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सीएम नीतीश कुमार Photograph: (NN)
बिहार की राजनीति में अगर किसी एक नेता ने पिछले तीन दशकों तक अपनी पकड़ बनाए रखी है, तो वह नाम है नीतीश कुमार. वो नेता जिन्होंने बिहार को अराजकता से सुशासन की दिशा में मोड़ा, जिन्होंने जातीय समीकरणों को समझदारी से साधा और जिन्होंने हर राजनीतिक परिस्थिति में खुद को टिकाए रखा. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर बिहार की सियासत नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती दिखाई दे रही है.
बख्तियारपुर से पटना सदन की सफर
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना जिले के बख्तियारपुर में हुआ था. उनके पिता राम लखन सिंह (कविराज राम लखन सिंह) आयुर्वेदिक चिकित्सक थे, जबकि माता पार्वती देवी गृहिणी थीं.
सरकारी नौकरी से राजनीति में एंट्री
उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई बिहार में ही की और फिर 1972 में बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब NIT पटना) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय उन्होंने सरकारी नौकरी की, लेकिन जल्द ही राजनीति में सक्रिय हो गए.
संघर्ष से शिखर तक कैसे पहुंचें नीतीश कुमार
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई 1970 के दशक में जब देशभर में जेपी आंदोलन चल रहा था. उन्होंने समाजवादी युवजन सभा से जुड़कर राजनीति की शुरुआत की. 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इसके बाद 1980 में फिर कोशिश की, तभी भी सफलता नहीं मिली.
नीतीश ने हिम्मत नहीं हारी, 1985 में हर्नौत सीट से चुनाव जीता और पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया. 1989 में वे बारह लोकसभा सीट से सांसद बने, और यहीं से उनकी राष्ट्रीय राजनीति की यात्रा शुरू हुई. वे तब वी.पी. सिंह सरकार में युवा सांसद के तौर पर चर्चा में आए.
केंद्रीय मंत्री से मुख्यमंत्री तक का सफर
नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार में कई अहम मंत्रालयों का जिम्मा संभाला. उन्होंने कृषि मंत्रालय, रेल मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय जैसे विभागों में मंत्री रहते हुए कई सुधार किए. रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने यात्रियों के लिए कई सुविधाएं शुरू कीं, जैसे महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए किराये में छूट, नई ट्रेनों की शुरुआत, और सुरक्षा में सुधार. उनकी छवि एक ईमानदार और कामकाजी मंत्री के तौर पर बनी. इसी बीच उन्होंने बिहार की राजनीति में अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को मजबूत किया.
मार्च 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने की वजह से 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि 2005 में NDA गठबंधन की जीत के बाद वे फिर मुख्यमंत्री बने और फिर एक लंबा दौर शुरू हुआ जिसे बिहार ने “सुशासन का युग” कहा.
नीतीश कुमार का शासन मॉडल
नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति को जातीय आधार से निकालकर विकास की दिशा में मोड़ने की कोशिश की. उनकी सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं. साइकिल योजना और पोशाक योजना से लड़कियों की स्कूल में वापसी बढ़ी. ग्रामीण बिजलीकरण, सड़क निर्माण और शिक्षक नियुक्ति से बुनियादी ढांचा मजबूत हुआ.
पंचायत चुनावों में महिलाओं और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया गया, जिससे गांव-स्तर पर नई नेतृत्व पीढ़ी सामने आई. उनकी नीतियों से बिहार की कानून व्यवस्था में सुधार आया और निवेश का माहौल बेहतर हुआ. हालांकि समय-समय पर उन्हें राजनीतिक निर्णयों के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी खासकर बार-बार गठबंधन बदलने को लेकर.
गठबंधन की राजनीति और आलोचनाएं
नीतीश कुमार की राजनीति की सबसे बड़ी खासियत है उनकी रणनीतिक लचीलापन. उन्होंने कई बार अपने राजनीतिक गठबंधन बदले. कभी NDA (भाजपा) के साथ, तो कभी UPA (कांग्रेस-राजद) के साथ. विरोधियों ने इसे पलटीबाज़ी कहा, लेकिन समर्थक इसे व्यावहारिक राजनीति बताते हैं. दरअसल, नीतीश हमेशा बिहार की सत्ता और स्थिरता के बीच संतुलन साधते रहे हैं. उनकी प्राथमिकता “कुर्सी नहीं, स्थिरता” रही. जैसा कि वे कई बार अपने भाषणों में दोहराते भी है.
2025 का राजनीतिक समीकरण
2025 के विधानसभा चुनाव से पहले फिर से बिहार में नीतीश कुमार बनाम बाकी दलों का मुकाबला दिख रहा है. उनकी पार्टी जद(यू) काम बोलेगा, नारा नहीं के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है. राज्य में कुर्मी, ईबीसी, ओबीसी और महिला वोट बैंक उनके सबसे मजबूत आधार हैं.
हालांकि इस बार उन्हें दो मोर्चों पर चुनौती है. राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के दबदबे को साधना, और राजद-कांग्रेस गठबंधन की जमीनी पकड़ को तोड़ना. नीतीश अब भी राज्य की राजनीति के केंद्र में हैं और उनके फैसले बिहार की सत्ता का भविष्य तय करेंगे.
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