Bihar News: भागलपुर का ये चावल विदेश तक जमा रहा अपनी धाक, आखिर क्यों है ये इतना खास, यहां पढ़ें

Bhagalpur Katarni Rice: भागलपुर के इस चावल ने विदेश तक अपनी छाप छोड़ी है. इसकी लोकप्रियता में तब से जबरदस्त इजाफा हुआ है जब इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला.

Bhagalpur Katarni Rice: भागलपुर के इस चावल ने विदेश तक अपनी छाप छोड़ी है. इसकी लोकप्रियता में तब से जबरदस्त इजाफा हुआ है जब इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला.

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Yashodhan.Sharma
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Bhagalpur katarni rice

representational image Photograph: (social)

Bhagalpur News: बिहार के भागलपुर जिले का प्रसिद्ध कतरनी चावल अब देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी खास खुशबू, स्वाद और मुलायमपन के लिए पहचाना जा रहा है. इसकी लोकप्रियता में तब से जबरदस्त इजाफा हुआ है जब इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला. इस टैग से न केवल इस खास किस्म के चावल की पहचान को कानूनी मान्यता मिली, बल्कि इसकी मांग और कीमत में भी बढ़त देखने को मिली है.

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मीडिया रिपोर्ट की मानें तो कतरनी चावल की खेती कुछ वर्ष पहले तक महज 500 एकड़ में सीमित थी, लेकिन अब यह क्षेत्रफल बढ़कर 3000 एकड़ तक पहुंच गया है. इससे किसानों की कमाई में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. पहले यह चावल मुख्य रूप से त्योहारों या खास अवसरों पर ही इस्तेमाल होता था, लेकिन अब यह आम बाजार में भी लोकप्रिय हो गया है.

बदलाव की शुरुआत कैसे हुई?

राज्य सरकार और कृषि विभाग ने किसानों को इस चावल की खेती के लिए प्रेरित किया. उन्हें उन्नत बीज, वैज्ञानिक तकनीक और बाजार से जुड़ाव जैसी सुविधाएं दी गईं. परिणामस्वरूप, पहले जहां कतरनी चावल की कीमत 60–80 रुपये प्रति किलो थी, अब यह 150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है.

क्यों कतरनी चावल हैं इतने खास?

कतरनी चावल की खुशबू, मिठास और मुलायम बनावट इसे आम चावलों से अलग करती है. खासतौर पर खीर बनाने में इसका स्वाद बेमिसाल होता है. इससे तैयार चूड़ा इतना नरम होता है कि इसे बिना भिगोए खाया जा सकता है.

 भागलपुर ही क्यों?

विशेषज्ञों का मानना है कि कतरनी चावल कई इलाकों में उगाया जाता है, लेकिन भागलपुर की काली दोमट मिट्टी और खास मौसम इसे खास स्वाद और खुशबू प्रदान करते हैं. यही कारण है कि यहां का कतरनी चावल एक ब्रांड बन चुका है.

इसलिए किसान भी हैं खुश

आज यह चावल सिर्फ एक पारंपरिक अनाज नहीं, बल्कि एक कृषि सफलता की कहानी बन चुका है. स्थानीय किसानों को न केवल बेहतर दाम मिल रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान मिलने से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भी बदलाव आ रहा है.

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