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बरसाने ही नहीं बिहार की भी यह होली है मशहूर, छतरी के नीचे लोग गुपचुप करते हैं ये काम

बरसाने की होली तो देशभर में मशहूर है ही, इसके इतर बिहार में भी अनोखी होली खेली जाती है. बिहार के समस्तीपुर जिले में बांस की छतरी के नीचे लोग होली खेलते हैं. इसकी तैयारी बसंतपंचमी के बाद से ही शुरू हो जाती है. आइए हम आपको बताते हैं कि बांस की छतरी वाल

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Ritu Sharma
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छतरी होली( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

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होली का नाम सुनते ही लोगों का मन रंगों से सराबोर हो जाता है, रंगों के त्योहार होली पर लोग इतने उत्साहित हो जाते हैं कि लोग उम्र कि सीमा और जातिगत भेदभाव को भूल जाते हैं और होली के रंगों में डूब जाते हैं. कुछ ऐसी ही रंगों का खुमार चढ़ने वाली होली बिहार के समस्तीपुर में खेली जाती है जो हर जगह मशहूर है. बता दें कि बिहार में रंगों का ये त्योहार होली ऐसी खेली जाती है जिसको देखने हर जगह से लोग आते हैं, जो 'छतरी होली' के नाम से मशहूर है. इस छतरी होली में इतना उत्सव होता है कि एक बड़ी छतरी के नीचे दर्जनों लोग एक साथ खड़े होकर एकरंग में डूब जाते हैं. बाबा निरंजन स्थान के लिए मशहूर बिहार के समस्तीपुर की होली, पटोरी के धामों की होली बरसती है और वृंदावन की याद दिलाती है. यहां जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर लोग एक-दूसरे से मिलकर इसके साक्षी बनते हैं और रंगों में दुब जाते हैं.

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ऐसे खेली जाती है छतरी होली

आपको बता दें कि छतरी होली में बताया जाता है कि बांस की छतरी बनाई जाती है जो इतनी बड़ी होती है कि उसके नीचे दो दर्जन लोग खड़े होकर होली के गीत गा सकते हैं. पुरे गांव में जितनी टोली, उतनी छतरी बनती है. इन सभी में बेहतरीन छतरी के लिए भी होड़ लगी रहती है. बता दें कि शाहपुर पटोरी अनुमंडल के धमौन का नाम धौम्य ऋषि के नाम पर पड़ा है. साथ ही इस छतरी होली की परंपरा भी प्राचीन काल से चलती आ रही है. इसकी तैयारी करीब एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती है, इसमें एक छाता बनाने में कम से कम पांच हजार का खर्च आता है इसे आकर्षक बनाने के लिए रंगीन कागज, थर्माकोल, घंटियां और डिजाइनर कागज का इस्तेमाल किया जाता है.

कुलदेवता को ऐसे गुलाल चढ़ाने की परंपरा

आपको बता दें कि वहां के छतरी होली को लेकर गांव के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि यह होली करीब सौ साल पहले से मनाई जा रही है. कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस प्रकार की होली 16वीं शताब्दी से मनाई जा रही है, लेकिन छतरियों को नया रूप लगभग 1930 में दिया गया था. उस वक्त पहली सुसज्जित छतरी नबुदी राय के घर से निकाली गई थी. आपको बता दें कि होली की सुबह ग्रामीण अपने कुलदेवता स्वामी निरंजन मंदिर में छाता लेकर इकट्ठा होते हैं और अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं. वहां 'धम्मर' और 'फाग' गाते हैं साथ ही मंदिर परिसर में छतरी मिलन का भी परम्परा निभाते हैं.छतरियों को कलाबाजी के साथ घुमाया जाता है. घंटियों से पूरा इलाका गुंजायमान हो जाता है. इसके बाद यह शोभायात्रा में बदल जाती है और खाते-पीते हर घर में पहुंच जाती है. देर शाम झांकियां महादेव के धाम पहुंचती हैं, जहां आधी रात के बाद लोग चैता गाकर होली का समापन करते हैं.

इस परंपरा को लेकर लोगों की कई मान्यताएं

साथ ही आपको बता दें कि स्थानीय ग्रामीण और पूर्व विधायक अजय कुमार बुलगानिन ने बताया कि ऐसी होली की शुरुआत उनके परिवार से हुई थी. अब इसका रूप और विस्तृत हो गया है. साथ ही गांव के इंद्रदेव राय के मुताबिक ऐसी होली के आयोजन से इष्ट देव प्रसन्न होते हैं. गांव अधिवक्ता शंकर राय का कहना है कि इस होली को संरक्षित और लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार को सकारात्मक कदम उठाने चाहिए.

HIGHLIGHTS

  • बिहार के समस्तीपुर की छतरी होली  
  • प्रसिद्ध है इसकी परंपरा
  • एक छतरी में आधा दर्जन लोग खेलते हैं होली 

Source : News State Bihar Jharkhand

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