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Bihar Politics: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होना है. इसको लेकर तैयारियां भी जोरों पर हैं. एक तरफ चुनाव आयोग चुनावी तैयारियों में जुटा है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल भी अपने-अपने घोषणपत्र तैयार करने में लगे हैं. यही नहीं कुछ जोड़-तोड़ भी किए जा रहे हैं. लेकिन इनसबके बीच एक बार फिर चिराग पासवान ने अपना ध्यान सबकी ओर खींच लिया है. बिहार की राजनीति में एक बार फिर से जबरदस्त हलचल मच गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने अपनी चुनावी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है.
नालंदा के राजगीर में रविवार को आयोजित 'बहुजन भीम संकल्प समागम' में चिराग पासवान ने ऐलान किया कि वो खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि गठबंधन के तहत उम्मीदवार उतारेंगे. अब उनके अचानक इस यूटर्न को लेकर राजनीतिक अटकलें भी तेज हो गई हैं. आखिर क्यों चिराग ने ये पलटी मारी है. पहले उन्होंने खुद कहा था कि वह इस बार विधानसभा चुनाव लड़ेगे. क्या नीतीश कुमार का कोई संकेत या संदेश या फिर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से मिला कोई दिशा निर्देश आइए जानते हैं आखिर क्या कारण हो सकते हैं.
पहले थे मैदान में उतरने को तैयार
अब से कुछ समय पहले तक चिराग पासवान खुद को बिहार की राजनीति में बतौर प्रत्याशी पेश करने के लिए तैयार दिख रहे थे. उन्होंने कई बार मंच से कहा था कि "मैं चुनाव लड़ूंगा", जिससे साफ संकेत मिलते थे कि वह विधानसभा चुनाव में खुद उतरेंगे. उनके इस फैसले को लेकर सत्तारूढ़ दल के नेताओं की बेचैनी भी साफ दिखाई दे रही थी.
अचानक क्यों बदला स्टैंड?
राजगीर की रैली में चिराग पासवान ने अचानक यू-टर्न ले लिया और कहा- “मैं बिहार से चुनाव नहीं लडूंगा, लेकिन बिहार के लिए चुनाव लडूंगा। मैं गठबंधन के तहत सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारूंगा।”
उनके इस बयान के बाद यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर चिराग ने अपना स्टैंड क्यों बदला? क्या यह महज रणनीतिक फैसला है या फिर किसी राजनीतिक दबाव का नतीजा?
नीतीश कुमार पर बढ़ा था दबाव?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चिंता बढ़ गई थी. एनडीए में चिराग की सक्रियता और उनका आक्रामक रुख, नीतीश के लिए एक नई चुनौती बन सकता था. खासकर तब, जब चिराग ने खुद को “मोदी का हनुमान” कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब दिखाने की कोशिश की.
इससे गठबंधन में ताकत के समीकरण बदल सकते थे और जेडीयू को खुद की स्थिति मजबूत करनी पड़ती. यही वजह हो सकती है कि अब चिराग ने एक कदम पीछे खींच लिया हो, लेकिन सियासत में हर कदम की एक रणनीति होती है.
फिलहाल पत्ते नहीं खोलेंगे
सूत्रों की मानें तो चिराग के चुनाव लड़ने से एनडीए को नुकसान हो सकता था, क्योकि नीतीश इस डर में किसी भी तरह का कोई फैसला ले सकते थे. लिहाजा चिराग को फिलहाल किसी भी तरह के पत्ते न खोलने का संदेश मिला हो. यह भी एक कारण हो सकता है कि चिराग ने यूटर्न लेकर नीतीश को संतुष्ट कर दिया हो.
तेजस्वी यादव पर हमला
अपने संबोधन में चिराग पासवान ने विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि विपक्ष उनसे डरता है और बार-बार पूछता है, “क्या चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे?” उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “न मैं टूटने वाला हूं, न झुकने वाला हूं और डरता तो भैया, मैं किसी से नहीं.”
रणनीति के पीछे का असली मकसद
चिराग पासवान की यह रणनीति उनके लिए लाभकारी हो सकती है. खुद चुनाव न लड़कर वे पार्टी के सभी प्रत्याशियों पर फोकस कर सकेंगे, जिससे पूरे राज्य में उनकी पकड़ मजबूत हो सकेगी. साथ ही, गठबंधन के भीतर दबाव बनाए रखना भी एक अहम कारण हो सकता है.
चिराग पासवान का यह यू-टर्न महज एक 'बैकफुट' का संकेत नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. वह खुद को बिहार की राजनीति में एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित करने में जुटे हैं- भले ही वे चुनावी मैदान में सीधे न उतरें, लेकिन पर्दे के पीछे से खेल जरूर तय करेंगे.
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