250 रुपये के जूते पहनकर 20 हजार के जूते पहनने वाले को हराया था, 17 साल बाद मिली पहचान
देवेंद्र इस समय किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. टोक्यो पैरालंपिक में जैवलिन थ्रो यानी भाला फेंक में रजत पदक जीतने वाले देवेंद्र 2004 के एथेंस और 2016 के रियो पैरालंपिक में भी स्वर्ण पदक जीत चुके हैं.
highlights
- बचपन में हादसे में देवेंद्र को गंवाना पड़ा हाथ
- राजस्थान के चुरु में हुआ था जन्म
- 40 साल की उम्र में भी और पदक की भूख
नई दिल्ली :
अगर किसी आयोजन में लोग 20 हजार के महंगे जूते पहने हों और एक व्यक्ति 250 रुपये के जूते पहनकर पहुंच जाए तो अक्सर वह व्यक्ति इंफिरिटी कांप्लेक्स में ही टेंशन में आ जाता है. कई बार आयोजन छोड़कर चला जाता है लेकिन भारत का एक वीर जवान 250 रुपये के जूते पहनकर पैरालंपिक खेलों में पहुंचा था और 20 से 30 हजार के जूते पहनने वाले चीनी और यूरोपीय खिलाड़ियों को मात देकर स्वर्ण पदक जीता था. कमाल की बात अन्य खिलाड़ियों को साथ फिजियो और ट्रेनर थे जबकि भारतीय खिलाड़ी को पता ही नहीं था कि फिजियो होता क्या है. बात हो रही है भारत के रिकॉर्डधारी पैरालंपियन देवेंद्र झाझरिया की. देवेंद्र इस समय किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. टोक्यो पैरालंपिक में जैवलिन थ्रो यानी भाला फेंक में रजत पदक जीतने वाले देवेंद्र 2004 के एथेंस और 2016 के रियो पैरालंपिक में भी स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. कमाल की बात दो पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले वह पहले भारतीय पैरालंपियन हैं.
इसे भी पढ़ेंः टांगें खराब, गरीबी और फिर कोरोना से थमने लगी सांसें,फिर भी मेडल जीतकर दिखाया
देवेंद्र का जन्म राजस्थान के चुरु जिले में 1981 में हुआ था. वह बचपन में एकदम स्वस्थ थे. आठ साल की उम्र में उन्होंने पेड़ पर चढ़कर लाइव इलेक्ट्रिक केबल को छुआ. इसके झटके से उनका हाथ झुलस गया और बायां हाथ काटना पड़ा. उन्होंने एक हाथ से ही खेलना शुरू किया और स्कूल के एक आयोजन में खेल कोच आरडी शर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. इसके बाद उनके कदम आगे बढ़ते गए. साल 2004 में एथेंस पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई तो किया लेकिन तब जाने के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती थी. देवेंद्र ने एक इंटरव्यू में बताया कि 'मेरे पिता ने लोन लेकर मेरे जाने की व्यवस्था की. वहां अन्य खिलाड़ियों के पास महंगे उपकरण, महंगे स्पोर्ट्स शूज और फिजिथैरेपिस्ट थे. वहां जाकर मुझे पता चला कि फिजियोथैरेपिस्ट क्या होता है. मेरे पास सपोर्टिंग स्टाफ जैसा भी कुछ नहीं था. मैंने तो पहुंचा ही लोन के पैसों से था तो ट्रेनर की फीस कहां से लाता. इन स्थितियों में भी मैंने हार नहीं मानी और स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद साल 2016 में रियो ओलंपिक में फिर से जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता. इस बार टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन थ्रो में रजत पदक जीता तो इनामों की बरसात हो गई. इस बार इतना मीडिया कवरेज मिला है कि हर कोई पहचानने लगा है.' देवेंद्र झाझरिया ने इस बार अपना पदक अपने दिवंगत पिता को समर्पित किया है. कमाल की बात देवेंद्र 40 साल के हो गए हैं लेकिन अभी रिटायरमेंट की नहीं सोच रहे बल्कि और पदक जीतने के लिए प्रैक्टिस कर रहे हैं. वाकई देवेंद्र का यह जूझारुपन हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
April Panchak Date 2024: अप्रैल में कब से कब तक लगेगा पंचक, जानें क्या करें क्या ना करें
-
Ramadan 2024: क्यों नहीं निकलते हैं कुछ लोग रमज़ान के आखिरी 10 दिनों में मस्जिद से बाहर, जानें
-
Surya Grahan 2024: क्या भारत में दिखेगा सूर्य ग्रहण, जानें कब लगेगा अगला ग्रहण
-
Rang Panchami 2024: आज या कल कब है रंग पंचमी, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसका महत्व जानिए