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Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले ही सियासी हलचलें तेज हो चुकी हैं. राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वोटर यात्रा के जरिए बिहार की जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो उनका साथ देने के लिए राजद नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. लेकिन उन दोनों की इस जोड़ी के बीच तीसरे किसी को जगह नहीं मिल रही है.
पटना में सोमवार को महागठबंधन की ओर से आयोजित ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन कार्यक्रम एक बार फिर राजनीतिक हलचलों से भर गया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित कई विपक्षी नेताओं ने मंच से केंद्र और राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला. लेकिन इस दौरान एक प्रदेश के एक दिग्गज नेता को मंच पर जगह नहीं मिली. इस अनदेखी ने फिर सियासी पारा हाई कर दिया है.
खतरे में लोकतंत्र
वोटर यात्रा के समापन के मौके पर इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने आरोप लगाया है कि बिहार में मतदाताओं के अधिकारों का हनन हो रहा है. यही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि लोकतंत्र खतरे में है. हालांकि विपक्ष के इन आरोपों से ज्यादा ध्यान अगर किसी बात ने खींचा तो वह था प्रदेश के कद्दावर नेता पप्पू यादव की अनदेखी का. जी हां पप्पू यादव को राहुल-तेजस्वी के मंच पर एक बार फिर जगह नहीं मिली.
पप्पू यादव को फिर नहीं मिली मंच पर जगह
कार्यक्रम में सबसे चर्चित और विवादित पहलू था जन अधिकार पार्टी (JAP) के सुप्रीमो पप्पू यादव को मंच से दूर रखना. भले ही वे बिहार की जनता के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं, लेकिन एक बार फिर उन्हें महागठबंधन के मुख्य मंच पर जगह नहीं दी गई.
इस अनदेखी के बाद पप्पू यादव ने भीड़ के बीच सड़क पर कुर्सी लगाकर बैठने का फैसला किया और आम जनता की तरह भाषण सुना. यह दृश्य बिहार की राजनीति में एक गहरी तस्वीर पेश कर गया जहां एक प्रभावशाली नेता को जानबूझकर अलग-थलग किया जा रहा है.
हालांकि अब तक इस पर पप्पू यादव की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई और न ही महागठबंधन की ओर से उनकी अनदेखी को लेकर कोई तर्क दिया गया है. लेकिन सियासी हलकों में पप्पू यादव का जनता के बीच बैठकर भाषण सुनना ही आने वाले चुनाव पर असर डाल सकता है.
क्या है ‘वोटर अधिकार यात्रा’?
‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत राहुल गांधी ने 17 अगस्त को की थी. इसका उद्देश्य बिहार में मतदाता सूची से बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने के खिलाफ आवाज उठाना था. विपक्ष का दावा है कि विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया के दौरान लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए.
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