Assam CM ने की UCC की बात, बहु-विवाह महिलाओं के मौलिक अधिकारों में हनन
भाजपा के कुछ राज्यों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लागू करने की जोरदार वकालत की है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस कानून को लागू करने के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में सरमा ने कई बार कहा कि यूसीसी समय की जरूरत है. उन्होंने पहले टिप्पणी की थी, देश में कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसके पति की तीन पत्नियां हों. आप किसी भी मुस्लिम महिला से पूछ सकते हैं. कोई नहीं कहेगा कि उसके पति को तीन महिलाओं से शादी करनी चाहिए.
गुवाहाटी:
भाजपा के कुछ राज्यों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लागू करने की जोरदार वकालत की है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस कानून को लागू करने के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में सरमा ने कई बार कहा कि यूसीसी समय की जरूरत है. उन्होंने पहले टिप्पणी की थी, देश में कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसके पति की तीन पत्नियां हों. आप किसी भी मुस्लिम महिला से पूछ सकते हैं. कोई नहीं कहेगा कि उसके पति को तीन महिलाओं से शादी करनी चाहिए.
सरमा ने जोर देकर कहा कि एक मुस्लिम पुरुष का एक से अधिक महिलाओं से विवाह करना उनकी समस्या नहीं है, बल्कि मुस्लिम माताओं और बहनों की समस्या है. उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम महिलाओं और माताओं को समाज में सम्मान देना है तो तीन तलाक कानून के बाद यूसीसी को लागू करना होगा. उन्होंने दावा किया, मैं एक हिंदू हूं और मेरी बहन और बेटी के लिए यूसीसी है. अगर मेरी बेटी के लिए यूसीसी है, तो मुस्लिम बेटियों को भी यह सुरक्षा दी जानी चाहिए.
मुख्यमंत्री के अनुसार मुस्लिम महिलाओं के हित में कानून को लागू किया जाना चाहिए, अन्यथा बहुविवाह जारी रहेगा. यदि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू नहीं होता है, तो मुस्लिम समाज में बहुविवाह प्रथा कभी नहीं रुकेगी. एक पुरुष तीन-चार बार शादी करेगा, एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन होगा. हाल के दिल्ली एमसीडी चुनावों और गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए प्रचार करते हुए सरमा ने बार-बार देश में यूसीसी को लागू करने पर जोर दिया.
यूसीसी का मतलब है कि सभी लोग, चाहे वह किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक स्तर पर होंगे. भारत के संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में इसका उल्लेख है. अनुच्छेद 44 कहता है, राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा. हालांकि राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी) कानूनन बाध्यकारी नहीं हैं. भारत में संविधान लागू होने के बाद से इसके तहत सूचीबद्ध कई प्रावधानों को कानून में बदल दिया गया है.
गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के कार्यकारी सदस्य हाफिज राशिद अहमद चौधरी ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, डीपीएसपी को पहले लागू किया गया था, जब नए कानून को लागू करने के लिए हंगामा हुआ था. लेकिन यूसीसी के साथ यह स्थिति नहीं है. अब जो कुछ भी कहा जा रहा है, उसका राजनीतिक मकसद है. इसलिए मैं इस कदम का विरोध करता हूं.
उन्होंने कहा, अगर मुस्लिम महिलाओं की भलाई के लिए यूसीसी लाया जा रहा है, तो उन्हें कानून के रूप में बनाने की मांग कहां से की गई? चौधरी ने चेतावनी दी कि यूसीसी को लागू करने से समाज में नए विवाद आएंगे और एक संवेदनशील राज्य होने के नाते असम को विरोध का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि उन्होंने तीन तलाक को खत्म करने का समर्थन किया और कहा कि अगर सरकार को कोई जरूरत महसूस होती है तो वह मौजूदा कानून में कुछ संशोधन कर सकती है.
असम में कई मुस्लिम लोग चौधरी के बयान से सहमत रहे और उन्होंने भी यही आवाज उठाई है. ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोकेट्रिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के नेता रफीकुल इस्लाम ने कहा, भारत विभिन्न जातियों और समुदायों का देश है. विभिन्न धर्मों के अलग-अलग कानून हैं. यदि समान नागरिक संहिता लागू की जाती है तो यह देश के लिए समस्याएं पैदा करेगा.
उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ पार्टी यूसीसी की आड़ में मुसलमानों को निशाना बनाना चाहती है. लेकिन सिलचर से भाजपा के लोकसभा सांसद डॉ. राजदीप रॉय ने इस तर्क से असहमति जताई और सुझाव दिया कि यूसीसी को केवल राजनीति और धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, भारत में पिछले 100 वर्षों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है. बेशक, मुस्लिम आबादी हिंदुओं की तुलना में बहुत अधिक बढ़ी है. लेकिन यह समुदाय और धर्म के बारे में नहीं है.
यदि हम इसी अनुपात में बढ़ते रहे तो आने वाले वर्षों में देश में पीने के पानी, भोजन आदि संसाधनों की कमी होगी. रॉय ने उल्लेख किया कि संसाधनों पर समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए देश में यूसीसी को अधिनियमित किया जाना चाहिए.
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