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Bihar Farmers: मौसम की मार, अन्नदाता लाचार, बाढ़ के बाद सुखाड़ से हाहाकार

बिहार में बाढ़ के बाद सुखाड़ ने हाहाकार मचा दिया है. गया में तो धान रोपनी पर संकट छा गया है. इंद्र देव की नाराजगी जिले के किसानों को भारी पड़ रही है, जहां खेतों में दरार और किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लग गई है.

Updated on: 01 Aug 2023, 03:37 PM

highlights

  • मौसम की मार, अन्नदाता लाचार
  • बाढ़ के बाद सुखाड़ से हाहाकार
  • गया में सिर्फ 2.9 प्रतिशत हुई रोपनी

Gaya:

Bihar Farmers: बिहार में बाढ़ के बाद सुखाड़ ने हाहाकार मचा दिया है. गया में तो धान रोपनी पर संकट छा गया है. इंद्र देव की नाराजगी जिले के किसानों को भारी पड़ रही है, जहां खेतों में दरार और किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लग गई है. वहीं, गया में इस साल सुखाड़ के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. बारिश ना होने से किसान बेहद परेशान हैं क्योंकि जिले में धान की रोपाई तय लक्ष्य से सिर्फ 3 फीसदी तक ही हो पाई है. आपको बता दें कि गया में धान की रोपनी 1 लाख 90 हजार 186 हेक्टेयर में होनी थी, लेकिन अभी तक सिर्फ 4 हजार 352 हेक्टेयर में ही रोपाई हो सकी है. 

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मौसम की मार, अन्नदाता लाचार

यानी तय लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 2.9 फीसदी धान की रोपनी हुई है, कम बारिश की वजह से किसान धान की रोपाई नहीं कर पा रहे हैं. जिले में 300 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अभी तक महज 200 मिलीमीटर बारिश जिले में हुई है.

बाढ़ के बाद सुखाड़ से हाहाकार

सावन महीने में हर साल अब तक 70 फीसदी तक रोपनी हो जाती थी, लेकिन इस बार आधा सावन बीत जाने के बाद भी रोपनी नहीं हो पाई है. ऐसे में धान की फसल को लेकर किसानों की उम्मीद टूटने लगी है. जिले में अगर बारिश हो भी रही है तो वो रुक-रुक कर हो रही है. लिहाजा क्यारियां भर ही नहीं रही. गया के किसान हताश और परेशान हैं. बारिश ना होने से अन्नदाता के चेहरे मुरझा गए हैं. 

गया में सिर्फ 2.9 प्रतिशत हुई रोपनी

अन्नदाता को डर सता रहा है कि अगर बारिश नहीं हुई, तो पूरे साल उनकी थाली में रोटी कहां से आएगा. परिवार कैसे चलेगा? गुजारा कैसे होगा? हालांकि सरकार की ओर से किसानों को मदद मुहैया कराने की बात कही जा रही है. किसानों को अभी वादों की नहीं. मदद की दरकार है. बारिश हो नहीं रही. जरूरत है कि सरकार की ओर से किसानों को सिंचाई की सुविधा दी जाए ताकि पूरे देश का पेट भरने वाले अन्नदाता की रोटी पर मौसम की मार ना पड़े.