आस्था का केंद्र 'देव सूर्य मंदिर', यहां होती है सूर्य के तीनों स्वरूप की पूजा
औरंगाबाद का प्राचीन सूर्य मंदिर ना सिर्फ लाखों श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वाश का विराट प्रतिक है, बल्कि अपनी अद्भुत स्थापत्य कला का एक अद्वितीय नमूना भी है.
highlights
- आस्था का केंद्र 'देव सूर्य मंदिर'
- सूर्य के तीनों स्वरूप की होती है पूजा
- छठ में लाखों श्रद्धालुओं की जुटती है भीड़
- अनोखे बनावट के लिए जाना जाता है मंदिर
Aurangabad:
औरंगाबाद का प्राचीन सूर्य मंदिर ना सिर्फ लाखों श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वाश का विराट प्रतिक है, बल्कि अपनी अद्भुत स्थापत्य कला का एक अद्वितीय नमूना भी है. बिना सीमेंट-गारा के एक पत्थर के ऊपर दूसरे पत्थर को रख कर बनाया गया 100 फीट ऊंचा ये मंदिर सैंकड़ों सालों से अडिग और निश्चल खड़ा है. ये अनोखा मंदिर अपनी स्थापत्य कला के साथ ही अपनी खूबसूरती के लिए पूरे देश में जाना जाता है. मंदिर की खासियत ये है कि यहां भगवान भास्कर के तीनों स्वरूप यानी उदयाचल, मध्याचल और अस्ताचल स्वरूपों की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी भक्त यहां आकर सच्चे मन से भगवान भास्कर की पूजा अर्चना करे. उसकी सभी मुरादें पूरी होती है.
छठ में लाखों श्रद्धालुओं की जुटती है भीड़
भगवान भास्कर के तीनों स्वरूपों के चलते ये मंदिर लोक आस्था के महापर्व छठ के लिए भी श्रद्धालुओं की पहली पसंद है. इस मौके पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें 12 से 13 लाख श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है. यहां ना सिर्फ औरंगाबाद और आसपास के जिलों के बल्कि दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर से लगभग 50 मीटर की दूरी पर सूर्यकुंड तालाब भी है जो अपने आंचल में अक्षुण्ण गरिमा समेटे है. मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग का नाश होता है साथ ही पुत्र रत्न की प्राप्ति भी होती है. छठ के मौके पर इस कुंड के चरों और श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ उमड़ती है कि इसके घाटों पर तील रखने तक की जगह नहीं होती.
भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना
सूर्य देव के इस मंदिर से लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि सिर्फ छठ के मौके पर ही नहीं बल्कि आम दिनों में भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. हर दिन सैंकड़ों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना कर भगवान से आशीर्वाद लेते हैं.
रिपोर्ट : अतुल कुमार सिंह
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