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पुरोहितों को डरा रहा कोरोना, श्राद्ध के लिए दूसरे राज्यों से आ रहे पंडितजी

लॉकडाउन में सरकार ने शादी, विवाह के लिए कुछ शर्तो के साथ अनुमति भले ही प्रदान की है, लेकिन पंडितों और पुरोहितों के नही मिलने के कारण परेशानी ब़ढ गई है.

Updated on: 10 May 2021, 02:28 PM

highlights

  • कोरोना कहर से कर्मकांड-पूजा कराने वाले पंडितजी भी डरे
  • मजबूरन लोगों को दूसरे राज्यों से बुलाने पड़ रहे पंडितजी
  • लोगबाग भी तुरत-फुरत वाले विधानों को दे रहे तरजीह

पटना:

बिहार में कोरोना संक्रमण की गति को धीमी करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में सरकार ने शादी, विवाह के लिए कुछ शर्तो के साथ अनुमति भले ही प्रदान की है, लेकिन पंडितों और पुरोहितों के नही मिलने के कारण परेशानी ब़ढ गई है. कोरोना से लगातार हो रही मौत के बाद पंडित नहीं मिलने के कारण परिजनों को श्राद्ध कराने में भी मशक्कत करनी पड़ रही है. पंडितजी को भी कोरोना का डर सताने लगा है, यही कारण पंडित अपने यजमानों के यहां भी जाने से बच रहे हैं. बिहार में कोरोना संक्रमण से डरे पंडित भी अब घर में ही कैद रहना चाह रहे है. शहर के लोगों को श्राद्ध कराने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के पंडितजी की शरण में जाना पड़ रहा है. उन्हें मुंहमांगा दक्षिणा देने की सिफारिश कर रहे हैं, जिससे श्राद्धकर्म पूरा हो और मृतात्मा को शांति मिल सके.

पंडितजी की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख
कई लोग तो पंडितों की खोज में अन्य राज्यों की ओर रूख कर रहे है. ऐसा नहीं कि ऐसे लोगों को अगर पंडित जी मिल भी जा रहे हैं लॉकडाउन में बाजार बंद रहने के कारण श्राद्ध में जरूरी चीजें नहीं मिल रही है, ऐसे में पंडित जी पैसा ही लेकर काम चला ले रहे हैं. औरंगाबाद जिले के उपाध्याय बिगहा गांव के रहने वाले सत्यदेव चौबे की मौत तीन दिन पहले हो गई है, लेकिन उनके श्राद्धकर्म को लेकर पंडित जी नहीं मिल रहे थे. अंत में उन्हें पड़ोसी राज्य झारखंड के हरिहरगंज से एक पंडित को लाना पड़ा जो अंतिम संस्कार से लेकर श्राद्धकर्म तक करने के लिए राजी हुए है.

ये है विधान
सनातन मार्ग में मृत्यु के 10 वें दिन दषगात्र होता है, 11 वें दिन श्राद्धकर्म, 12 वें दिन कर्म कांड पूरा होता है और 13 वें दिन पूजा-पाठ से संपन्न होता है. ऐसे में पंडित जी का दक्षिणा भी काफी बढ़ गई है. ऐसा ही एक मामला भागलपुर में देखने को मिला जहां सिंकदरपुर के रहने वाले मुकेश कुमार सिंह के कोरोना से हुए निधन के बाद उनके परिजनों को गोड्डा से पंडित बुलाना पड़ा.

पंडितजी कतरा रहे कर्मकांड से
औरंगाबाद में कर्मकांड के लिए चर्चित पंडित विंदेश्वर पाठक कहते हैं, सनातन धर्म में मृतात्मा की शांति के लिए 13 दिनों तक का विधान है. इसके बाद मृतक की आत्मा को शांति मिलती है. अभी कोरोना से प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं. पहले इस समय में एक-दो लोगों के श्राद्ध के लिए कॉल आता था. अभी पांच से छह लोगों का कॉल आ रहा है. कोरोना से हुई मौत के बाद पंडितजी श्राद्ध कराने से कतरा रहे हैं. उन्हें डर है कि उनके परिजनों को भी कोरोना का संक्रमण हो जाएगा. पंडितजी बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं.

तुरत-फुरत कर्मकांड की मांग
लोग भी कम से कम समय में कर्मकांड पूरा कराने के लिए लोग जुगाड़ लगा रहे हैं. कई लोग सनातन विधि विधान को छोडकर गायत्री परिवार और आर्य समाज के विधि विधान से कर्मकांड निपटाने लगे हैं, जिससे कम समय में विधि विधान से संपन्न कराया जाए. इसके लिए लोग इन दोनों समाज के कर्मकांड के जानकारों के पास भी पहुंच रहे हैं. बताया जाता है कि गायत्री परिवार में श्राद्ध के लिए कर्मकांड अधिक से अधिक तीन दिन और कम से कम एक दिन में पूरा हो जाता है. शादी, विवाह के लिए भी स्थिाति ऐसी ही हो गई है. शादी कराने के लिए पंडित जल्दी नहीं मिल रहे हैं. लोगों का कहना है पंडित जी शादी के लिए भी दक्षिणा की अधिक मांग करने लगे हैं.