Bihar Politics: बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज होते ही सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति में जुट गए हैं. विपक्षी दलों ने जहां मिलकर वोटर अधिकार यात्रा शुरू की है, वहीं सत्ता पक्ष यानी एनडीए खेमे में सीटों के तालमेल को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही. इस बीच लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं.
नीतीश सरकार पर चिराग का हमला
चिराग पासवान लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने हाल के महीनों में कई हत्याओं और अपराध के मामलों को राज्य सरकार की नाकामी करार दिया. उनके इस रुख ने जेडीयू और हम (सेकुलर) जैसे सहयोगियों को असहज कर दिया है. खास बात यह है कि भाजपा ने भी चिराग की आलोचनाओं पर खुला समर्थन देने से परहेज किया और केवल संयमित प्रतिक्रिया देना ही उचित समझा.
एनडीए में ‘दोहरी भूमिका’
चिराग की राजनीति एनडीए के लिए दोधारी तलवार साबित हो रही है. एक ओर वे गठबंधन का हिस्सा हैं, तो दूसरी ओर सरकार की आलोचना कर विपक्ष जैसी भूमिका निभा रहे हैं. 2020 के चुनाव में भी चिराग ने अकेले मैदान में उतरकर जेडीयू को बड़ा नुकसान और भाजपा को परोक्ष रूप से फायदा पहुंचाया था. इस बार भी उनके तेवर कुछ वैसे ही दिखाई दे रहे हैं.
दबाव की रणनीति और जनसंपर्क अभियान
चिराग पासवान ने हाल ही में चिराग का चौपाल नामक जनसंपर्क अभियान की घोषणा की है. इसके तहत वे गांव-गांव जाकर जनता की राय सुनेंगे और उसे पार्टी के एजेंडे से जोड़ेंगे. साथ ही उनका पुराना नारा बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट भी एक बार फिर चर्चा में है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह अभियान भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है.
सीट बंटवारे की खींचतान
एनडीए में फिलहाल सीट बंटवारे पर कोई अंतिम फार्मूला तय नहीं हुआ है. सूत्रों के मुताबिक भाजपा 102-103 और जेडीयू 101-102 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. शेष सीटों पर चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे सहयोगियों को हिस्सेदारी दी जाएगी. जेडीयू का कहना है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव में उनकी बढ़त थी, वहां उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए.
स्पष्ट है कि चिराग पासवान अब केवल सहयोगी दल के नेता नहीं, बल्कि स्वतंत्र जनाधार वाले खिलाड़ी के रूप में अपनी छवि गढ़ रहे हैं. उनकी रणनीति भाजपा से ज्यादा सीटें और बड़ा राजनीतिक रोल हासिल करने की है. एनडीए में बने रहते हुए भी वे गठबंधन के लिए चुनौती बन गए हैं. बिहार की चुनावी तस्वीर में चिराग की यह सक्रियता भाजपा और जेडीयू दोनों के लिए संतुलन साधने की कड़ी परीक्षा साबित हो सकती है.
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