बिहार : नहीं थम रहा चमकी बुखार से मासूमों के मरने का सिलसिला, संख्या बढ़कर हुई 129

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 129 हो गई है.

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 129 हो गई है.

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yogesh bhadauriya
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बिहार : नहीं थम रहा चमकी बुखार से मासूमों के मरने का सिलसिला, संख्या बढ़कर हुई 129

मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 129 हो गई है.

उत्‍तर प्रदेश के गोरखपुर और बस्‍ती मंडल में कई दशकों तक कहर बरपाने के बाद अब बिहार में बच्चों की जान ले रहा है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम. बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 129 हो गई है. जानकारी के अनुसार एसकेएमसीएच में 109 बच्चों की और केजरीवाल अस्पताल में 20 बच्चों की मौते हुई हैं.

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पूर्वांचल में जहां इस बुखार के पीछे मच्‍छरों को जिम्‍मेदार माना जाता है वहीं बिहार में कहा जा रहा है कि लीची खाने की वजह से बच्चे इस बुखार का शिकार हो रहे हैं. आइए जानते हैं चमकी बुखार और लीची में क्‍या है कनेक्‍शन..

बिहार के मुजफ्फरपुर में भारी संख्या में बच्चों की मौत के पीछे की वजहों को लेकर चिकित्सक एकमत नहीं हैं. कुछ चिकित्सकों का मानना है कि इस साल बिहार में फिलहाल बारिश नहीं हुई है, जिससे बच्चों के बीमार होने की संख्या लगातार बढ़ रही है. बच्चों के बीमार होने के पीछे लीची कनेक्शन को भी देखा जा रहा है. असली वजह है हाइपोग्लाइसीमिया यानी लो-ब्लड शुगर.

'एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम' या 'चमकी बुखार' या मस्तिष्क ज्वर से मरने वाले अधिकतर बच्चों की उम्र करीब 1 साल से 8 साल के बीच है. इस बुखार की चपेट में आने वाले सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं. अक्यूट इंसेफेलाइटिस को बीमारी नहीं बल्कि सिंड्रोम यानी परिलक्षण कहा जा रहा है, क्योंकि यह वायरस, बैक्टीरिया और कई दूसरे कारणों से हो सकता है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, अब तक हुई मौतों में से 80 फीसदी मौतों में हाइपोग्लाइसीमिया का शक है.

शाम का खाना न खाने से रात को हाइपोग्लाइसीमिया या लो-ब्लड शुगर की समस्या हो जाती है. खासकर उन बच्चों के साथ जिनके लिवर और मसल्स में ग्लाइकोजन-ग्लूकोज की स्टोरेज बहुत कम होती है. इससे फैटी ऐसिड्स जो शरीर में एनर्जी पैदा करते हैं और ग्लूकोज बनाते हैं, का ऑक्सीकरण हो जाता है. बच्चों की मौत के लिए लीची को भी दोषी ठहराया जा रहा है.

लो ब्लड शुगर का लीची कनेक्शन

  • द लैन्सेट' नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थ जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है.
  • शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़म बनने में रुकावट पैदा करते हैं. इसकी वजह से ही ब्लड-शुगर लो लेवल में चला जाता है और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं.
  • अगर रात का खाना न खाने की वजह से शरीर में पहले से ब्लड शुगर का लेवल कम हो और सुबह खाली पेट लीची खा ली जाए तो अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम AES का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

खाली पेट लीची न खाएं बच्चे

बताया जाता है कि गर्मी के मौसम में बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाके में गरीब परिवार के बच्चे जो पहले से कुपोषण का शिकार होते हैं वे रात का खाना नहीं खाते और सुबह का नाश्ता करने की बजाए खाली पेट बड़ी संख्या में लीची खा लेते हैं. इससे भी शरीर का ब्लड शुगर लेवल अचानक बहुत ज्यादा लो हो जाता है और बीमारी का खतरा रहता है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने माता-पिता को सलाह दी है कि वे बच्चों को खाली पेट लीची बिलकुल न खिलाएं.

Source : News Nation Bureau

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