राजधानी के पटना से सटे बिहटा से एक ऐसी कहानी सामने आई है. जिसे सुन देश भक्ति की याद आती है. 164 साल बाद एक व्यक्ति अपने खानदान की तलाश में विश्मभरपुर पहुंचे हैं. यहां हरि नाम के अपने पूर्वज की जमीन तलाशने आए या यूं कहें कि उनके वंशजों को ढूंढने आए हैं. गांव में कदम रखते ही उन्होंने सबसे पहले गांव की माटी को चूमा और फिर जब लोगों से बात करनी शुरू की तो लोगों ने उन्हें अपने गांव पहुंचते ही भारतीय सभ्यता का एहसाह दिलाते हुए फूल - मालाओं से उनका स्वागत किया.
मॉरिशस में 200 परिवार है मौजूद
बताया जा रहा है कि साल 1859 में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर उनके पूर्वज मॉरिशस गए थे. जहां उन्होंने शादी करकर वही अपना घर बसा लिया. आज हरी नाम के बंसज का मॉरिशस में 200 परिवार हैं. हालाकी बिहटा के विश्मभरपुर के लोग हरी की पहचान तो नही कर पाए, लेकिन अपने गांव के नाम से सात समंदर पार कर गांव पहुंचे धर्मदेव और उनके साथी को खूब सम्मान किया है.
कोई भी नहीं कर पाया पहचान
बरसों बीते लोगों का रिकॉर्ड मॉरीशस के पास तो भले ही है, लेकिन इंडिया के बिहार में रहने वाले गांव के लोगों के पास नहीं है. यहीं वजह है कि मॉरीशस गए हरी नाम की पहचान कोई नहीं कर पा रहा है. मॉरीशस के रहने वाले और गांधी स्कूल ऑफ आर्ट्स के लेक्चर धर्मदेव निर्मल हरि को उनके परिजनों का पता नहीं चल पाया है. हालांकि वह इस बात से तो खुश हैं कि उन्हें उनका गांव मिल गया है. जहां से उनके पूर्वज मॉरीशस गए थे.
मॉरीशस में ही बस गया परिवार
धर्मदेव निर्मल का लोगों से मिलते ही उन्हें अपने पूर्वजों की याद आ गई. हालांकि गांव के लोग किसी तरह के पहचान को उजागर नहीं कर पाए, लेकिन अपने पूर्वजों के बताएं स्थान पर पहुंच कर धर्मदेव निर्मल हरि गदगद नजर आए. उनका कहना है कि 1859 में उनके दादा के दादा बिहार के इसी धरती से गिरमिटिया मजदूर के तौर पर मॉरीशस गए थे और फिर 10 साल के बाद उन्होंने तुलसी नाम की महिला से शादी कर ली और यही उनका परिवार बस गया आज उनके परिवार में 200 परिवार मॉरीशस में मौजूद है और इनके परिवार का एकमात्र खानदानी निशानी सरौता इन लोगों के पास बचा है.
मुख्यमंत्री ने आने का दिया था न्योता
उन्होंने बताया कि 2007 में मॉरीशस बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार घूमने आए थे. इस दौरान उनकी कलाकृति देखकर उन्हें साराहा था और उनसे मुलाकात की थी. उसे समय बिहार आकर अपने पूर्वजों के गांव खोजने की न्योता भी दिया था. जिसे आज पूरा करते हुए हम विशंभरपुर अपने पूर्वजों के गांव पहुंचे हैं, लेकिन हमारे पूर्वजों के सगे संबंधी कोई हमारे दादा के दादा को पहचानता तक नहीं रहा है. इस बात का हमें दुःख है, लेकिन यह आकर हमें काफी खुशी महसूस हो रही है.
रिपोर्ट - सोहैब खान
HIGHLIGHTS
- मॉरिशस में 200 परिवार है मौजूद
- कोई भी नहीं कर पाया पहचान
- मॉरीशस में ही बस गया परिवार
- मुख्यमंत्री ने आने का दिया था न्योता
Source : News State Bihar Jharkhand