौका दिया. उस वक्त ललित नारायण पूरे देश में सबसे युवा मुख्यमंत्री थे.

Updated on: 24 Jun 2023, 09:24 PM

highlights

  • बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की कहानी
  • तीन बार रह चुके हैं बिहार के मुख्यमंत्री
  • दल बदलने में माहिर थे जगन्नाथ मिश्रा
  • चर्चित चारा घोटाले में भी आया था मिश्रा का नाम

Patna:

बिहार की धरती राजनीतिक सूरमाओं की धरमी मानी जाती है. यहां के सूरमाओं में एक सूरमा का नाम था जगन्नाथ मिश्रा. मिश्रा बिहार के एक बार नहीं दो बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. एक तरफ जगन्नाथ मिश्रा का लगातार कद बढ़ता रहा तो दूसरी तरफ दलबदलू रवैया होने के कारण बदलते समय के साथ पतन भी हुआ. नेपाल से सटे बिहार के सुपौल जिले के बलुआ बाजार में 24 जून 1937 में जन्में डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा का परिवार खानदानी कांग्रेसी रहा है. जगन्नाथ मिश्रा के बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा अपने दौर में कांग्रेस के दिग्गज चेहरा रहे.

03 जनवरी 1975 को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बतौर रेलमंत्री पहुंचे ललित नारायण मिश्रा को बम मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी. आजाद भारत में यह पहला मामला था जब किसी केंद्रीय मंत्री की हत्या हुई थी. हालांकि इस दौर तक ललित नारायण ने अपने छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा को राजनीति में स्थापित करा दिया था. छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे जगन्नाथ मिश्रा ने उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद बिहार में अर्थशास्त्र के प्रफेसर के रूप में कॅरिअर शुरू किया, लेकिन इसमें उनका ज्यादा मन नहीं लगा और वे कांग्रेस पार्टी के जरिए चुनावी राजनीति में आ गए.

  • बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की कहानी
  • विरासत में मिली थी राजनीति
  • दल बदलने में माहिर थे जगन्नाथ मिश्रा
  • जगन्नाथ मिश्रा के शासनकाल में ही पड़ गई थी चारा घोटाले के नींव
  • जीवनभर रहे कांग्रेस, अंत में लगातार बदले दल

बड़े भाई ललित नारायण की 3 जनवरी 1975 को हत्या के बाद इंदिरा गांधी ने जगन्नाथ मिश्रा को 11 अप्रैल 1975 को पहली बार बिहार की मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठने का मौका दिया. उस वक्त ललित नारायण पूरे देश में सबसे युवा मुख्यमंत्री थे. उस वक्त उनकी उम्र केवल 38 साल थी. जगन्नाथ मिश्रा को सीएम की कुर्सी तो मिल गई थी लेकिन यह कांग्रेस के लिए बेहद कठिन वक्त था. बिहार में मार्च 1974 से छात्र आंदोलन जो बाद में जेपी आंदोलन कहलाया शुरू हो चुका था. डॉ. जगन्नाथ मिश्रा बिहार की सियासत में दो दशक तक कद्दावर चेहरा बनकर रहे. मिश्रा को विरासत में सियासत मिली थी. उन्होंने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा के नक्से पर चलते हुए कांग्रेस से अपनी सियासी सफर का आगाज किया, लेकिन वक्त के साथ वो बदलते गए और बिहार की सियासत में अपनी जगह भी खोते गए.

  • ललित नारायण मिश्रा ने तैयार कर दिया था जगन्नाथ के लिए सियासी मैदान
  • भाई की हत्या के  बाद पहले बार बने थे बिहार के सीएम

जगन्नाथ मिश्रा लंबे समय तक कांग्रेस में रहे. वे खानदानी कांग्रेसी थे. जगन्नाथ मिश्रा अपने बड़े के भाई नक्शे कदम पर चलते हुए छात्र जीवन में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए थे. बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे मिश्र ने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्र से राजनीति का ककहरा सीखा था. जगन्नाथ मिश्रा ने शिक्षा पूरी करने के बाद प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया था और बाद में बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने. अकादमिक क्षेत्र में रहते हुए भी जगन्नाथ मिश्रा राजनीति में सक्रीय रहे.

