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Tokyaparalympic: दिव्यांग नहीं हैं भाविना (bhavina), इन्होंने कही चौंकाने वाली बात

टोक्यो पैरालंपिक (Tokyaparalympic) में भारत को पहला मेडल दिलाने वालीं गुजरात की भाविना पटेल (bhavian Patel) के बारे में एक महत्वपूर्ण बात कही गई है, जिसे सुनकर चौंक जाएंगे. 

Updated on: 29 Aug 2021, 01:59 PM

highlights

  • भाविना ने जीता टेबल टेेनिस में सिल्वर मेडल
  • एक साल की उम्र में खराब हो गए थे पैर
  • बेहद गरीब परिवार से हैं भाविना

नई दिल्ली :

टोक्यो पैरालंपिक (Tokyaparalympic) में भारत को पहला मेडल दिलाने वालीं गुजरात की भाविना पटेल (bhavian Patel) की तारीफों में पुल बांधे जा रहे हैं. भविना व्हीलचेयर पर चलती हैं लेकिन एक व्यक्ति ने कहा है कि वह दिव्यांग नहीं हैं. यह किसने कहा आपको बताते हैं लेकिन इससे पहले आपको भाविना (Bhavina) की शानदार उपलब्धि के बारे में बता दें. 34 वर्षीय भाविना ने टोक्यो पैरालंपिक में रविवार को भारत को पहला मेडल दिलाया. उन्होंने पैरा टेबल टेनिस में महिला वर्ग में रजत पदक जीता. वह पैरालंपिक में टेबल टेनिस में पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं. यही नहीं, आज तक पैरालंपिक में पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं. बताया जाता है कि भाविना पटेल (bhavian Patel) महज एक साल की थीं तो बीमारी से उनके पैर खराब हो गए. गरीबी के कारण उनका इलाज नहीं हो सका. वह जीवन भर के लिए चलने में असमर्थ हो गईं. 

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वहीं, उनके सिल्वर मेडल जीतने के बाद एक व्यक्ति ने कहा है कि भाविना दिव्यांग नहीं हैं. ये बात कहने वाले उनके पिता हंसमुखभाई पटेल हैं. उन्होंने कहा है कि मीडिया के लिए भाविना दिव्यांग होंगी लेकिन हमारे लिए तो वह दिव्य हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भाविना गुजरात के एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी थीं. एक साल की उम्र में उनके पैर खराब हो गए लेकिन इसके बाद भी छोटी से उम्र में उन्होंने सामान्य बच्चों के स्कूल में ही पढ़ाई की. उनके माता-पिता उन्हें स्कूल लाते व ले जाते थे. बड़े होकर उन्होंने टीचर बनने का सपना पाला था. उन्होंने पढ़ाई पूरी करके टीचर बनने के लिए इंटरव्यू भी दिया लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें यह नौकरी नहीं मिल सकी. 

इसके बाद उनके पिता को वर्ष 2004 में ब्लाइंड पिपुल एसोसिएशन के बारे में पता चला. उनके पिता ने उस इंस्टीट्यूट में आईटीआई (ITI) के लिए भविना का एडमिशन करा दिया. वहां तेजलबेन लखिया की देखरेख में उन्होंने यह कोर्स पूरा किया. उन्होंने ही भाविना को ग्रेजुएशन करने के लिए प्रेरित किया और भाविना ने गुजरात विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया. ग्रेजुएशन के समय लविना स्पोर्टस में बहुत सक्रिय रहती थीं. वह दिव्यांगों के तमाम खेलों में बढ़चढ़कर भाग लेती थीं. 

भाविना धीरे-धीरे टेबल टेनिस को सिर्फ शौक नहीं, बल्कि प्रोफेशन के तौर पर खेलने लगीं. भाविना ने ऐसी प्रतिभा दिखाई कि वह बेंगलुरु में राष्ट्रीय स्तर की पैरा टेबल टेनिस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल ले आईं. भाविना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे पहले जार्डन में हुई प्रतियोगिता में भाग लिया था. यहां से भाविना को खाली हाथ लौटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वर्ष 2011 में थाइलैंड ओपन में उन्होंने रजत पदक लाकर अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मेडल जीता. अब पैरालंपिक में रजत पदक जीतकर पूरे भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. उनकी सफलता के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल है.