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वो नेता जिसने बचपन में ही छुआछूत के खिलाफ उठाई थी आवाज, इंदिरा गांधी के हो गए थे खिलाफ

आम छात्रों से अलग मटके से पानी पीने पर मटका फोड़कर विरोध दर्ज किया. जब कॉलेज में थे तो नाई ने बाल काटने से मना कर दिया, तब भेदभाव के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया. हम बात कर रहे हैं बिहार में पले-बढ़े कद्दावर दलित नेता रहे बाबू जगजीवन राम की.

Updated on: 03 Aug 2022, 04:07 PM

Patna:

भारत को आजादी दिलाने में अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी आहुति दे दी थी. हस्ते-हस्ते अपने प्राण निछावर कर दिए, लेकिन आज हम उसकी बात करेंगे जिसने स्कूल में छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई. आम छात्रों से अलग मटके से पानी पीने पर मटका फोड़कर विरोध दर्ज किया. जब कॉलेज में थे तो नाई ने बाल काटने से मना कर दिया, तब भेदभाव के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया. हम बात कर रहे हैं बिहार में पले-बढ़े कद्दावर दलित नेता रहे बाबू जगजीवन राम की. जिन्होंने बांग्लादेश के निर्माण के समय रक्षा मंत्री रहते हुए पाकिस्‍तान के दांत खट्टे कर दिए थे, तो बतौर कृषि मंत्री पहली हरित क्रांति को साकार किया था.

नाई ने जब बाल काटने से कर दिया था इंकार 

जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार के आरा में एक दलित परिवार में हुआ था. बचपन से ही छुआछूत और सामाजिक भेदभाव का उन्हें शिकार होना पड़ा था. बिहार के आरा के  जिस स्कूल में वे पढ़ते थे, वहां दलित छात्रों के पानी पीने के लिए अलग मटका रखा गया था. उन्‍होंने इसका विरोध मटका फोड़कर किया था . 1931 में उन्‍होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया, लेकिन भेदभाव से यहां भी उनका पीछा नहीं छूटा. यहां तक कि नाई ने उनके बाल काटने से इनकार कर दिया. जगजीवन राम ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. हालांकि, भेदभाव के कारण उन्‍होंने बीएचयू को छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया था.

संघर्षों से भरा रहा उनका जीवन 

दलितों के मसीहा माने जाने वाले बाबू जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन संघर्ष भरा रहा. वर्ष 1931 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गए. उन्होंने वर्ष 1934-35 में अखिल भारतीय शोषित वर्ग लीग की नींव रखने में अहम योगदान दिया था. यह संगठन अछूतों को समानता का अधिकार दिलाने हेतु समर्पित था. उन्होंने हिंदू महासभा के एक सत्र में प्रस्ताव रखा कि पीने के पानी के कुएं और मंदिर अछूतों के लिए खुले रखे जाएं. पहली बार दलितों के लिये मतदान के अधिकार की मांग उन्होंने ने ही की थी. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था. 

रक्षा मंत्री रहते बांग्लादेश का निर्माण किया 

बाबू जगजीवन राम वर्ष 1946 में जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे युवा मंत्री बने. वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री थे, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था. वर्ष 1936-1986 (40 वर्ष) तक संसद में उनका निरंतर प्रतिनिधित्व एक विश्व रिकॉर्ड है. उनका भारत में सबसे लंबे समय तक सेवारत कैबिनेट मंत्री होने का भी रिकॉर्ड है.

उनकी पत्नी को मंदिर में जाने की नहीं थी अनुमति

उन दिनों धार्मिक स्थलों में दलितों के जाने पर रोक थी. जननेता होने की वजह से उनको तो जगन्नाथ पुरी मंदिर में जाने की अनुमति दी दी गई, लेकिन उनकी पत्नी समेत और लोगों को अनुमति नहीं मिली.  इसलिए जगजीवन राम ने भी मंदिर में प्रवेश करने से इनकार कर दिया था. उनकी पत्नी इंद्राणी ने अपनी डायरी में इस घटना का उल्लेख किया था. 

अमेरिका जाने का मिला था मौका लेकिन मां ने  ठुकरा दिया

मीरा कुमार उनकी बेटी हैं. जो यूपीए के शासनकाल में लोकसभा की अध्यक्ष रह चुकी हैं. उन्होंने अपने पिता के जीवन का एक दिलचस्प किस्सा सुनाया. 10वीं क्लास में जगजीवन राम फर्स्ट डिविजन से पास हुए थे. आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. उनकी माताजी स्थानीय नन के पास मदद के लिए पहुंचीं. नन ने सिर्फ लखनऊ स्थित अपने क्रिस्चन स्कूल में उनको मुफ्त पढ़ाई का ऑफर दिया बल्कि उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका भेजने का भी वादा किया. उन दिनों इस तरह के ऑफर को ठुकराना बहुत मुश्किल था, लेकिन उनकी माताजी ने उस ऑफर को ठुकरा दिया. उन्होंने ननों से कहा, 'आप मेरे बच्चों को तो पढ़ाओगी लेकिन उसका धर्म भी बदल दोगी. 

इंदिरा गांधी के हो गए थे खिलाफ 

जगजीवन राम एक योद्धा की तरह थे. उन्होंने जिंदगी में कभी भी हार नहीं मानी. जब वह रक्षा मंत्री थे तब भारत ने 1971 का युद्ध जीता और बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र का जन्म हुआ. जब वह भारत के कृषि मंत्री थे तो देश में हरित क्रांति आई. वह कांग्रेस के पक्के वफादार लीडर थे, लेकिन जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो वह इसके खिलाफ हो गए .