जगन्नाथ मिश्रा ने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा की सियासत को आगे बढ़ाया. यही वो दौर था जब जगन्नाथ मिश्रा को प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और राजनीति के केंद्र में आ गए. वे तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. जगन्नाथ मिश्रा 1975 से 1977 तक मुख्यमंत्री रहे. जगन्नाथ मिश्रा को सीएम पद संभाले हुए करीब दो साल ही हुए थे कि केंद्र में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी की सरकार आ गई. केंद्र की जनता पार्टी सरकार ने बिहार की सरकार को बर्खास्त कर यहां राष्ट्रपति शासन लगा दी, जिसके चलते जगन्नाथ मिश्रा को 30 अप्रैल, 1977 को सीएम कुर्सी से हटना पड़ा. उसके बाद 1980 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की दोबारा केंद्र की सत्ता में काबिज होने के बाद जगन्नाथ मिश्रा को भी एक बार फिर से बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. दूसरी बार 8 जून 1980 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 14 अगस्त 1983 को पद छोड़ना पड़ा.

  • उस समय देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे जगन्नाथ मिश्रा
  • जेपी आंदोलन ने जगन्नाथ की बढ़ाई थीं मुश्किलें

 

जगन्नाथ मिश्रा को ऐसे वक्त पर सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा जब वह 15 अगस्त को झंडातोलन की तैयारी में जुटे थे. तीसरी बार जगन्नाथ मिश्रा को 1989 से 1990 तक बिहार का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. इसके बाद 1990 के दशक के मध्य में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहे. जगन्नाथ बिहार के आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे. बिहार में जगन्नाथ मिश्र का नाम बड़े नेताओं के तौर पर जाना जाता है. मिश्रा के बाद कांग्रेस का कोई भी नेता बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बन सका. 90 के दशक में कांग्रेस कमजोर होने लगी तो जगन्नाथ मिश्रा ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी का दामन थाम लिया. हालांकि कांग्रेस में रहते हुए जो उनका राजनीतिक कद था, उसे वो चारा घोटाला में नाम आने के बाद दोबारा हासिल नहीं कर सके. हालांकि जगन्नाथ मिश्रा अपने सियासी वर्चस्व को दोबारा से पाने के लिए कई राजनीतिक दांवपेच आजमाए, लेकिन वो किसी में कामयाब नहीं हो सके. 1990 के बाद बिहार में कांग्रेस का पतन देखकर जगन्नाथ मिश्रा विभिन्न दलों में पाला बदलते रहे.

  • चारा घोटाले में नाम आने के बाद बिगड़ी जगन्नाथ मिश्रा की छवि
  • एनसीपी में भी रहे और अंत में थामा बीजेपी का दामन

1996 में चारा घोटाला में नाम आने के बाद कांग्रेस के अंदर भी उनकी छवि धूमिल हुई. इसके बाद जगन्नाथ मिश्रा सोनिया गांधी के विरोध में बनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी कुछ दिन रहे. 2005 से 2010 तक जगन्नाथ मिश्रा बेटे नीतीश मिश्रा के साथ जेडीयू में रहे. नीतीश कुमार ने भी अपनी सरकार में नीतीश मिश्रा को कैबिनेट मंत्री बनाया. चारा घोटाला में पूरी तरह फंसने के बाद जगन्नाथ मिश्रा आखिरी वर्षों में बीजेपी में चले गए. इस तरह एक खानदानी कांग्रेसी नेता भाजपाई बनकर इस दुनिया से विदा हुआ.

लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा के बीच एक और दिलचस्प समानता है. माना जाता है कि जगन्नाथ मिश्रा के मुख्यमंत्री काल में ही बिहार में चारा घोटाला शुरू हो चुका था, जिसे लालू यादव ने अपने शासन काल में अनवरत जारी रखा. चारा घोटाला मामले में दोनों नेता दोषी ठहराए गए और जेल की सजा काटी. इसके बाद भी दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत रिश्ते अच्छे रहे. दोनों नेताओं के बच्चों की शादी ब्याह समेत अन्य घरेलू कार्यक्रमों में दोनों का परिवार बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा.

  • आपातकाल के समय इंदिरा गांधी को करना चाहते थे ‘खुश’
  • ‘कलम के सिपाहियों’ पर लगाम भी लगाने का किया प्रयास
  • प्रेस बिल पास कराकर पत्रकारों को भेजा जेल

जगन्नाथ मिश्रा बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रेस की आजादी पर भी लगाम लगाने का पूरा प्रयास किया था. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने जब पूरे देश में आपातकाल लगा दिया था तब जगन्नाथ मिश्रा ने जुलाई 1982 में उन्हें खुश करने के लिए बिहार विधानसभा में बिहार प्रेस बिल पास कराया था. बिल पास होने के बाद बिहार के उन पत्रकारों को जेल में डाल दिया जाता जो सरकार के खिलाफ खबरें लिखते. इस बिल का पूरे देश में विरोध हुआ था. इसके विरोध में कई अखबारों और मैगजीन ने अपने एडिशन बंद कर दिये थे. केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा और यह बिल समाप्त कर दिया गया.