Tokyo Paralympics 2021: टांगें खराब, गरीबी और फिर कोरोना से थमने लगी सांसें, फिर भी मेडल जीतकर दिखाया
कहते हैं कि मन में अगर दृढ़निश्चय हो तो कोई भी मंजिल पाना असंभव नहीं. ये साबित किया है पैरालंपिक में मेडल जीतने वाले हरियाणा के सिंहराज ने.
highlights
- प्रैक्टिस के पैसों के लिए पत्नी ने गहने गिरवी रखे
- पैरालंपिक से पहले कोरोना का भी दंश झेलना पड़ा
- पैरालंपिक में जीतकर दिखाए दो मेडल
नई दिल्ली :
Singhraj Adhana, Tokyo Paralympics, Four Crore, Silver Medal, Bronze Medal, Sports, Tokyo Paralympics 2021, Tokyo Paralympics Newsअक्सर लोग बदकिस्मती, सुविधाएं न होने का रोना रोते हैं लेकिन कुछ लोग इन्हीं परिस्थितियों में साबित कर देते हैं कि कुछ भी असंभव नहीं. टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics 2021) में सिल्वर मेडल जीतने वाले सिंहराज अधाना की कहानी कुछ ऐसी ही है. हरियाणा के फरीदाबाद जिले के निवासी सिंहराज ने पोलियो के कारण बचपन में ही अपने दोनों पैर खो दिए थे. जिंदगी जैसे-तैसे चल रही थी. आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. उनके बेटे और भतीजे शूटिंग और स्विमिंग सीखते थे, जिनके साथ सिंहराज भी कभी-कभी चले जाते थे. यहां पर उन्होंने भी शौकिया शूटिंग की कोशिश की. वहां पर बेटे के शूटिंग कोच ने सिंहराज की निशानेबाजी देखी तो पैराशूटर बनने की सलाह दी. सिंहराज पहले तो हिचकिचाए पर पत्नी ने प्रेरित किया तो 2017 में पैराशूटर बनने का सफर शुरू कर दिया. सिंहराज ने शूटिंग की शुरुआत करते ही सफलता पानी शुरू कर दी. साल 2017 में ही उन्होंने केरल के तिरुवंतपुरम में राष्ट्रीय पैराशूटर के तौर पर प्रतिभाग किया. इसके बाद उन्हें यूएई यानी संयुक्त अरब अमीरात में पहली बार विदेश में प्रदर्शन का मौका मिला. यहां पर उनसे पदक की बहुत उम्मीदें थीं लेकिन वह असफल रहे. इस पर राष्ट्रीय कोच जेपी नौटियाल उनके पास आए और बोले आप भी औरों की तरह विदेश में सिर्फ खाना खाने आए हैं. ये बाद सिंहराज के दिल को लग गई. कोच ने साथ में ये भी कहा कि मेहनत घोड़ों की तरह करो, गधे की तरह नहीं. बस ये बात सिंहराज के लिए लाइफ लाइन बन गई.
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सिंहराज को लगा कि मेडल जीतने के लिए ज्यादा प्रैक्टिस चाहिए और उसके लिेए ज्यादा पैसे. उन्होंने एक स्कूल में पार्ट टाइम गार्ड की नौकरी की. इन पैसों को अपनी प्रैक्टिस में लगाया. सिंहराज ने बेहतर प्रैक्टिस के लिए बेहतर कोच की तलाश की. ऐसे में उनकी मुलाकात ओम प्रकाश चौधरी से हुई. उन्होंने सिंहराज को करणी सिंह शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस करवाना शुरू किया. वहां पर प्रैक्टिस के छह महीने के अंदर ही सिंहराज ने टोक्यो पैरालंपिक के लिेए क्वालीफाई कर लिया लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई. बड़े शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस का खर्चा भी बड़ा था. यहां पर एक महीने प्रैक्टिस का कुल खर्च 1.5 लाख रुपये आता था. सिंहराज परेशान थे कि आगे की प्रैक्टिस कैसे होगी. यहां पर फिर उनकी पत्नी ने कदम बढ़ाया. उन्होंने अपने गहने गिरवी रख दिए और करीब 2.5 लाख रुपये की व्यवस्था की. साथ ही सिंहराज के साथ शूटिंग रेंज में मदद के लिेए जाना शुरू किया, जिससे उन्हें अलग से कोई हेल्पर नहीं लेना पड़े और हेल्पर का खर्च बच सके. सिंहराज बताते हैं कि पत्नी के त्याग ने ही मुझे बेहतर करने के लिेए प्रेरित किया. इसी प्रेरणा से मैंने शानदार प्रदर्शन किया और 2018 में एशियन खेलों में कांस्य पदक जीता. सिंहराज को इनाम के तौर पर हरियाणा सरकार ने 75 लाख रुपये दिए. अन्य प्रतियोगिताओं में भी शानदार प्रदर्शन किया तो साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी आफ इंडिया) ने भी मदद करनी शुरू की. लेकिन फिर एक समस्या आकर खड़ी हो गई और वो थी कोविड की पहली लहर. खेल की सारी गतिविधियां बंद हो गईं तो एशियन गेम्स के पैसों से सिंहराज ने अपने घर के अंदर शूटिंग रेंज बनवा लिया. घर पर ही प्रैक्टिस शुरू की लेकिन मुश्किलें और उनका हौंसला जैसे आंख-मिचौली खेल रहे हों. कोविड की दूसरी लहर में वह कोरोना पॉजीटिव हो गए. अस्पताल में भर्ती थे तो सांसें रुकने लगी. हालत ये हो गई की सामने लोगों को पहचानना मुश्किल हो गया. मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गई लेकिन दिल से आवाज निकलती रही की मुझे मेडल जीतना है. सिंहराज ठीक हुए तो कुछ ही समय बाद पैरालंपिक था लेकिन वह उन्होंने हौंसला नहीं हारा. जापान पहुंचे और 50 मीटर मिक्सड पिस्टल में सिल्वर और 10 मीटर पिस्टल में कांस्य पदक जीतकर दिखा दिया कि परिस्थितियों के आगे कभी हार नहीं माननी चाहिए. पैरालंपिक में उनकी सफलता के बाद हरियाणा सरकार ने उन्हें चार करोड़ रुपये इनाम देने की घोषणा की है.
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