logo-image

इन दो खिलाड़ियों ने अपने दम पर बदल दिया भारत में कुश्ती का नजरिया

इस जीत के बाद बजरंग ने साफ कर दिया था कि अब उनकी नजरें इंडोनेशिया के जकार्ता में होने वाले एशियाई खेलों में अपनी सफलता को दोहराने पर हैं.

Updated on: 28 Dec 2018, 03:47 PM

नई दिल्ली:

कुश्ती एक ऐसा खेल हैं, जहां भारत ने समय के साथ अपनी पकड़ को मजबूत किया है. विश्व पटल पर ईरान, रूस, कोरिया, उजबेकिस्तान, बेलारूस जैसे कुश्ती के दिग्गजों देशों के साथ भारत का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. साल-2018 में भारत की यह ख्याति और मजबूत हुई है और इसका सबसे बड़ा श्रेय पुरुष पहलवान बजरंग पूनिया और महिला पहलवान विनेश फोगाट को जाता है.

दोनों ने इस साल इतिहास रचे और बताया कि आने वाले दिनों में भारतीय कुश्ती में यह दोनों अपनी-अपनी श्रेणी में नेतृत्व करने को तैयार हैं.

ऐसा नहीं है कि इन दोनों ने ही भारतीय कुश्ती का परचम लहराया हो. इन दोनों के अलावा कई युवा खिलाड़ियों ने भी अपनी छाप छोड़ी.

बजरंग ने जो सफलता हासिल की वो हालांकि इन सभी से एक कदम आगे रही. बजरंग ने इस साल अपने स्वार्णिम सफर की शुरुआत आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों से की. जहां ओलम्कि पदक विजेता योगेश्वर के शिष्य बजरंग ने 65 किलोग्राम भारवर्ग में सोने का तमगा हासिल किया.

इस जीत के बाद बजरंग ने साफ कर दिया था कि अब उनकी नजरें इंडोनेशिया के जकार्ता में होने वाले एशियाई खेलों में अपनी सफलता को दोहराने पर हैं. पूरे देश को भी बजरंग से यही उम्मीद थी. हरियाणा के झज्जर के रहने वाले बजरंग ने उम्मीदों को टूटने नहीं दिया और एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक अपने नाम कर विश्व पटल पर अपने नाम का डंका बजा दिया. यह बजरंग का एशियाई खेलों में दूसरा पदक था. इससे पहले वह इंचियोन-2014 एशियाई खेलों में रजत पदक जीतकर लौटे थे.

बजरंग को हालांकि अभी इस साल की सबसे बड़ी परीक्षा से गुजरना बाकी था. वो परीक्षा थी विश्व चैम्पियनशिप. विश्व चैम्पियनशिप में बु़डापेस्ट में बजरंग के स्वार्णिम सफर रूक गया. फाइनल में बजरंग को हार मिली और इस दिग्गज को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा.

इस सफलता का बजरंग को ईनाम भी मिला. वह विश्व रैकिंग में अपने भारवर्ग में नंबर-1 बने. वह इस मुकाम को हासिल करने वाले पहले भारतीय थे.

इस साल बजरंग अपने प्रदर्शन के अलावा एक और वजह से चर्चा में रहे. भारतीय सरकार द्वारा दिए जाने वाले खेल रत्न की सूची में से बजरंग का नाम नदारद था. बजरंग को इस बात का अफसोस हुआ और उन्होंने इस मुद्दे को खेल मंत्री तक पहुंचाया, लेकिन वह सफल नहीं हो सके.

पुरुष कुश्ती में कुछ और नाम उभरे, जिनमें सबसे प्रमुख राहुल अवारे का था जिन्होंने इसी साल राष्ट्रमंडल खेलों में 57 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक जीता था. सुशील कुमार (74 किलोग्राम) और सुमित मलिक (125 किलोग्राम) भी राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे.

पुरुष कुश्ती में एक विवाद ने इस साल भी पीछा नहीं छोड़ा. यह विवाद दो बार के ओलम्पिक पदक विजेता सुशील और प्रवीण राणा के बीच का विवाद था. भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) का एशियाई खेलों और विश्व चैम्पियनशिप के लिए आयोजित ट्रायल्स में सुशील को प्राथमिकता देना प्रवीण को रास नहीं आया और इस बात को लेकर कई बार उनके समर्थकों ने हंगाम भी किया.

महिला कुश्ती में विनेश अपनी बहनों गीता फोगाट और बबीता फोगाट से आगे निकल गईं. बजरंग की तरह ही विनेश का स्वार्णिम सफर राष्ट्रमंडल खेलों से शुरु हुआ. विनेश ने 50 किलोग्राम भारवर्ग में सोने का तमगा हासिल किया. विनेश का यह राष्ट्रमंडल खेलों में दूसरा स्वर्ण पदक था. वह ग्लास्को-2014 में राष्ट्रमंडल खेलों में सोना जीत चुकी थीं.

इंचियोन में 2014 में आयोजित एशियाई खेलों में विनेश ने कांस्य जीता था, लेकिन इस बार हरियाणा की यह पहलवान एशियाई खेलों में अपने पदक का रंग बदलने में कामयाब रही. विनेश ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल कर अपने आप को विश्व की दिग्गज पहलवानों की टोली में खड़ा कर दिया.

विनेश के अलावा एशियाई खेलों में एक और महिला पहलवान ने अपना जलवा दिखाया. वह थीं दिव्या कांकराण. भारत केसरी दंगल में गीता को पटखनी देने वाली दिव्या ने 68 किलोग्राम भारवर्ग में एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता था. दिव्या ने इसी भारवर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों में भी कांस्य पदक अपने नाम किया था.

विनेश के साथ ही दिव्या ने महिला कुश्ती में भारत के लिए उम्मीद जगाई है.

खिलाड़ियों ने इस साल जो ऐतिहासिक सफलता हासिल की उसका ईनाम डब्ल्यूएफआई ने भी खिलाड़ियों को बखूबी दिया. इसी साल से डब्ल्यूएफआई खिलाड़ियों के लिए ग्रेड सिस्टम के तहत वार्षिक अनुबंध लेकर आया.

इसके तहत महासंघ अनुबंध में शामिल खिलाड़ियों को एक साल में एक तय रकम देगा. डब्ल्यूएफआई भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अलावा इस देश का दूसरा बोर्ड है जो खिलाड़ियों के लिए वार्षिक करार की सौगात लेकर आया है.

इसी के साथ डब्ल्यूएफआई भारत में अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) और भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) के अंदर आने वाली पहली महासंघ जिसने खिलाड़ियों को वार्षिक अनुबंध का तोहफा दिया है.