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Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. एक तरफ वोटर लिस्ट को लेकर विवाद ने चुनाव से पहले सियासी पारा हाई कर दिया है तो वहीं अब महागठबंधन में भी दरार दिखाई देने लगी है. दरअसल पूर्णिया से निर्दलीय सांसद और जन अधिकार पार्टी के संस्थापक पप्पू यादव ने हाल ही में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद एक ऐसा बयान दिया जिसने महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव को एकमात्र चेहरा मानने से इनकार कर दिया. यही नहीं उन्होंने कांग्रेस के नेताओं में राजेश राम और तारिक अनवर को संभावित उम्मीदवारों के रूप में सामने रखा.
पप्पू यादव ने छेड़ दिया नया राग
अब तक ये माना जा रहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव होंगे. लेकिन राजद से नाराजगी के बीच पप्पू यादव ने तेजस्वी के साथ बड़ा खेला कर दिया है. उन्होंने दलित चेहरा सामने रख कर नई चिंगारी को हवा दे दी है. खास बात यह है कि ये दोनों ही चेहरे कांग्रेस के हैं. ऐसे में कांग्रेस और राजद के बीच खींचतान हो सकती है. सीट बंटवारे को लेकर भी इन दोनों में तनातनी हो सकती है.
तेजस्वी बनाम कांग्रेस, क्या बन रही है नई धुरी?
राजद की ओर से जहां लगातार यह कहा गया है कि तेजस्वी यादव ही 2025 में मुख्यमंत्री पद के लिए महागठबंधन का चेहरा होंगे, वहीं पप्पू यादव का हालिया बयान कांग्रेस की अंदरूनी रणनीति की ओर संकेत करता है. पप्पू ने यह भी साफ कर दिया कि वह स्वयं मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस को किसी विकल्प की तलाश जरूर करनी चाहिए. इस बयान से राजद और कांग्रेस के बीच चल रही खींचतान अब सार्वजनिक हो गई है.
तेजस्वी के लिए क्यों ज्यादा मुश्किल
तेजस्वी के लिए पप्पू यादव के बयान के साथ-साथ मौजूदा राजनीतिक गतिविधियां भी मुश्किलें बढ़ा सकती हैं. पहली अपने भाई तेजप्रताप के चलते पार्टी में असंतोष हो सकता है. तेजप्रताप का गुट भी पार्टी को जमीनी स्तर पर नुकसान पहुंचा सकता है.
वहीं दूसरी तरफ पप्पू यादव का नया राग भी तेजस्वी के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है. हालांकि महागठबंधन के पास फिलहाल तेजस्वी से मजबूत चेहरा दूसरा नहीं है. इसके अलावा प्रशांत किशोर की पार्टी भी तेजस्वी के लिए एक चुनौती बन सकती है. हालांकि पीके का फोकस जेडीयू को नुकसान पहुंचाना दिख रहा है. लेकिन राजनीति में कभी भी पासे पलट सकते हैं.
कांग्रेस को मजबूत करने की कवायद
पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया है और अब वह खुद को कांग्रेस की राजनीति में एक मजबूत समीकरण के तौर पर पेश कर रहे हैं. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात के बाद उन्होंने दावा किया कि उन्हें शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने राजेश राम को प्रमुख भूमिका में लाने और सीमांचल क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ मजबूत करने की वकालत की.
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि कांग्रेस बिहार में राजद की छाया से बाहर आकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहती है. पार्टी अब केवल सहयोगी दल के रूप में नहीं, बल्कि निर्णय लेने वाली शक्ति के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है.
महागठबंधन में तनाव की वजहें
पप्पू यादव के इस बयान से पहले भी महागठबंधन में तनाव के संकेत मिल चुके हैं. हाल ही में हुए बिहार बंद में पप्पू और कन्हैया कुमार की मंच पर अनदेखी ने मतभेद को और उजागर कर दिया था. राजद प्रवक्ताओं ने भले ही इसे खारिज किया हो, लेकिन कांग्रेस की चुप्पी इस बात का संकेत है कि सब कुछ ठीक नहीं है.
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