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मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में न्याय का इंतजार, कोर्ट ने एक महीने के लिए टाला फैसला

अदालत ने पूर्व में बलात्कार और यौन हिंसा के मामले में 20 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे.

Updated on: 14 Nov 2019, 01:37 PM

दिल्ली:

बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एक आश्रयगृह में अनेक लड़कियों के साथ कथित दुष्कर्म और यौन हिंसा के मामले में वकीलों की हड़ताल के चलते दिल्ली की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को अपना निर्णय एक महीने के लिए टाल दिया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने फैसला 12 दिसंबर तक के लिए टाल दिया, क्योंकि तिहाड़ जेल में बंद आरोपियों को दिल्ली की सभी जिला अदालतों में जारी वकीलों की हड़ताल के चलते अदालत परिसर नहीं लाया जा सका.

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अदालत ने पूर्व में बलात्कार और यौन हिंसा के मामले में 20 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे. मामले में मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के खिलाफ धारा 6 (गंभीर यौन हिंसा) सहित पोक्सो कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप दर्ज किए गए थे. संबंधित अपराध के लिए न्यूनतम 10 साल की कैद और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. आरोपियों में ठाकुर के आश्रयगृह के कर्मचारी और बिहार समाज कल्याण विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं. मामला टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट के बाद प्रकाश में आया था.

गौरतलब है कि एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित इस बालिका गृह में कई लड़कियों से कथित तौर पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न किया गया था. यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक रिपोर्ट के बाद प्रकाश में आया था. यह रिपोर्ट 26 मई 2018 को बिहार सरकार को सौंपी गई थी जिसमें बालिका गृह की लड़कियों से कथित यौन उत्पीड़न का जिक्र किया गया था. पिछले साल 29 मई को राज्य सरकार ने लड़कियों को वहां से अन्य आश्रय गृहों में भेज दिया. 31 मई 2018 को मामले के 11 आरोपियों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

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यह बालिका गृह बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) का पूर्व विधायक ब्रजेश ठाकुर संचालित करता था. मामले में सीबीआई के वकील और 11 आरोपियों की अंतिम दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने 30 सितंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री एवं जदयू की तत्कालीन नेता मंजू वर्मा को भी इस मामले को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. मामले के आरोपियों ने दावा किया था कि सीबीआई ने मामले में निष्पक्ष जांच नहीं की. यह मामला यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज है और इसके तहत अधिकतम सजा के रूप में उम्र कैद हो सकती है. बलात्कार एवं शारीरिक नुकसान पहुंचाने वाले यौन उत्पीड़न की आपराधिक साजिश रचने के तहत भी मामले दर्ज किए गए हैं. अतिरिक्त सत्र न्यायधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने बंद कमरे में चली सुनवाई के दौरान मामले में हुई जिरह संपन्न की, जो इस साल 25 फरवरी को शुरू हुई थी.

दरअसल, मामले के मुख्य आरोपी ठाकुर के तार उनके पति से जुड़े थे. वर्मा को आठ अगस्त 2018 को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. सीबीआई ने विशेष अदालत से कहा कि मामले में सभी 21 आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. हालांकि अदालत का फैसला गुरुवार (आज) के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन पुलिसकर्मियों और अधिवक्ताओं के बीच झड़प के बाद यहां सभी छह अदालतों में वकीलों की हड़ताल अभी तक समाप्त नहीं हुई है. उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर यह मामला मुजफ्फरपुर की एक स्थानीय अदालत से दिल्ली में साकेत जिला अदालत परिसर स्थित एक पॉक्सो अदालत को हस्तांतरित किया गया था.

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