बिहार पहुंचते-पहुंचते घट जाती है गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा

मौलिक गंगाजल की पहचान उसमें उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा से होती है.

मौलिक गंगाजल की पहचान उसमें उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा से होती है.

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yogesh bhadauriya
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बिहार पहुंचते-पहुंचते घट जाती है गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा

प्रतीकात्मक तस्वीर( Photo Credit : News State)

बिहार में गंगा नदी में मौलिक गंगाजल नहीं बह रहा है. वाराणसी के बाद गंगा में उसकी सहायक नदियों का पानी ही बह रहा है. मौलिक गंगाजल की पहचान उसमें उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा से होती है. उत्तराखंड में गंगा और उसमें मिलने वाली सहायक नदियों के जल में ऑक्सीजन की मात्रा 15-16 पार्ट प्रति मिलियन (पीपीएम) तक रहती है. वहीं, बिहार में आते-आते गंगा के पानी (बीच धार) में ऑक्सीजन की औसत मात्रा सात पीपीएम तक सिमट गयी है.

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ऑक्सीजन की यह मात्रा गंगा के विशुद्ध जल से काफी कम और सामान्य नदियों की तरह है. प्रदेश के अधिकतर गंगा घाटों के किनारे पर ऑक्सीजन की मात्रा चार पीपीएम से भी नीचे है. आइआइटी (बीएचयू), वाराणसी के रिटायर्ड जल विज्ञानी ने बताया कि भीम गोड़ा से नीचे नरौरा (यूपी) आते-आते नेचुरल (मौलिक) गंगाजल खत्म हो जाता है. उन्होंने बताया कि इसकी वजह केवल गंगा में बहाया जा रहा जल-मल है.

बढ़ी गंदगी

बिहार में गंगा और उसमें गिरने वाली नदियों में टोटल कॉलीफार्म और फीकल कॉलीफार्म की संख्या सामान्य से 30 से 50 गुना तक है. पिछले एक साल में टोटल कॉलीफार्म और फीकल कॉलीफार्म की संख्या 10 से 25-30 गुना तक बढ़ी है. इस तरह गंगा में बैक्टीरिया की संख्या लगातार बढ़ रही है, जबकि गंगा के पानी का दुर्लभ गुण उसका बैक्टीरिया से मुक्त होना ही है.

टोटल कॉलीफार्म -कॉलीफार्म बैक्टीरिया की संख्या पानी की शुद्धता का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है. मोस्ट प्रोबेबल नंबर (एमपीएन)/प्रति 100 एमएल में इनकी गणना की जाती है. पीने के पानी में इनकी अधिकतम मात्रा 50 एमपीएन प्रति 100 एमएल और नहाने के लिए इनकी मात्रा 500 एमपीएन प्रति 100 एमएल होनी चाहिए. नहाने के लिए अधिकतम 5000 एमपीएन स्वीकार्य है.

Source : News State

river Ganga
      
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