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51 साल बाद फिर दोहराएगा इतिहास, वोटिंग के जरिए अध्यक्ष चुनने की तैयारी!

बिहार के संसदीय इतिहास में 51 साल बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की नौबत आ सकती है. राजग की ओर से भाजपा विधायक विजय सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया है, जबकि महागठबंधन ने भी राजद के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी पर दांव लगाया है.

Updated on: 25 Nov 2020, 12:00 PM

पटना:

बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभार कर राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के हौसले बुलंद हैं. यही वजह है कि उन्होंने एनडीए के सामने महागठबंधन की ओर से विधानसभा अध्यक्ष पद का प्रत्याशी उतार दिया है. राजग और महागठबंधन दोनों के प्रत्याशी होने से बिहार के संसदीय इतिहास में 51 साल बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की नौबत आ सकती है. राजग की ओर से भाजपा विधायक विजय सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया है, जबकि महागठबंधन ने भी राजद के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी पर दांव लगाया है. दोनों ने मंगलवार को नामांकन भी दाखिल कर दिया. बुधवार को दोपहर बाद सदन में प्रोटेम स्पीकर तय करेंगे कि नए अध्यक्ष का चुनाव का तरीका क्या होगा. विपक्ष की ओर से गुप्त मतदान कराने का आग्रह किया जा सकता है. मानने या न न मानने का अधिकार प्रोटेम स्पीकर के पास है. वह ध्वनि मत से भी फैसला दे सकते हैं.

एनडीए के सभी दलों ने इसको लेकर व्हिप जारी कर दिया है. जदयू की ओर से विजय चौधरी ने व्हिप जारी किया है तो वहीं बीजेपी, हम और वीआईपी ने भी व्हिप जारी किया है. ऐसे में सभी विधायक अपने दल के समर्थन में मत के लिए बाध्य हैं. विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर लड़ाई काफी रोचक है. इससे पहले 1969 में विधानसभा के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराया गया था. ये बस कयास मात्र हैं कि सर्वसम्मति बनने पर मतदान से पूर्व शायद ही कोई एक पक्ष अपना प्रस्ताव वापस ले सकता है. संख्याबल की बात करें तो इस हिसाब से फ़िलहाल सता पक्ष का पलड़ा भारी दिख रहा है, लेकिन राजद की तरफ़ से विधायकों से अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट डालने की अपील कर मुक़ाबला रोचक बनाने की तैयारी की जा रही है. 

अगर आंकड़ों की बात करें तो एनडीए के पास 126 विधायकों का समर्थन है, जिसमें से एक निर्दलीय विधायक सुमित सिंह का भी समर्थन शामिल है. वहीं बसपा के एकमात्र जीते हुए विधायक जमा खान ने जो इशारा किया है वो भी एनडीए के लिए उत्साहवर्धक है. जमा खान ने कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष पद की एक गरिमा होती है, उसका सर्वसम्मति से चुनाव होना चाहिए. चुनाव हो रहा है ये ठीक नहीं है. लोजपा के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह के बारे में भी माना जा रहा है कि उनका झुकाव भाजपा के उम्मीदवार के तरफ़ ही होगा क्योंकि लोजपा हर बार भाजपा के समर्थन में रही है. 

राजद के उम्मीदवार अवध बिहारी चौधरी को उम्मीद है कि एनडीए में ऐसे कई विधायक हैं जिनका झुकाव उनकी तरफ़ हो सकता है. राजद के दूसरे नेता भी ऐसा ही दावा कर रहे हैं. दरअसल तेजस्वी यादव इसी बहाने एक बार फिर से अपनी ताक़त दिखाने की कोशिश में हैं और इसीलिए एनडीए के विधायकों से अंतरआत्मा की आवाज़ पर वोट की अपील कर रहे हैं. आंकड़ों की बात करे तो राजद गठबंधन के पास 110 वोट हैं. इधर, एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख़तरुल ईमान ने कहा है कि अध्यक्ष पद को लेकर चुनाव नहीं होना चाहिए. अध्यक्ष पद सत्ता धारी दल को और उपाध्यक्ष पद विरोधी दल को देना चाहिए. ऐसे में महागठबंधन को एआईएमआईएम का समर्थन लेने में मुश्किल आ सकती है. लेकिन अगर समर्थन मिल भी जाता है तो संख्या 115 पर जाकर रुक जाएगी.