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संकट में सरकार की योजना, करोड़ों खर्च के बाद टिशू कल्चर लैब बदहाल

सुपौल के बीएसएस कॉलेज में 2 करोड़ 10 लाख की लागत से बना टिशू कल्चर लैब आवंटन के अभाव में दम तोड़ रहा है.

Updated on: 07 Sep 2023, 04:14 PM

highlights

  • संकट में सरकार की योजना
  • करोड़ों खर्च के बाद टिशू कल्चर लैब बदहाल
  • राशि ना मिलने से कर्मचारियों ने काम बंद किया

 

Supaul:

सुपौल के बीएसएस कॉलेज में 2 करोड़ 10 लाख की लागत से बना टिशू कल्चर लैब आवंटन के अभाव में दम तोड़ रहा है. सुपौल का टिशू कल्चर लैब भागलपुर के टीएनवी कॉलेज में बने लैब से करीब डेढ़ गुणा बड़ा है, जिसमें उन्नत किस्म के बांस के पौधे प्रयोगशाला में तैयार होते हैं. मार्च, 2023 के बाद आवंटन नहीं मिलने के चलते प्रयोगशाला में काम करने वाले कर्मचारियों ने काम छोड़ दिया. जिससे उत्पादन ठप हो चुका है. 1 अगस्त, 2018 को बिहार के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने टिशू कल्चर लैब का उद्घाटन किया था. लैब में चार वैज्ञानिक, चार टेक्नीशियन और तीन लैबकर्मियों की टीम थी.

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संकट में सरकार की योजना

सरकार का उद्देश्य था प्रयोगशाला में बांस की उन्नत किस्म तैयार कर किसानों तक पहुंचाना.
लैब से लगातार बांस के छोटे-छोटे पौधे वन विभाग और फिर किसान तक पहुंचने भी लगे.
लैब से अब तक करीब 182 के पौधों का वितरण किया जा चुका है, लेकिन मार्च 2022 के बाद इस प्रोजेक्ट पर संकट के काले बादल छा गए.

करोड़ों खर्च के बाद टिशू कल्चर लैब बदहाल

राशि नहीं मिलने के चलते प्रयोगशाला के कर्मचारी काम को छोड़ कर यहां से चले गए. जिसके चलते बम्बू के पौधे का उत्पादन बंद हो गया है. जो पौधे प्रयोगशाला से निकालकर जमीन में लगाए गए हैं. उनकी देखभाल की जा रही है. ताकि बांस के पौधों का संरक्षण कर उसे वन विभाग को सौंपा जा सके. दरअसल, कोसी प्रमंडल में बड़े पैमाने पर बांस की खेती होती है. जिससे किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है. इसी वजह से टिशू कल्चर लैब का उद्घाटन भी हुआ था ताकि उन्नत किस्म के बांस के पौधे से किसानों को भी बेहतर लाभ मिल सके, लेकिन सरकार की ओर से लैब के लिए राशि का आवंटन नहीं हो रहा है. 

राशि ना मिलने से कर्मचारियों ने काम बंद किया

जिसके चलते ना तो लैब में कोई कर्मचारी बचा है और ना ही पौधों का उत्पादन हो रही है. लैब में रखे तैयार बम्बू के पौधे भी अब सूखकर बर्बाद हो रहे हैं. लैब के प्रोजेक्ट हेड की मानें तो प्रोजेक्ट के वित्तीय संकट को लेकर राज्य सरकार को कई बार जानकारी दी जा चुकी है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल सरकार की ओर से नहीं की गई है. एक तरफ तो सरकार किसानों के हित की बात करती है. टेक्नॉलॉजी की मदद से बेहतर खेती व्यवस्था के दावे करती है और धरातल पर पैसों के संकट के चलते बना-बनाया लैब धूल फांक रहा है. जरूरत है कि सरकार इसपर ध्यान दें. ताकि जिस उद्देश्य से लैब का उद्घाटन किया गया था वो पूरा हो सके.