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BJP को ज्यादा सीटें मिलने पर NDA में बदलेगा सत्ता समीकरण

नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के समक्ष राज्य में सत्ता बरकरार रखने और सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर अपनी पार्टी की शीर्ष वरियता को बनाए रखने की दोहरी चुनौती है.

Updated on: 31 Oct 2020, 03:33 PM

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के समक्ष राज्य में सत्ता बरकरार रखने और सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर अपनी पार्टी की शीर्ष वरियता को बनाए रखने की दोहरी चुनौती है. इस सबके बीच उनके गृह जिले नालंदा सहित कुछ स्थानों पर एक बेचैनी की भावना दिख रही है. मुख्यमंत्री कुमार के चुनावी रैलियों में आने तक भीड़ को बांधे रखने की कोशिश करने वाले वक्ता पार्टी के पारंपरिक समर्थक दलितों और अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों से नीतीश पर विश्वास बनाए रखने की अपील करते देखा गया. इन नेताओं ने विपक्ष की बातों से ‘गुमराह’ न होने की भी अपील की है.

पारंपरिक मतदाताओं पर नजर
जदयू के वक्ताओं का यह आग्रह दिखाता है कि पार्टी की कोशिश है कि वह पारंपरिक मतदाताओं के आधार को नीतीश के इर्द-गिर्द समेटकर रखे. अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) में कई छोटी जातियां शामिल हैं और राज्य की आबादी का लगभग 28-30 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं का है. नीतीश सरकार ने पूर्व के वर्षों में विभिन्न पहल के जरिए इन्हें अपनी ओर आकर्षित किया है. हालांकि, कुछ अन्य जातियों की तरह ईबीसी राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं. इसके एक वर्ग ने पारंपरिक रूप से जदयू का समर्थन किया है. ऐसा ही ‘महादलितों’ के साथ भी है, जिनकी संख्या राज्य में दलितों में लगभग एक तिहाई है. ‘महादलित’ का इस्तेमाल पासवान के अलावा अन्य अनुसूचित जातियों के लिए किया जाता है.

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चुनाव में मंद पड़ी जादुई शक्ति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जदयू को जो अगड़ी जातियों का समर्थन हासिल था, उसमें कुछ कमी आयी है. हालांकि, उच्च जातियां नीतीश की सहयोगी पार्टी भाजपा के पीछे मजबूती से खड़ी हैं. जदयू के लिए राज्य में कई सीटों पर मुश्किल हो गई है, क्योंकि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिये हैं. नीतीश के आलोचकों का कहना है कि भाजपा या राजद की तरह संगठनात्मक स्तर पर उतना अधिक मजबूत नहीं होने के कारण जदयू ने नीतीश कुमार की ‘सुशासन बाबू’ की छवि पर जोर दिया है, लेकिन लगातार 15 सालों से सत्ता में बने रहने की वजह से इसबार के चुनाव में उनकी यह जादुई शक्ति मंद हुई है.

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लेकिन अभी बदलाव की हवा है
रंजन राम ने कहा, ‘नीतीश जी तो काम किए हैं, लेकिन अभी बदलाव की हवा है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह बदलाव के लिए मतदान करेंगे, रंजन राम ने कहा कि उन्होंने अभी तक फैसला नहीं किया है. स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र आकाश कुमार ने कहा, ‘उन्होंने (नीतीश) सड़कों का निर्माण किया है और हमें बिजली दी है. लेकिन हमें रोटी (रोजगार) की भी आवश्यकता है. बिहार में कोई नया उद्योग क्यों नहीं आया? उच्च शिक्षा की स्थिति इतनी खेदजनक है कि मेरी प्रथम वर्ष की परीक्षा दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी आयोजित नहीं हुई है.’

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नीतीश की दशा-दिशा तय करेंगे चुनाव
आकाश के मित्र अमरेंद्र सिंह कहते हैं कि सुशासन की बात करना क्या बेहतर होगा, जब 2019 में प्रदेश की राजधानी पटना में भी इतनी बाढ़ आई. फेरीवाले के तौर पर काम करने वाले रंजन पासवान कहते हैं, ‘जो शराब बेचता है, वह 'मालामाल' हो जाता है, जबकि जो शराब पीता है, वह कंगाल हो जाता है.’ उन्होंने कहा, ‘अमीर लोग अपने घरों में आराम से पीते हैं और किसी गरीब के पीने पर उसको पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है और परेशान किया जाता है.’ बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है और शराबबंदी के कारण होने वाली घरेलू हिंसा से महिलाओं को राहत मिलने से जदयू महिला मतदाताओं से आशा लगाए हुए है. चुनाव परिणाम न केवल नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार के भाग्य का बल्कि राजग में उनकी पार्टी का क्या स्थान होगा, इसका भी निर्धारण करेंगे.

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भाजपा का 110 सीटों पर उम्मीदवार
बिहार में पूर्व के विधानसभा चुनावों में जदयू ने भाजपा से अधिक सीटें जीती हैं, लेकिन ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार के चुनाव में यह बदल सकता है. बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से जदयू ने 115 सीटों और भाजपा ने 110 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं शेष 18 सीटों पर राजग में शामिल दो अन्य छोटे घटक दलों ने आपसी तालमेल के साथ उम्मीदवार खड़े किए हैं. भाजपा ने जहां इस बात पर जोर दिया है कि यदि राजग को बहुमत मिलता है और दोनों दलों में से भाजपा को अधिक सीटें आती हैं, फिर भी नीतीश ही एक बार फिर मुख्यमंत्री होंगे. हालांकि, भाजपा के बहुत अधिक सीटें हासिल करने की स्थिति में गठबंधन के भीतर सत्ता समीकरण बदल सकते हैं.