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CRPF 83rd Rising Day: जानें क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस से सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स बनने तक की कहानी

जब कभी तारीख ने संग्राम लिखा है, हमने शौर्य से परिणाम लिखा है. 'सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स यानि सीआरपीएफ आज अपना 84वां गठन दिवस मना रही है.

Updated on: 27 Jul 2022, 05:41 PM

Patna:

जब कभी तारीख ने संग्राम लिखा है, हमने शौर्य से परिणाम लिखा है. 'सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स यानि सीआरपीएफ आज अपना 84वां गठन दिवस मना रही है. आज की ही तारीख यानि 27 जुलाई 1939 को मध्य प्रदेश के नीमच में दो बटालियन के साथ सीआरपीएफ का गठन किया गया था. हालांकि, उस समय देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी और फोर्स का नाम क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस था. 28 दिसंबर 1949 को यानि स्वतंत्रता दिवस के बाद और देश में गणतंत्र स्थापित होने से पहले ही सीआरपीएफ एक्ट आया और फिर  क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस का नाम बदलकर सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स कर दिया गया और इसी के साथ सीआरपीएफ नए तेवर के साथ देश और देशवासियों की सुरक्षा में जुट गया. बाद में 1960 के आस-पास राज्य रिजर्व पुलिस (State Reserve Police) का सीआरपीएफ में विलय कर दिया गया. 

नक्सलियों से निबटने की बात हो, आतंकियों से भिड़ने की बात हो, वीआईपी अथवा वीवीआईपी की सुरक्षा की बात हो या फिर हिंसामुक्त चुनाव सम्पन्न कराने की बात हो सीआरपीएफ दमखम के साथ खड़ी रहती है और देश के दुश्मनों को भी उनके ही अंदाज में जवाब देती है. 2019 में जारी किए गए एक आंकड़े के मुताबिक सीआरपीएफ में 3,00,000 (तीन लाख) जवान हैं और 246 बटालियन हैं. राष्ट्र सेवा में अब तक सीआरपीएफ के 2235 जवान शहीद हो चुके हैं.

बंटे हुए देश को एक करने में CRPF ने निभाई अहम भूमिका
पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की सोच के मुताबिक़ इस बहुउद्देशीय पुलिस बल का गठन किया गया. इसने रजवाड़ों और रियासतों में बंटे देश को एक करने में अहम भूमिका निभाई. 1955 में सीआरपीएफ अधिनियम बनने के बाद इसके नियम कायदे बनाए और अमल में लाए गए. सीआरपीएफ अधिनियम के बाद 1955 में वीजी कनेतकर को इसका पहला मुखिया यानि महानिदेशक बनाया गया. बागी रियासतों को नियंत्रण में करने में सीआरपीएफ का इस्तेमाल किया गया.

पाकिस्तान और चीन सीमा पर भी संभाला मोर्चा
आजादी के फ़ौरन बाद इसकी टुकड़ियों ने पाकिस्तान को छूती राजस्थान, गुजरात और सिंध सीमाओं को सम्भाला था. यही नहीं पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ और इसके बाद हमले रोकने में भी इसे तैनात किया गया था. चीन से सटी सीमा की रखवाली के दौरान 21 अक्टूबर 1959 को इसके गश्ती दल पर चीनी सेना द्वारा हुआ हमला शुरुआती दौर में इसका सबसे बड़ा नुकसान था जिसमें सीआरपीएफ के 10 जवानों ने सबसे बड़ा बलिदान दिया था. ये घटना लदाख सीमा पर तत्तापानी के पास हुई. पूरे भारत में इस दिन को पुलिस स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

इतना ही नहीं 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में सीआरपीएफ ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा जोड़कर काम किया. 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भी पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर इसने सेना के साथ मोर्चा संभाला था.

भगवान राम के धरती की 'रक्षा' की
5 जुलाई 2005 को 5 हथियारबंद आतंकियों ने राम जन्मभूमि कांप्लेक्स में दहशत फैलाने के इरादे से घुसने का प्रयास करते हैं लेकिन सीआरपीएफ जो आंतरिक घेरे की सुरक्षा में तैनात थी ने मोर्चा संभाला. सीआरपीएफ के असिस्टैंट कमांडेंट विजोतो तिनाई और हेड कांस्टेबल धरमबीर सिंह ने आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया. दोनों को उनके साहसिक प्रदर्शन के लिए 'शौर्य चक्र' से सम्मानित किया गया था. 

2008 में कोबरा बटालियन का गठन
देश के कई राज्य जैसे, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र में 2008 में नक्सलियों का आतंक चरम पर था। नक्सलवाद सरकारों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं थी। आये दिन नक्सली हमले में पुलिस, पत्रकारों, नेताओं व आम नागरिकों की मौत होने की खबरे आती थीं. इसी बीच 2008 में सीआरपीएफ की एक नई बटालिएन का गठन किया गया है. नाम था Commando Battalion for Resolute Action यानि CoBRA बटालियन. गुरिल्ला युद्द में कोबरा बटालियन को महारथ हासिल है. सीआरपीएफ के कोबरा कमाडोंज नक्सलियों के लिए जमीन से लेकर आसमान तक काल का काम करते हैं. कोबरा कमांडों के गठन के बाद नक्सलियों के मंसूबों पर पानी जरूर फिरा. हालांकि, अभी भी नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है लेकिन जब-जब नक्सलियों ने अपनी चलाने का प्रयास किया तब-तब या तो उन्हें सरेंडर करना पड़ा या फिर गोली खानी पड़ी.