बिहार में सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने को लेकर कितने भी दावे क्यों ना किए जाए, लेकिन जमीनी स्तर पर कितना काम किया जाता है ये आए दिन तस्वीरों के जरिए पता चल ही जाता है. समस्तीपुर के सदर अस्पताल की हालत बद से बदतर है. अस्पताल में ना जांच मशीन है, ना दूसरी सुविधाएं. डॉक्टरों की लेटलतीफी तो आम हो गई है. सिर्फ सदर अस्पताल ही नहीं ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों की हालत भी कुछ ऐसी ही है. अस्पताल की दीवारों को देखकर लगता है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. जिन कमरों में मशीनें रखी है उन मशीनों में जंग लग चुकी है और बाकी कमरों में गंदगी का अंबार है.
समस्तीपुर सदर अस्पताल की बदहाली स्थानीय लोगों के लिए सिरदर्द बन गई है. अस्पताल में बदइंतजामियों की भरमार है. मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं. बावजूद अस्पताल में डॉक्टर नदारद रहते हैं. मरीजों को डॉक्टरों का घंटों इंतजार करना पड़ता है. ईसीजी जांच वाले कमरे में ताले जड़े हैं और मशीन को दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दिया गया है, लेकिन वहां ना तो कोई बोर्ड लगा है और ना ही कोई जानकारी देने वाला है. लिहाजा मरीज परेशान होकर इधर-उधर भटकते नजर आते हैं.
सदर अस्पताल की हालत जैसी ही ग्रामीण इलाके विभूतिपुर प्रखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की है. यहां के टीकाकरण भवन की हालत जर्जर हो चुकी है. आये दिन छत की सीमेंट टूटकर गिरती रहती है. जिससे मरीज हो या डॉक्टर सभी दहशत में है. डॉक्टरों की मानें तो भवन की हालत की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को दे दी गई है, लेकिन अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है.
बहरहाल, समस्तीपुर के सदर अस्पताल और सामुदायिक केंद्र की तस्वीरों ने एक बार बिहार सरकार के तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अस्पताल ही बीमार हो तो मरीजों का इलाज कैसे होगा?
रिपोर्ट : मन्टुन रॉय
Source : News State Bihar Jharkhand