मोदी सरकार का प्लान है कि रामेश्वरम के बाद आखिरी छोर धनुष्कोडी तक भारतीय रेल फिर से पहुंचेगी. 1964 तक रामसेतु तक पहले ट्रेन जाती थी लेकिन साल 1964 में सुनामी आई तो यह जगह श्मशान बन गई. तब से धनुष्कोडी भुतहा कस्बे के रूप में सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है. राज्य सरकार का सहयोग मिला तो काम भी शुरू किया जा सकेगा.
दरअसल, धनुष्कोडी रामेश्वरम से 20 किलोमीटर दूर है. कभी धनुष्कोडी जहां राम सेतु है, वहां तक ट्रेन जाती थी. 1964 की 22 दिसंबर की रात सुनामी ने सब कुछ खत्म कर दिया था. उस समय हंसता-खेलता शहर खंडहर में तब्दील हो गया. आज भी उसके निशान जिंदा हैं. इस सुनामी में 1800 लोगों की जान गई थी.
धनुष्कोडी में लगभग 1800 से अधिक लोगों की गई थी जान
न्यूज नेशन धनुष्कोडी के ठीक उस जगह पहुंचा जहां कभी छुक-छुक रेल लोगों की जिन्दगी का सहारा थी. 1964 की विनाशकारी चक्रवात में धनुष्कोडी में लगभग 1800 से अधिक लोगों की जान गई थी. यह चक्रवात 22 और 23 दिसंबर 1964 की रात को आया था और इसकी गति 280 किमी/घंटा तक पहुंच गई थी.
समुद्र की लहरों में बह गई थी ट्रेन
इस आपदा में धनुष्कोडी-पम्बन ट्रेन (जिसे पम्बन धनुष्कोडी पैसेंजर कहा जाता था) समुद्र की लहरों में बह गई, जिसमें 115 से अधिक यात्री और रेलवे कर्मचारी मारे गए. पूरे धनुष्कोडी गांव को इस चक्रवात ने तबाह कर दिया और इसे भारतीय सरकार ने बाद में 'अब्सेंटी लैंड' यानी रहने लायक नहीं घोषित किया. यह त्रासदी आज भी धनुष्कोडी के खंडहरों और स्थानीय लोगों की यादों में जीवित है. धनुष्कोडी से 6 किलोमीटर आगे अरिचलमुनाई जगह भी है जहां तक सड़क मार्ग बना हुआ है. वहां तक टूरिस्ट घूमने तो जाते हैं लेकिन उसके लिए विशेष परमिशन लेनी होती है. यदि ट्रेन चालू हो जाती है तो वहां तक पहुंच भी आसान हो जाएगी.