यहां चूहे और घोगा खाकर जीने को मजबूर लोग, इनकी हालत देख नहीं रुकेंगे आंसू
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Darbhanga:
देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं लेकिन आज भी मुसहर जाति के लोगों को सरकारी योजनाओं का ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता. आलम ये है कि तालाबों में उगनी वाली सब्जियों और घोघा खाकर जीने के लिए मुसहर जाति के लोग मजबूर है. खाकर कुछ समुदाय के लोग ऐसे भी हैं जिन्हें विकास के नाम पर कुछ नहीं मिला. खासकर दरभंगा और सहरसा जिले की सीमापर बसे कोबोल मुहरी टोला में मुसहर लोगों को आज भी कोई सुविधाएं नहीं मिली है.
घोघा, जिसे देखकर हम और आप उल्टियां कर देंगे, लेकिन यही घोघा और चूहे मुसहर जाति के लिए आहार है. दरभंगा के मुसहर जाति के लोगों की जिनका जीवन नर्क बना हुआ है और इन्हें सरकारी लाभ नहीं मिल पाता. वैसे तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है और इन योजनाओं में गरीबों को आनाज मुहैया कराए जाने की भी योजना शामिल हैं, लेकिन मुसहर जाति के लोगों तक शायद सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. दरभंगा और सहरसा जिले की सीमापर बसे कोबोल मुहरी टोला के लोगों दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती और भोजन ना मिलने पर यहां के अधिकतर बच्चे कुपोषण का शिकार हो चुके हैं, लेकिन ना तो माननीयों की नजर इन पर पड़ती है और प्रशासनिक अधिकारी तो आंखें मूंदकर बैठे हैं.
यहां पर ना तो स्वास्थ्य का अधिकार काम करता है और ना ही शिक्षा का अधिकार और रोजी रोजगार की बात ही छोड़ दो. मुसहर जाति के लोग खेती किसानी का काम करते हैं, लेकिन मजदूरों को 365 दिन काम मिलना संभव नहीं है. इसका नतीजा यह होता है कि काम नहीं मिलने पर घर का चुल्हा नहीं जल पाता है और इन्हें भुखे पेट ही सोना पड़ता है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्य सुरक्षा गारंटी कानून के होते हुए भी मुसहर जाति के लोग आज भी घोघा और पानी में उगने वाला करमी और चुहे खाकर अपनी भूख मिटानी पड़ती है. यहां आज भी महिला और पुरुष खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं. बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो दूर की बात तन ढकने के लिए पूरी तरह कपड़ा भी नहीं मिल पाता. बड़ी मुसीबत से 25 हजार आवास के नाम पर मिलता है और कमीशखोरों की जेब भरने के बाद बामुश्किल इन्हें 10 हजार ही मिल पाता है. स्वास्थ्य व्यवस्था का भी बुरा हाल है. सरकारी डॉक्टर इन्हें पर्चे पर बाहर की दवा लिखकर दे देते हैं और इन्हें राम भरोसे छोड़ देते हैं.
वहीं, समाज सेवी त्रिवेणी कुमार ने भी मुशहर जाति के लोगों की तकलीफों के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है. मामले में जब जिम्मेदार अधिकारियों से बात की गई तो बिरौल अनुमंडल पदाधिकारी संजीव कुमार कापर ने कई दावे किए. सरकारी योजनाओं का लाभ देने से लेकर शिक्षा स्वास्थ्य आवास सब कुछ दिए जाने किए, लेकिन तस्वीरें एसडीओ साहब के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है. अगर इन्हें शिक्षा मिलती, स्वास्थ्य लाभ मिलता और दूसरे लाभ मिलते तो जो तस्वीरें दिख रही हैं शायद देखने को नहीं मिलती.
रिपोर्ट : अमित कुमार
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