Bihar Elections 2025: देखिए, दबंग से मसीहा बने पप्पू यादव का सियासत और सेवा का सफर

Bihar Elections 2025: 1967 को मधेपुरा जिले के खुरदा करवेली गांव में जन्मे राजेश रंजन का बचपन एक जमींदार परिवार में बीता. छात्र जीवन में झगड़ों की वजह से जेल तक जाना पड़ा.

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Yashodhan.Sharma
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Bihar Elections 2025: 1967 को मधेपुरा जिले के खुरदा करवेली गांव में जन्मे राजेश रंजन का बचपन एक जमींदार परिवार में बीता. छात्र जीवन में झगड़ों की वजह से जेल तक जाना पड़ा.

Patna: बिहार की सियासत में पप्पू यादव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं. कभी पूर्णिया और कोसी की गलियों में खौफ का दूसरा नाम रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव आज खुद को गरीबों और पीड़ितों का सहारा बताते हैं. उनका जीवन उतार-चढ़ाव, आरोपों, जेल और संघर्ष से भरा है लेकिन वक्त के साथ उन्होंने अपनी एक नई छवि भी गढ़ी है.

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बाहुबल से शुरुआत

24 दिसंबर 1967 को मधेपुरा जिले के खुरदा करवेली गांव में जन्मे राजेश रंजन का बचपन एक जमींदार परिवार में बीता. छात्र जीवन में झगड़ों की वजह से जेल तक जाना पड़ा. इसी दौरान उनका संपर्क सीमांचल के दबंग अर्जुन यादव से हुआ, जिसने उन्हें अपराध की दुनिया से परिचित कराया.

12वीं की परीक्षा उन्होंने जेल से ही दी. 1987 में गुरु अर्जुन यादव की हत्या के बाद पप्पू यादव ने गैंग की कमान संभाली और सीमांचल में उनका दबदबा बढ़ता गया.

राजनीति में प्रवेश

साल 1990 में पप्पू यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सिंहेश्वर स्थान विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधायक बने. उस दौर में सीमांचल में उनका नाम ही काफी था. 1991 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया से निर्दलीय लड़े, लेकिन बूथ कब्जाने के आरोप में चुनाव रद्द कर दिया गया.

गैंगवॉर और एनएसए

90 के दशक की शुरुआत में आनंद मोहन सिंह के साथ उनकी राजनीतिक दुश्मनी गैंगवॉर में बदल गई. मंडल आयोग के मुद्दे पर दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई तेज हुई. 1992 में हुई हिंसा के बाद पप्पू यादव पर एनएसए के तहत केस दर्ज हुआ और वे अंडरग्राउंड हो गए.

प्रेम कहानी और विवाह

टेनिस खिलाड़ी रंजीत रंजन से पप्पू यादव का प्रेम भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. लंबे संघर्ष के बाद 6 फरवरी 1994 को दोनों ने शादी कर ली. बाद में रंजीत रंजन खुद कांग्रेस की सांसद बनीं.

अजीत सरकार हत्याकांड

14 जून 1998 को सीपीआई नेता अजीत सरकार की हत्या हुई. इस हत्याकांड में पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव पर आरोप लगे. सीबीआई जांच के बाद 2008 में तीनों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. हालांकि, 2013 में पटना हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया.

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