छठ व्रती आज मनाएंगी खरना, प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का व्रत हो जाएगा शुरू
आज शाम में खरना मनाया जाएगा. व्रती आज प्रसाद ग्रहण करेंगी फिर उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा.कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना मनाया जाता है. खरना में दिन भर व्रत के बाद व्रती रात को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर हैं.
highlights
. खरना को लोहंडा भी जा कहते हैं
. नये चूल्हे पर बनाया जाता है प्रसाद
. खीर का बनता है विशेष प्रसाद
Patna:
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का आज दूसरा दिन है. नहाय खाय के साथ कल से छठ पूजा की शुरुआत हो गई है. आज शाम में खरना मनाया जाएगा. व्रती आज प्रसाद ग्रहण करेंगी फिर उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा. 4 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की हर घर में धूम देखने को मिल रही है. बिहार के लगभग हर घर में इसे मनाया जाता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना मनाया जाता है. खरना में दिन भर व्रत के बाद व्रती रात को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर और रोटी खाती हैं.
खरना को लोहंडा भी जाता है कहा
खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण. इसे लोहंडा भी कहा जाता है. खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है. छठ पर्व बहुत कठिन माना जाता है और इसे बहुत सावधानी से किया जाता है. माना जाता है कि जो भी व्रती छठ के नियमों का पालन करती हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बता दें कि, नहाय-खाय वाले दिन घर को साफ कर व्रती अगले दिन की तैयारी करती हैं.
प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का व्रत हो जाता है शुरू
खरना वाले दिन व्रती सुबह स्नान ध्यान करके पूरे दिन का व्रत रखते हैं. रात में पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इसके बाद व्रती छठ पूजा के पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं. इसके पीछे का मकसद तन और मन को छठ पारण तक शुद्ध रखना होता है.
नये चूल्हे पर बनाया जाता है प्रसाद
खरना के दिन खीर का विशेष प्रसाद बनाया जाता है. पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर बनाई जाती है, जिसे कुछ जगहों पर रसिया भी कहा जाता है. बता दें कि, मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी की आग जलाकर ये प्रसाद बनाया जाता है. इसके साथ ही रोटियां भी बनाई जाती है. वहीं, कुछ जगहों पर चावल की पिठ्ठी भी बनाई जाती है प्रसाद के रूप में जिसे व्रती ग्रहण करती है. जिसके बाद सभी लोग इस प्रसाद को खाते हैं. खरना के दिन से छठ पूजा समाप्त होने तक व्रती चादर बिछाकर जमीन पर ही सोते हैं.
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