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छोले भटूरे बेचने वाले का बेटा बना जज, एक थप्पड़ की गूंज से शुरू हुआ था संघर्ष

लहर के डर से नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. कहवात का अर्थ है कि अगर कोई इंसान अपने मन में कुछ ठान ले और लगातार कोशिश करे तो कितनी मुसीबत क्यों ना आए उसे उसकी मंजिल जरूर मिलती है.

Updated on: 19 Nov 2022, 02:16 PM

Saharsa:

लहर के डर से नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. कहवात का अर्थ है कि अगर कोई इंसान अपने मन में कुछ ठान ले और लगातार कोशिश करे तो कितनी मुसीबत क्यों ना आए उसे उसकी मंजिल जरूर मिलती है. सहरसा के लाल कमलेश कुमार को भी उसकी मंजिल मिल गई है. पिता के अपमान ने उसके मन में ऐसी चिंगारी पैदा की कि एक छोले भटूरे की दुकान लगाने वाले के बेटे ने जज बनकर पूरे जिले का नाम रोशन कर दिया.

कमलेश की कहानी गरीबी से शुरू होकर सफलता के शिखर तक पहुंची है. ये सफर जितना संघर्षों से भरा था उतना ही दिलचस्प भी रहा. दरअसल, इसकी शुरूआत एक घटना के साथ हुई थी. जब कमलेश के पिता को एक पुलिस ने थप्पड़ जड़ दिया था. कमलेश इसे देख बेहद दुखी भी हुआ और उसे बहुत गुस्सा भी आया. इस पर उसके पिता ने उसे कहा कि पुलिस जज को सलाम करते हैं. अगर पुलिस वाले किसी से डरते हैं तो वो जज है. पिता की बात सुनकर कमलेश ने जज बनने की ठान ली और उसने दिल्ली में ही रहकर मन लगाकर लॉ की पढ़ाई की और न्यायिक सेवा परीक्षा में 64वीं रैंक लाकर जज बना.

कमलेश के पिता और उनका पूरा परिवार दिल्ली में ही रहता है. कमलेश जब चार साल के थे तो वो अपने पिता के छोले भटूरे की दुकान में हाथ भी बटाते थे. कमलेश का बचपन दिल्ली की झुग्गियों में बीता, लेकिन आर्थिक तंगी को कमलेश ने कभी कामयाबी के आड़े नहीं दिया. इस बीच उन्हें एक दो बार निराश भी होना पड़ा, लेकिन अंत में उसने जज बनकर ना सिर्फ अपने परिवार बल्कि पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया है. आज गांव के लोग उसके घर आकर उसे बधाई दे रहे हैं.

हम अपनी जिंदगी में छोटी-छोटी परेशानियां आने पर भी हताश और निराश हो जाते हैं. ऐसे में कमलेश और उन जैसे हर वो युवा हमारे लिए प्रेरणा हैं, जो आर्थिक तंगी और तमाम परेशानियों को पीछे छोड़ सफलता के शिखर तक पहुंच जाते हैं. 

रिपोर्ट : रंजीत सिंह

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