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IPL 2025: आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) का देश ही नहीं विदेश में भी दर्शकों को बेसब्री से इंतजार रहता है.दुनिया की सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीगों में से एक आईपीएल के लिए हमेशा दर्शकों में एक्साइटमेंट रहती है. दुनिया भर के एक से बढ़ कर एक खिलाड़ी इसमें भाग लेते हैं. क्रिकेट को लेकर भारत में लोगों में अलग ही दीवानगी देखने के मिलती है. कई माता-पिता का सपना होता है कि उनका लाल भी IPL में खेलें. करीना कपूर के बड़े बेटे तैमूर अली खान ने छोटी सी उम्र से ही क्रिकेट सीखना शुरू कर दिया है. ऐसे में कई पेरेंट्स के मन में ये सवाल जरूर होता है कि क्रिकेट सीखने की सही उम्र क्या है? या क्रिकेटर बनने के लिए क्या करना पड़ता है? आइए जानते हैं कम उम्र में स्पोर्ट्स सिखाने के फायदे.
भारत में क्रिकेट को हमेशा एक सफल करियर के तौर पर देखा जाता है. इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के प्रति लोगों की दीवानगी देखते ही बनती है. इसने खिलाड़ियों को ऐसा मंच दिया है, जिसमें पैसे के साथ शोहरत भी है. अगर भी चाहते हैं कि आपका बच्चा भी IPL या फिर इंडियन टीम में क्रिकेट खेले तो उसके लिए सबसे पहले आपको उसका इंट्रेस्ट समझते हुए उसे सही उम्र में एकेडमी भेजना होगा.
एक्सपर्ट के मुताबिक इसके लिए कोई उम्र सीमा नहीं है. आप जितनी जल्दी बच्चे को क्रिकेट सिखाना शुरू करेंगे उसके लिए उतना ही अच्छा होगा. इससे उसे पेशेवर क्रिकेटर बनने के लिए कौशल को विकसित करने के लिए उतना ही अधिक समय मिलेगा.कई विशेषज्ञ और पेशेवर सलाह देते हैं कि बच्चे को 4 साल की उम्र से ही क्रिकेट सीखने की ट्रेनिंग देना शुरू कर सकते हैं. वहीं 8 से 10 साल की उम्र ट्रेनिंग के लिए बेस्ट है. बच्चा क्रिकेट में इंट्रेस्टेड है तो जितना जल्दी हो सके उसे ट्रेनिंग दिलाना शुरू कर दें.
कम उम्र में बच्चों को स्पोर्ट्स सिखाने से वो फिजिकल एक्टिविट रहते हैं. इससे उनकी हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती हैं. इसलिए करीना कपूर की तरह हर मां-बाप को अपने बच्चे को कम उम्र से ही स्पोर्ट्स खेलने के लिए भेजना चाहिए.
जो बच्चे कम उम्र से ही क्रिकेट या कोई भी स्पोर्ट्स सिखाना शुरू कर देते हैं वो हमेशा स्ट्रेस से फ्री रहते हैं. क्योंकि स्पोर्ट्स चिंता को दूर करने का काम करता है. फिजिकल एक्टिविटी से शरीर में एंडोर्फिन रिलीज होता है. जिससे एंग्जायटी एवं डिप्रेशन नहीं होता है.
कम उम्र से ही जो बच्चे स्पोर्ट्स सीखना शुरू कर देते हैं उनमें दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा अनुशासन देखने को मिलता है. वो न केवल नियमों का पालन करना सीखते हैं, बल्कि कोच की आज्ञा का पालन करना, संयम रखना भी उनकी आदत में शुमार हो जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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