बिहार : 'हलो सखी चेन' के जरिए महिलाएं लड़ रही कोरोना की जंग

मुजफ्फरपुर की दर्जनों ग्रामीण महिलाएं अपने 'हलो सखी चेन' के माध्यम से हर दिन सैकड़ों परिवारों को इस बीमारी से बचने के लिए जागरूक कर रही हैं.

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yogesh bhadauriya
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प्रतीकात्मक तस्वीर( Photo Credit : News State)

आज जहां पूरा देश या यूं कहें पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है, वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर की महिलाओं ने मोबाइल फोन को ही कोरोनावायरस से लड़ने के लिए एक हथियार बना लिया है. मुजफ्फरपुर की दर्जनों ग्रामीण महिलाएं अपने 'हलो सखी चेन' के माध्यम से हर दिन सैकड़ों परिवारों को इस बीमारी से बचने के लिए जागरूक कर रही हैं.

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ये महिलाएं, हालांकि कम पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन फोन पर यह अच्छे तरीके से बात करती हैं और इस लॉकडाउन के दौरान गांव में बाहर से आने वाले लोगों की जानकारी भी अधिकारियों को उपलब्ध करा रही हैं.

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जिले की बोचहां की रहने वाली 35 वर्षीय महिला रोशनी कुमारी अपने पास के ही गांव में रहने वाली एक अन्य महिला को फोनकर समझा रही हैं, " हेलो, हम बोचहा से रोशनी बोल रही हूं. क्या आप कोरोना के बारे में जानती हैं. आपको घबराने की बजाय थोड़ा एहतियात बरतने की जरूरत है. सबकुछ ठीक हो जाएगा. आपको गांवों में आने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति के बारे में प्रशासन को सूचित करना होगा."

रोशनी ऐसे ही कई जान पहचान वाली महिलाओं को फोनकर कोरोना से बचाव की सलाह दे रही थी, कि वह लोगों से सामाजिक दूरी बनाए रखें. इन गांव की महिलाओं ने लोगों को जागरूक करने के लिए 'हलो सखी चेन' बनाया है. इस चेन के माध्यम से एक दिन में एक महिला 20 से 30 परिवारों का हालचाल पूछ रही हैं. इन महिलाओं ने मैथिली, भोजपुरी, बज्जिका जैसी क्षेत्रीय भाषा में जागरूकता गीत भी बनाए हैं. इन गीतों के जरिये भी मोबाइल फोन से लोगों तक अपनी बात पहुंचा रही हैं.

'हलो सखी चेन' अभियान प्रारांभ करने वाली स्वयंसेवी संस्था ज्योति महिला सामाख्या की संयोजक पूनम कुमारी आईएएनएस से कहती हैं, "आज मोबाइल फोन सभी गांवों में हैं और सभी महिलाओं के पास भी है. लॉकडाउन में कोरोना से लड़ने का इसी को हमने साधन बनाया. ये महिलाएं अपने क्षेत्र के बारे में बेहतर जानती हैं. सभी स्थानीय भाषा में बात कर सकती हैं."

वे कहती हैं कि जिले के 17 में से बोचहां, मीनापुर, बंदरा समेत छह प्रखंडों में इस अभियान के तहत लोगों को जागरूक किया जा रहा है. बाहर से आने वाले लोगों को तथा उनके परिजनों को भी यह महिलाएं 14 दिनों तक अलग रखने की सलाह भी दे रही हैं.

बांदरा प्रखंड के रामपुरदयाल की रहने वाली रागिनी कहती हैं, "इस अभियान में 25 से 30 महिलाएं जुड़ी हैं, जो दिन के 10 बजे तक घर का काम निपटाकर लोगों को फोन करने का काम शुरू करती हैं. यह काम चार बजे शाम तक चलता है. इस अभियान में शामिल प्रत्येक महिलाएं कम से कम 20 लोगों को फोन कर रही हैं."

वे कहती हैं कि सभी लोगों की अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां हैं, जिसे हम निभा रहे हैं. सभी कुछ सरकार पर नहीं छोड़ सकते हैं. उन्होंने दावे के साथ कहा कि लोगों को समझाना का काम जितना ठीक ढ़ंग से महिलाएं कर सकती हैं, उतना पुरूष नहीं कर सकते.

Source : News State

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