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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम आते ही राज्य की राजनीति में हलचल बढ़ गई है. एक ओर जहां महागठबंधन और एनडीए अपने-अपने प्रदर्शन की समीक्षा में जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह को पार्टी से निलंबित कर दिया है. शनिवार, 15 नवंबर को जारी आदेश में पार्टी ने स्पष्ट किया कि यह कदम “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के कारण उठाया गया है और सिंह को एक सप्ताह के भीतर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है.
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आर.के. सिंह पर गिरी कार्रवाई की गाज
आर.के. सिंह, जो ऊर्जा मंत्री तथा पूर्व केंद्रीय गृह सचिव रह चुके हैं, लंबे समय से पार्टी के अंदरूनी मुद्दों पर खुलकर बोलते रहे थे. उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान ही भ्रष्टाचार, गुटबाजी और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर एनडीए के कई नेताओं पर तीखे आरोप लगाए थे. मोकामा में हुई हिंसा को उन्होंने कानून-व्यवस्था की नाकामी और चुनाव आयोग की बड़ी विफलता बताया था.
इसके अलावा, उन्होंने चुनावी रैलियों में सरकार पर करीब 60,000 करोड़ रुपये के घोटाले का गंभीर आरोप लगाकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. पार्टी की मानें तो यही बेवजह की बयानबाज़ी संगठन के हितों के विपरीत गई, जिसके चलते कठोर कार्रवाई अनिवार्य हो गई.
अग्रवाल परिवार पर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई
सिर्फ आर.के. सिंह ही नहीं, बीजेपी ने अपने दो और महत्वपूर्ण नेताओं एमएलसी अशोक कुमार अग्रवाल और कटिहार की मेयर उषा अग्रवाल को भी निलंबित कर दिया है. पार्टी का आरोप है कि चुनाव के समय दोनों ने संगठनात्मक निर्देशों की अनदेखी की.
अशोक अग्रवाल पर अपने बेटे सौरव अग्रवाल को कटिहार सीट से वीआईपी पार्टी के टिकट पर उतारने का आरोप है, जिसे बीजेपी ने सीधा-सीधा “पार्टी विरोधी कदम” माना. यह कदम गठबंधन की रणनीति और सीट तालमेल को कमजोर करने वाला बताया जा रहा है.
अनुशासन के संदेश की राजनीति
तीनों नेताओं से एक सप्ताह के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया है. चुनावी हार और बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच यह कदम यह स्पष्ट संकेत देता है कि बीजेपी चुनाव के बाद संगठन में अनुशासन और एकजुटता को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहती है. पार्टी का यह रुख यह भी दर्शाता है कि वह आंतरिक असंतोष या व्यक्तिगत एजेंडा को किसी भी कीमत पर बढ़ने नहीं देना चाहती, खासकर उस समय जब बिहार में विपक्ष सत्ता समीकरणों को दोबारा गढ़ने की कोशिश कर रहा है.
आगे की राह
बीजेपी की यह कार्रवाई आगामी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जहां पार्टी संगठनात्मक मजबूती, नेतृत्व की विश्वसनीयता और सहयोगियों के बीच तालमेल पर जोर देना चाहती है. अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि निलंबित नेताओं का जवाब क्या होता है और पार्टी आगे उनके भविष्य को लेकर क्या फैसला लेती है.
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