केले पर शोध करने के लिए कटिहार पहुंची वैज्ञानिकों की 3 सदस्यीय टीम

कटिहार जिले को एक दशक पूर्व देश में केलांचल के नाम से भी जाना जाता था, केले की उन्नत पैदावार करना किसानों का मुख्य खेती हुआ करता था.

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Vineeta Kumari
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केले पर शोध करने के लिए कटिहार पहुंची वैज्ञानिकों की 3 सदस्यीय टीम( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

कटिहार जिले को एक दशक पूर्व देश में केलांचल के नाम से भी जाना जाता था, केले की उन्नत पैदावार करना किसानों का मुख्य खेती हुआ करता था. केलांचल के नाम से कटिहार के अलावे भी सटे हुए कई जिले थे, जहां किसान अच्छे मुनाफे कमाकर देश और विदेशों में अपनी केले को बेचा करते थे, लेकिन एक ऐसी बीमारी केले के पौधे में लगी कि सभी किसानों के केले की फसल चौपट हो गई. किसानों को केले की खेती से रुख मोड़ना पड़ गया. बीमारी पनामा बिल्ट जिसे पीलिया या वैज्ञानिक नाम TR4 कहा जाता है, यह बीमारी फसल को होने ही नहीं देता है. पौधे समय से पूर्व खेतों में गलने लगता है और फल अपने पूर्ण स्वरूप को नहीं पा सकता है. ऐसे में फलका गांव के एक MBA किसान ने वैज्ञानिकों को इस बीमारी से निजात पाने और बीमारी पर शोध करने के लिए फ्री में अपनी जमीन दिया है, जिसपर देश और दुनिया के वैज्ञानिक 2 साल से शोध कर रहे हैं ताकि पनामा बिल्ट जैसे खतरनाक बीमारी से निजात मिल सके.

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भारत के शोध सेंटर NRCB और बेल्जियम के ITC के आपसी सहयोग वैज्ञानिकों की टोली जिसमें NRCB त्रिचि तमिलनाडु के महिला वैज्ञानिक डॉ. एस उमा, डॉ. थंगावेलु और ITC के डायरेक्टर यानी बनाना प्रोग्राम लीडर फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ निकोलस रौक्स कटिहार के फलका गांव पहुंचकर दो साल से चल रहे शोध का जायजा लिया है.  QR कोड के साथ खेत में दुनिया और देश के सैकड़ों तरह के अलग-अलग नस्ल को मोबाइल से स्कैन करके उसकी पहचान आसानी से किया जा सकता है और किस नस्ल में पनामा बिल्ट जैसे बीमारी से लड़ने की क्षमता या उस नस्ल में बीमारी का नहीं मिलना जाना जा सकता है.

इन वैज्ञानिकों के द्वारा कटिहार के फलका में सैकड़ों प्रकार के केले का पौधा, बेल्जियम के ITC (इंटरनेशनल ट्रांजिट सेंटर) में जमा दुनिया के 1682 वरायटी में से 112 वरायटी लगाया गया है. खेत में और 424 इंडियन वरायटी सभी पर रिसर्च चल रहा है. 

वैज्ञानिकों ने अबतक के शोध में दो ऐसे नस्ल का इजात कर लिया है, जिसमें पनामा बिल्ट यानी TR4 जैसे बीमारी इसमें नहीं पाया गया है. ऐसे में वैज्ञानिकों की मानें तो इस तरह के नस्ल की पैदावार कर आने वाले लगभग तीन वर्षों में बीमारी मुक्त केले की पैदावार को फिर से किसानों के द्वारा उपजाया जा सकता है और तब इलाके के साथ-साथ कटिहार का नाम फिर से देश और दुनिया में केलांचल के नाम से जाना और पहचाना जा सकता है.

Source : News Nation Bureau

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