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इंजीनियर बाबू से सुशासन बाबू तक नीतीश का सियासी सफर कुछ ऐसा है

नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार की कमान संभाल रहे हैं. इनकी राजनीति पारी बेहद ही लंबी रही है. सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार पहली बार वर्ष 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

Updated on: 16 Nov 2020, 04:28 PM

नई दिल्ली :

नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार की कमान संभाल रहे हैं. इनकी राजनीति पारी बेहद ही लंबी रही है. सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार पहली बार वर्ष 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. उस वक्त बहुमत नहीं होने की वजह से सात दिनों में ही इस्तीफा दे दिया था.

-इसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर 2005 में चुनाव लड़ा और पूर्ण  बहुमत की सरकार बनाई.

-तीसरी बार 2010 में बिहार ने फिर नीतीश के नेतृत्व पर फिर भरोसा किया. नीतीश कुमार ने साल 2010 में फिर से सीएम  पद की कमान संभाली. 

 -2014 में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन न कर पाने की वजह से नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जेडीयू के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया.

-22 फरवरी 2015 को नीतीश ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

-बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने 2015 में आरजेडी के साथ गठबंधन किया.

-20 नवंबर 2015 को पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

-नीतीश ने आरजेडी का साथ छोड़कर 27 जुलाई 2017 को बीजेपी के साथ मिलकर छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

-2020 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले रहे हैं.

ये तो बात सुशासन बाबू के राजनीतिक जीवन की हुई. बात इंजीनियर बाबू से सुशासन  बाबू तक पहुंचने की करते हैं. 

नीतीश कुमार का जन्म पटना शहर से सटे बख्तियारपुर में 1 मार्च 1951 को हुआ. नीतीश कुमार ने बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई और इस दौरान वो इंजीनियर बाबू के नाम से भी जाने जाते थे.

नीतीश कुमार जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से निकले वाले नेता हैं जो बिहार की सत्ता में डेढ़ दशक तक केंद्र में रहे.

इंजीनियरिंग कॉलेज में ही उनके दोस्त और क्लासमेट रहे अरुण सिन्हा ने अपनी किताब 'नीतीश कुमारः द राइज़ ऑफ़ बिहार' में लिखा है. इस किताब में उन्होंने बताया कि  कॉलेज के दिनों में नीतीश कुमार राज कपूर की फ़िल्मों के दीवाने थे, वो इस क़दर ये फ़िल्में देखते थे कि वे इस बारे में दोस्तों की हंसी-ठिठोली भी बर्दाश्त नहीं करते थे.

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नीतीश कुमार को 150 रुपये की स्कॉलरशिप मिला करती थी जिससे वो हर महीने किताबें-मैगज़ीन खरीद लाते थे. ये वो चीज़ें होतीं जो उस वक़्त के अन्य बिहारी छात्रों के लिए सपने जैसी थीं, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी के बेटे नीतीश का झुकाव हमेशा राजनीति की ओर रहा.

लालू प्रसाद यादव और जार्ज फ़र्नांडिस की छाया में राजनीति की शुरुआत नीतीश कुमार ने की. अब उन्होंने राजनीति में 46 साल का लंबा रास्ता तय कर लिया. 

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जब 1995 में समता पार्टी को महज सात सीटें मिली तो नीतीश कुमार ने ये समझ लिया कि राज्य में तीन पार्टियां अलग-अलग लड़ाई नहीं लड़ सकतीं. इस तरह 1996 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन किया.इस वक़्त लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में नेतृत्व हुआ करता था.

इस गठबंधन का नीतीश कुमार को फ़ायदा हुआ और साल 2000 में वह पहली बार मुख्यमंत्री बने, हालांकि ये पद उन्हें महज़ सात दिन के लिए ही मिला. लेकिन इसके बाद नीतीश कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखें. वे अपने-आपको लालू यादव के ख़िलाफ़ एक ठोस विकल्प बनाने में कामयाब रहे.