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सुपौल से लेकर सीतामढ़ी तक बाढ़ का कहर, पानी में समाए सैकड़ों घर

सुपौल से लेकर सीतामढ़ी तक बाढ़ के प्रहार से बेहाल हो गए हैं. कोसी के कहर में कुछ घर डूब गए.

Updated on: 07 Sep 2022, 02:57 PM

Supaul:

बिहार में बाढ़ से जनजीवन के बेहाल होने की बात कोई नई नहीं है. शासन और प्रशासन हर बार हालात को सुधारने के दावे करता है, लेकिन हर बार दावे ढाक के तीन पात बनकर रह जाते हैं. सुपौल से लेकर सीतामढ़ी तक बाढ़ के प्रहार से बेहाल हो गए हैं. कोसी के कहर में कुछ घर डूब गए. कुछ डूबने की कगार पर हैं. जिनके आशियाने पानी के प्रहार से तबाह हो गए, वो पलायन कर चुके हैं. जिनके बचे हैं, वो अपने घरों में सरकारी सहायता का अंतहीन इंतजार कर रहे हैं.

नेपाल से सटे सुपौल का शायद ही कोई इलाका बचा हो, जहां बाढ़ ने लोगों को बेहाल न किया हो. 200 घर कोसी के पानी में पूरी तरह समा चुके हैं. कटाव कई और घरों को अपनी चपेट में लेने के तैयार है. बाढ़ की मार सबसे ज्यादा मरौना ब्लॉक में पड़ी है. यहां गांव के गांव कोसी के रौद्र रूप की त्रासदी झेल रहे हैं. सरकारी मदद के लिए अधिकारी आगे नहीं आए. यहां के घोघरड़िया के अलावा सिसौनी पंचायत के लोग भी बाढ़ से ऐसे ही परेशानी झेल रहे हैं, लेकिन इनकी सुध लेने के लिए जिन अधिकारियों को जिम्मा दिया गया है, वो ग्राउंड जीरो पर आने को तैयार नहीं हैं.

लोगों की बढ़ती परेशानी को देख घोघरड़िया पंचायत की मुखिया एकता यादव ने मरौना के सीओ और बीडीओ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. राजद महिला प्रकोष्ठ की ज़िलाध्यक्ष सह मुखिया एकता यादव ने इन अधिकारियों की शिकायत सीनियर अफसरों से की है. बाढ़ पीड़ितों के बीच बांटे जाने वाले सूखे राशन का भी अता पता नहीं है. थक हार कर मुखिया ने खुद के खर्चे से पीड़ितों के लिए राशन जुटाया.

एक तरफ कोसी के कहर से सुपौल जूझ रहा है, तो दूसरी ओर मरहा और हरदा नदी ने सीतामढ़ी के कई इलाकों को पानी पानी कर दिया है. स्कूल से लेकर मस्जिद के अंदर तक पानी भरह चुका है. गांव की हर गली में बाढ़ का पानी समा चुका है. बाढ़ से बेहाल लोग ऊंची जगहों पर पलायन कर रहे हैं.

बाढ़ से बिहार के कई जिले हर साल जलमग्न हो जाते हैं. तबाही की तस्वीरें दिखाई देने लगती हैं, लेकिन प्रशासन हर बार आंखें मूंद कर कुंभकर्णी नींद में सोता रहता है. इस बार भी हालात बदले नहीं हैं.