रियो ओलंपिक 2016 में भारतिय खिलाड़ियों के पदर्शन ने हर भारतीय का सर गर्व से उंचा कर दिया। | रियो ओलम्पिक में तिरंगे के मान-सम्मान को बनाए रखने की बात हो या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का लोहा मनवाने का जज्बा, इस साल भारतीय खिलाड़ियों ने विश्व खेल जगत में भारत का मस्तक ऊंचा रखा। आइए इस साल के अंत में नजर डालते हैं कि भारत के किस खिलाड़ी का प्रदर्शन कैसा रहा।
पीवी सिंधू
रियो ओलंपिक में भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू ने सिल्वर मेडल जीत इतिहास रच दिया। भले ही सिंधू फइनल मुकाबले में स्पेनिश खिलाड़ी कारोलिना से हार गई हों लेकिन बावजूद इसके सिल्वर मेडल जीतने वाली सिंधु पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बन गई हैं। इस मैच में भारत की पीवी सिंधू और स्पेन की विश्व नंबर-1 खिलाड़ी केरोलीना मारिन आमने-सामने थीं। करोड़ों भारतीय फैंस की नजरें सिंधू पर टिकी थीं। मैच बेहद रोमांचक हुआ लेकिन अंत में एक घंटा 23 मिनट तक चले मैच में मारिन ने ये मुकाबला 19-21, 21-12, 21-15 से अपने नाम किया। पीवी सिंधू हारीं जरूर लेकिन सिल्वर मेडल जीतकर वो ओलंपिक में ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं।
साक्षी मलिक
रियो ओलंपिक में कुश्ती में भारतीय खेल प्रेमियों को नरसिंह यादव और योगेश्वर दत्त जैसे नामी पहलवानों से उम्मीदें थीं। लेकिन, भारत को रियो ओलंपिक का पहला पदक दिलाया हरियाणा की साक्षी मलिक ने। साक्षी ने 58 किलो ग्राम भार वर्ग के मुकाबले में कांस्य पदक जीता। साक्षी के लिए ये पदक आसान नहीं था। साक्षी को रेपचेज के पहले राउंड में किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा से 0-5 से हार का सामना करना पड़ा, दूसरे राउंड की शुरुआत में पिछड़ने के बाद साक्षी ने जबरदस्त वापसी की और 8-5 से मैच जीतकर इतिहास रच दिया। साक्षी को खेलों में उनके योगदान के लिए इस साल ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ पुरस्कार से नवाजा गया।
दीपा मलिक
पैरालंपियन दीपा मलिक ने इस साल रियो पैरालंपिक में देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा किया। दीपा गोला फेंक एफ-53 प्रतिस्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पैरालंपियन बनीं। दीपा मलिक कमर से नीचे का हिस्सा लकवा से ग्रस्त हैं और ट्यूमर की वजह से दीपा के 31 ऑपरेशन हो चुके थे।
दीपा कर्माकर
खेलों में पूर्वोत्तर भारत के खिलाड़ियों का अहम योगदान माना जाता है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए त्रिपुरा की दीपा कर्माकर भी इस साल की खोज रहीं। तेईस वर्षीय दीपा ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट हैं। उन्होंने औसत 15.066 अंक जुटाये, जिससे वह स्विट्जरलैंड की कांस्य पदक विजेता गुईलिया स्टेनग्रुबर (15.216 अंक) से महज 0.15 अंक से चूक गईं। प्रोदुनोवा जैसे खतरनाक लेवेल, जिसे करने का जोखिम रूस और अमेरिका के जिम्नास्ट भी नहीं उठाते, को अंजाम देकर कर्माकर ने करोड़ों देशवासियों का दिल जीता। अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में कई पदक जीतने के बावजूद एक खिलाड़ी वो लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाता जो दीपा ने रियो में चौथे स्थान पर रहकर अर्जित की।
मरियप्पन थांगावेलू
रियो पैरालंपिक खेलों के ऊंची कूद स्पर्धा में मरियप्पन थांगावेलू ने गोल्ड पर कब्जा जमाते हुए इतिहास रच दिया तो वहीं, वरुण भाटी ने इसी प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत को दोहरी खुशी दी। इस प्रतिस्पर्धा का रजत पदक अमेरिका के सैम ग्रेवी को मिला। थांगावेलू ने 1.89 मीटर की जंप लगाते हुए सोना जीता, जबकि भाटी ने 1.86 मीटर की जंप लगाते हुए कांस्य अपने नाम किया। मरियप्पन थंगावेलु ने रियो पेरालिंपिक में हाई जंप में गोल्ड मेडल जीत इतिहास रच दिया। वे भारत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट हैं जिन्होंने पेरालिंपिक्स में हाई जंप में गोल्ड जीता। उन्होंने 1.89 मीटर की जंप लगाई। (रियो परालम्पिक खेलों में टी42 ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीतने वाले मरियाप्पन थंगावेलू (बाएं) और कांस्य पदक विजेता वरुण भाटी।
Source : Sankalp Thakur