बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इन दिनों अपने सहयोगी दल को ही खटकने लगे हैं. पिछले कुछ दिनों से बिहार में कई ऐसे मुद्दों को लेकर जिनमें भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) को रुचि नहीं रही, उन पर नीतीश कुमार विपक्ष के साथ खड़े दिखे. नतीजन अब बीजेपी के नेता नीतीश पर कटाक्ष करने लगे हैं और उन्हें मजबूरी के मुख्यमंत्री बता रहे हैं. इस साल बिहार (Bihar) में चुनाव हैं और जिन मुद्दों पर देशभर में खलबली मची है. उससे नीतीश कुमार ने किनारा करने में अपनों का दिल दुखा दिया है. पिछले हफ्ते आरजेडी (RJD) के एजेंडे पर जेडीयू ने दांव खेला और 72 घंटे में 3 बड़े फैसलों से नीतीश ने बैलेंस बदला. मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई हैं.
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नीतीश कुमार ने पिछले दिनों में तीन अहम फैसले लिए हैं. इनमें एनआरसी को लागू नहीं कराने और एनपीआर को 2010 के स्वरूप में कराने का प्रस्ताव पास किया. इसके अलावा गुरुवार को बिहार में जातिगत आधारित जनगणना कराने पर भी मुहर लगा दी है. दरअसल, एनआरसी और एनपीआर से जुड़े प्रस्ताव पर नीतीश कुमार ने अचानक निर्णय लिया और बीजेपी को भनक भी नहीं लगी. अब प्रस्ताव तो विधानसभा से सर्वसम्मति से पास हुआ, मगर बीजेपी के गले ये निर्णय नहीं उतर रहा है.
लिहाजा अब बीजेपी के विधान पार्षद सच्चिदानंद राय ने नीतीश कुमार को मजबूरी का मुख्यमंत्री बताया है. न्यूज नेशन से बातचीत में उन्होंने कहा कि सदन के अंदर नीतीश कुमार विपक्ष के साथ और बाहर बीजेपी के साथ, ऐसा कैसे होगा. वहीं सरकार के श्रम संसाधन मंत्री विजय सिन्हा कह रहे हैं कि पार्टी तो हमारी देशहित के मुद्दे पर बनी रहेगी, जिसे जो करना है वो करे.
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उधर, बीजेपी और जेडीयू के बीच खटास से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) खुश है. राजद के विधायक शिवचंद्र राम कहते हैं कि यह पिछले दरवाजे वाले लोग हैं. तेजस्वी के प्रस्ताव पर अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुहर लगाई तो गलत क्या है. राजद नीतीश कुमार के निर्णयों पर शबाशी दे, यह बीजेपी को जला रही है.
इस विवाद में आरोपों को नकारने में जदयू के नेता जुटे हैं. विधान पार्षद रणबीर नंदन का कहना है कि हमें बीजेपी के आधिकारिक बयान से मतलब है. मुख्यमंत्री के निर्णय जनता के हित में हैं, हम मजबूरी से नहीं जनता के पसंद से सरकार में हैं. बहरहाल, जदयू कुछ भी कहे, मगर एक बात तो तय है कि इस गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. बीजेपी एक बार फिर संशय में है और इस चुनावी वर्ष में हर दल की नजर विरोधियों के साथ सहयोगियों पर भी है.
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