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दशकों पुरानी समस्या बाढ़-सुखाड़ से निपटेगा बिहार, बन गया है 'मास्टरप्लान'

पटना में भारतीय प्रबंध संस्थान बोध गया और जल संसाधन विभाग के बीच प्रबंधन और कौशल विकास के प्रशिक्षण के लिए MOU साइन किया गया है.

Updated on: 01 Oct 2022, 09:38 AM

Patna:

पटना में भारतीय प्रबंध संस्थान बोध गया और जल संसाधन विभाग के बीच प्रबंधन और कौशल विकास के प्रशिक्षण के लिए MOU साइन किया गया है. दशकों से बाढ़ और सुखाड़ जैसी समस्या से जूझ रहे बिहार में अब योजनाएं और तेजी से पूरी होंगी. इसी मकसद से बिहार के जलसंसाधन विभाग ने एक बड़ी पहल की है. जलसंसाधन विभाग ने IIM बोधगया के साथ MOU किया है. इस MOU के तहत IIM बोधगया विभाग के नव नियुक्त 300 इंजीनियर को बेहतर ट्रेनिंग देंगे. ट्रेनिंग में योजनाओं को समय पर पूरा करने, अचानक डैम या तटबंध टूटने जैसी समस्या से निपटने, डैम बनाते वक्त तकनीकी पहलुओं पर गौर करने की ट्रेनिंग दी जाएगी.

इस मौके पर जल संसाधन मंत्री संजय झा ने बताया कि किसी भी योजना को तय समय पर करने से समय और जनता के पैसे की बचत होती है. उनके विभाग का लक्ष्य है कि सभी बड़ी योजना तय समय पर पूरा हो. इस मौके पर संजय झा ने उदाहरण देते हुए बताया कि बिहार के पहले और देश के सबसे बड़े रबर डैम को तैयार कर दिया गया. डैम को अक्टूबर 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन बाद में सीएम ने इसे पितृपक्ष मेला 2022 से पहले पूर्ण कराने का निर्देश दिया। जिसके बाद 8 सितंबर 2022 को ही सीएम नीतीश ने उद्घाटन किया.

वहीं, इससे पहले पटना के बिहटा स्थित आईआईटी पटना में जल संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से बाढ़ और सुखा प्रबंधन पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने कहा कि आईआईटी के इंजिनियरों से बातचीत करके बिहार में बाढ़ की वजह से जान-माल के नुकसान से बचाने के लिए एक नयी तकनीक इजाद करने की गुजारिश की. उन्होंने कहा कि आईआईटी पटना बाढ़ की विभीषिका को रोकने में एक अहम रोल अदा कर सकते हैं. उन्होंने आगे कहा कि एक ऐसी तकनीक की खोंज की जाए, जिसमें बाढ़ की विभीषिका से कम नुकसान हो.

बिहार के दर्जनभर जिले कमोबेश हर साल बाढ़ के पानी से तबाह रहते हैं. दूसरे राज्य भी बाढ़ की समस्या से जूझ रहे हैं, या जूझते रहे हैं. तमाम सरकारें बाढ़ प्रबंधन की कोशिशें करती हैं. लाखों–करोड़ों रुपये खर्च करती हैं. मगर हालात में खास परिवर्तन नहीं दिखता, लेकिन विभाग की योजनाओं को अगर समय से पूरा किया जाए तो बिहार को बाढ़ और सुखाड़ जैसी समस्या से निजात मिलना संभव हो सकता है.

बाढ़-सुखाड़ से निपटने का 'मास्टरप्लान'
गंगा जल लिफ्ट योजना जैसी कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की शुरूआत.
गया, बोधगया, राजगीर और नवादा शहरों में गंगा नदी के अधिशेष पानी लाया गया.
गंगा नदी के पानी को पीने योग्य पानी के रूप में उपलब्ध कराया जाता है.
समय से पहले बिहार और देश के पहले रबर डैम की शुरुआत.
2023 के बजाए सितंबर 2022 में ही गया में रबर डैम की शुरुआत की गई.
411 मीटर लंबा, 95.5 मीटर चौड़ा और 3 मीटर उंचा रबर डैम का निर्माण.
रबर डैम बनने से मोक्षदायिनी फल्गु में सालों भर पानी रहेगा.
मनसरवा नाले का निर्माण भी सिर्फ 55 दिनों में पूरा कराया गया.
कोसी प्रोजेक्ट के तहत भी जगह-जगह तटबंधों का निर्माण.

बिहार में बाढ़ की विभीषिका
बिहार में हर साल बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित होते हैं. राज्य को हजारों-करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ता है. बाढ़ का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाला पानी है. मानसून में नेपाल से आने वाली नदियों में उफान होता है. इससे बिहार का बड़ा हिस्सा बाढ़ से प्रभावित होता है. हर साल सरकार तटबंध पर तेजी से काम कराती है, लेकिन बारिश की तेज धारा में कई तटबंध बह जाते हैं. 2021 में 13 नदियों पर 3790 किमी एरिया में तटबंध बने. निर्माण, मरम्मत पर हर साल औसतन 156 करोड़ का खर्च होता है. राज्य 1979 से अब तक हर साल बाढ़ की चपेट में आ रहा है. 38 में से 24 जिले नदियों में आए उफान से प्रभावित होते हैं. वहीं, लगभग 12 जिले पूरी तरह से प्रभावित होते हैं.

रिपोर्ट : आदित्य झा