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जयंती विशेष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव को आज भी है 'विकास' का इंतजार!

गांव पहुंचने पर सबसे पहले हमारी टीम रेलवे स्टेशन पहुंची. रेलवे स्टेशन की हालत ठीक-ठाक थी लेकिन समस्या रेलवे स्टेशन के रंग-रोगन की नहीं बल्कि ट्रेनों के ठहराव की है.

Updated on: 03 Dec 2022, 07:52 PM

highlights

. आजादी के 75 साल बाद भी 'विकास' का पता नहीं

. डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव तक नहीं पहुंचा 'विकास'

. सिर्फ भाषण देने आते हैं माननीयगण 

Patna:

3 दिसंबर 1884 यो वो तारीख थी जब बिहार के सिवान जिले में एक महान क्रांतिकारी और आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ ता. अपने सादे व्यक्तित्व और मृदुभाषी होने के चलते उन्हें राजनीति के संत की उपाधि मिली. देश में 3 बार राष्ट्रपति की कमान संभालकर उन्होंने नए लोकतांत्रिक भारत को नई दिशा दिखाई. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की सादगी के कायल आम से लेकर खास तक हर कोई था. आजादी की लड़ाई और आजादी के बाद संविधान निर्माण में दिए उनके अहम योगदान के लिए आज भी देश उन्हें याद करता है. उनके इन्हीं योगदानों को देख उन्हें भारत रत्न भी मिला लेकिन जिस धरती पर इस महान क्रांतिकारी ने जन्म लिया उसे आश्वासन और बड़े-बड़े दावों के अलावा कुछ नहीं मिला.

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देश के प्रथम राष्ट्रपति के जयंति को लेकर देश भर में उत्साह है लेकिन इस उत्साह के बीच हम कुछ कड़वी सच्चाईयों को भूल रहे हैं. इसी सच्चाई को उजागर करने के लिए 'न्यूज़ स्टेट बिहार झारखंड' की टीम उस गांव में पहुंची जहां इस क्रांतिकारी का बचपन गुजरा. सिवान जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर जीरादेई गांव है. यहीं बाबू राजेंद्र का जन्म हुआ था और इस गांव के लोग आज भी अपने सपूत को बाबू कहकर बुलाते हैं.


रेल सुविधा अच्छी नहीं


गांव पहुंचने पर सबसे पहले हमारी टीम रेलवे स्टेशन पहुंची. रेलवे स्टेशन की हालत ठीक-ठाक थी लेकिन समस्या रेलवे स्टेशन के रंग-रोगन की नहीं बल्कि ट्रेनों के ठहराव की है. इस स्टेशन पर आज भी बड़ी ट्रेनें नहीं ठहरती. इसको लेकर ग्रामीणो ने कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं लेकिन देश को पहला राष्ट्रपति देने वाले जीरादेई के हालात आज भी नहीं बदले. जीरादेई आज आजादी के 75 साल बाद भी 'विकास' का राह देख रहा है लेकिन 'विकास' है कि आता ही नहीं. ये अलग बात है कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती या फिर पुण्यतिथि के अवसर पर माननीयगण लंबे चौड़े भाषण देने के लिए आ जाते हैं.

गांव में एक भी लाइब्रेरी नहीं

बाबू राजेंद्र के पिता फारसी और संस्कृत के विद्वान थे और खुद राजेंद्र प्रसाद ने भी अर्थशास्त्र में MA किया था लेकिन पूरे देश में शिक्षा की अलख जगाने की बात करने वाले राजेंद्र प्रसाद के गांव में एक लाइब्रेरी भी नहीं है. हांलांकि प्रशासन की ओर से एक लाइब्रेरी खोलने की बात जरूर कही गई थी, इसके लिए ग्रामीणों ने अपना जमीन भी दान दिया लेकिन आजतक लाइब्रेरी बनाने की दिशा में कोई काम नहीं किया गया.

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पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा धरातल पर लागू नहीं

केंद्र सरकार की ओर से जीरादेई में डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक मकान को पुरातत्व विभाग के सुपुर्द किये जाने के बाद राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी लेकिन इस दिशा में भी अब तक कोई कवायद शुरू नहीं हुई है. ग्रामीणों की मानें तो गांव में बिजली, सड़क और पानी के साथ-साथ स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी है. आलम ये है कि 19 पंचायतों और करीब एक लाख 67 हजार की आबादी वाले इस जीरादेई प्रखंड के लोगों को शिक्षा और चिकित्सा के लिए जिला मुख्यालय जाना पड़ता है.


पूर्व सांसद ओम प्रकाश ने लिया था गांव को गोद

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव को बीजेपी के पूर्व सांसद ओम प्रकाश यादव ने गोद लिया था लेकिन गांव को विकास की पटरी पर लाने के लिए कोई काम नहीं किया. हर बार राजेंद्र प्रसाद की जयंती के मौके पर बड़े-बड़े नेता गांव आते हैं, मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं, बड़े-बड़े दावे करते हैं और चले जाते हैं.