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मगध यूनिवर्सिटी.( Photo Credit : News State Bihar Jharakhand)
बिहार में शिक्षा व्यवस्था किस कदर लचर हो चुकी है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि राज्य की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में 3 साल का ग्रेजुएशन 5 साल में नहीं हो पा रहा है. इन यूनिवर्सिटीज़ में एकेडमिक सेशन 1 या दो नहीं बल्कि 12 सालों से लेट चल रहा है. समय पर ना ही परिक्षा होती है और ना ही रिजल्ट आता है. जिसके चलते लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटका है. बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां छात्र पढ़ाई कराने से लेकर नौकरी तक के लिए सड़कों पर लाठी खाते हैं. बिहार का हाल ये है कि पहले रिजल्ट के लिए दौड़ो, फिर डिग्री के लिए दौड़ो और फिर नौकरी के लिए दौड़ो.
भगवान भरोसे बिहार की शिक्षा-व्यवस्था
प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे हैं. छात्रों का कहना है कि बिहार के कॉलेजों में 3 तीन साल की डिग्री 5- 6 साल में भी पूरी नहीं हो रही है. बिहार की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी मगध में पिछले 12 साल से रिजल्ट नहीं आने की वजह से सेशन लेट चल रहा है. साल 2010 से हीं जो शैक्षणिक सत्र की स्थिति खराब हुई है जो अभी तक नहीं सुधरी. जहां ग्रेजुएशन करने में 3 साल और पोस्ट ग्रेजुएशन करने में 2 साल का वक्त लगता है. वहीं, मगध यूनिवर्सिटी की लेटलतीफी के कारण छात्रों को अपना कोर्स पूरा करने में सालों का वक्त लग रहा है. मगध यूनिवर्सिटी के नाराज छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं.
यूनिवर्सिटी की लेटलतीफी
बिहार के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे लाखों छात्रों की यही कहानी है. कहा जाता है कि छात्रों पर प्रदेश और देश का भविष्य टिका होता है, लेकिन बिहार की हर यूनिवर्सिटी का यही हाल है. ये समस्या दशकों से चली आ रही है और बदस्तूर अब भी जारी है. इस समस्या की वजह से सूबे के कई विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट्स का कहना है कि वे अपने लिए आगे की योजना बना ही नहीं पाते. मुजफ्फरपुर के बाबा साहब भीम राव अंबेडकर यूनिवर्सिटी का भी यही हाल है. छात्रों का कहना है कि जब भी सेशन लेट की शिकायत यूनिवर्सिटी से करते हैं. वहीं, यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार का कहना है कि सेशन को सुधार की कोशिश की जा रही है. यूनिवर्सिटी से 100 एफिलिएटेड और 42 सरकारी कॉलेज जुड़े हैं. जल्द ही सेशन को सही कर लिया जाएगा.
हर यूनिवर्सिटी की यही कहानी
बिहार के हर यूनिवर्सिटी की यही कहानी है. पूर्णिया यूनिवर्सिटी अपने स्थापना काल से ही विवाद में रहा है. मधेपुरा के बीएनमंडल यूनिवर्सिटी से अलग कर पूर्णिया यूनिवर्सिटी बनाया गया था. सीमांचल के छात्रों को मधेपुरा जाकर यूनिवर्सिटी में काम करवाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था. जिसे लेकर लगातार उग्र आंदोलन किया गया. इसके बाद 18 मार्च 2018 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस यूनिवर्सिटी का उदघाटन कर सीमांचल के बच्चों को एक उम्मीद ओर आशा दिखाई दिया पर ये सिर्फ एक दिखावा ही रह गया. सरकारी और प्राइवेट कॉलेज मिलाकर इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत 33 कॉलेज आते है अगर बीएड कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ देते हैं तो इसकी संख्या 48 हो जाती है. सेशन कोरोना काल से ही लेट चल रहा है साथ ही जिला प्रशासन इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत पड़ने वाले कॉलेज को अधिकृत कर चुनाव कराने के लिए इस्तेमाल करता है. जिसके कारण छात्रों का भविष्य अधर मैं लटक गया है.
वहीं, यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक का कहना है कि लगभग 1 लाख छात्र अभी इस समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन आने वाले साल में इन समस्याओं से निपट लिया जाएगा. वहीं, प्रोफेसर और शिक्षक संघ का कहना है जब तक सरकार और जिला प्रशासन विश्विद्यालय को चुनाव को लेकर अधिग्रहण करती रहेगी तब इसका निदान निकल पाना मुश्किल है.
सब दुरुस्त कर देंगे : सीएम नीतीश
बिहार में सेशन लेट होने से छात्र ही परेशान है. छात्र सीएम नीतीश पर इससे नाराज दिखे. यूनिवर्सिटी की गिरती शिक्षा व्यवस्था पर सीएम ने कहा कि स्थिति ठीक नहीं है लेकिन, सब दुरुस्त कर देंगे. सीएम नीतीश कुमार ने माना कि यूनिवर्सिटी में सेशन लेट चल रहा है. मगर छात्रों को देने के लिए उनके पास आश्वासन से ज्यादा और कुछ नहीं था. सरकार भी मानती है कि ये दुखद स्थिति है, लेकिन विश्वविद्यालय की लापरवाही और कमजोरी के कारण छात्रों का भविष्य अंधकार मय नजर आ रहा है.
Source : News State Bihar Jharkhand