Diwali 2023: बिहार के इस गांव में दिवाली के बाद मनाया जाता है दीपोत्सव, हिंदू-मुस्लिम मिलकर करते हैं पूजा
देश में हर तरफ दिवाली के त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. बाजार सज गए हैं, अब लोग धनतेरस की तैयारियों में जुटे हुए हैं. दिवाली के इस शुभ अवसर पर हम आपको बिहार के जमुई जिले के दो ऐसे गांवों के बारे में बताने जा रहे हैं.
highlights
- जमुई जिले के दो ऐसे गांव के बारे में जानकर हो जाएंगे हैरान
- दिवाली के बाद मनाया जाता है दीपोत्सव का त्योहार
- श्रद्धालुओं में होता है विशेष प्रसाद का वितरण
Jamui:
Diwali 2023: देश में हर तरफ दिवाली के त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. बाजार सज गए हैं, अब लोग धनतेरस की तैयारियों में जुटे हुए हैं. दिवाली के इस शुभ अवसर पर हम आपको बिहार के जमुई जिले के दो ऐसे गांवों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोग पूरे देश में दिवाली मनाने के बाद अगले दिन दीपोत्सव मनाते हैं. यह गांव है बरहट प्रखंड का गुग्गुलडीह और सिकंदरा प्रखंड का लछुआड़. यही परंपरा यहां सदियों से चली आ रही है. आज के लोग इसके पीछे का सही कारण तो नहीं जानते, लेकिन उनका कहना है कि, वे अपने पूर्वजों की परंपरा को निभा रहे हैं. इन गांवों में मां काली की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है. वहीं इसको लेकर पंडितों का कहना है कि, ''चतुर्दशी और अमावस्या के मौके पर मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इसके बाद अगले दिन दिवाली मनाई जाती है.'' इस साल दिवाली 13 नवंबर को मनाई जाएगी. साथ ही गुगुलडीह गांव के बुजुर्ग 105 वर्षीय हरिवंश पांडेय, 82 वर्षीय दूनो मंडल, 80 वर्षीय राजेंद्र पंडित और 70 वर्षीय परमानंद पांडेय ने इसको लेकर बताया कि, ''वह बचपन से ही दिवाली के अगले दिन वैदिक परंपरा के अनुसार दिवाली मनाते आ रहे हैं। गुग्गुलडीह में तीन सौ वर्षों से तांत्रिक विधि से काली मां की पूजा की जाती है.''
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श्रद्धालुओं में होता है विशेष प्रसाद का वितरण
इस गांव के रहने वाले बुजुर्गों ने इसको लेकर बताया कि, ''अपने पूर्वजों से सुना है कि धमना घराने के कुमार बैजनाथ सिंह ने इस परंपरा की शुरुआत की थी, यहां दक्षिणेश्वर काली हैं, उनकी पूजा के दिन भेड़, काढ़ा, पाठा, ईख आदि की बलि दी जाती है, इस स्थान पर प्रसाद बनाया जाता है और देवी मां को चढ़ाया जाता है. इसके बाद भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में चावल और मांस वितरित किया जाता है और बलि का काढ़ा जमीन में गाड़ दिया जाता है.''
मुस्लिम भी करते हैं मां की पूजा-अर्चना
आपको बता दें कि यहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूजा-अर्चना में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. वहीं मुस्लिम समुदाय के मो. गफ्फार सरदार, मो. सादिक, मो. खालिद ने इसको लेकर बताया कि, उनके पूर्वज मां काली की सेवा और पूजा में सहयोग करते आ रहे हैं. वे आज भी उसी परंपरा का पालन कर रहे हैं. पूजा की विधि अलग हो सकती है, लेकिन आस्था और विश्वास का भगवान एक ही है.''
वहीं आपको बता दें कि इसको लेकर गुगुलडीह पंचायत के मुखिया बलराम सिंह ने बताया कि, ''गांव की आबादी करीब 19 हजार है. पूरा गांव और हर धर्म के लोग एक साथ आकर मां काली की पूजा करते हैं. इसी तरह सिकंदरा प्रखंड के लछुआड़ में भी तंत्रोक्त विधि से किया जाता है.''
साथ ही पूजा समिति के अध्यक्ष राकेश वर्णवाल, सचिव मधुकर सिंह ने बताया कि, ''लछुआड़ में मां काली की प्रतिमा का निर्माण व पूजा-अर्चना लगभग चार शताब्दी पूर्व गिद्धौर राजवंश द्वारा शुरू की गयी थी, जो 20 वर्ष पूर्व तक लगातार जारी रही. अब इसका आयोजन स्थानीय स्तर की एक समिति करती है जिसका गठन गिद्धौर महाराज ने किया है.''
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