Sachin Tendulkar : क्रिकेट के किस्से, कैसे बने सचिन सलामी बल्लेबाज
क्या आप जानते हैं कि सचिन मिडिल ऑर्डर बैट्स मैन से सलामी बल्लेबाज कैसे बने? ये किस्सा बहुत इंटरेस्टिंग और अहम है क्योंकि सलामी बल्लेबाजी ही वो पोजिशन थी, जिसने सचिन तेंदुलकर को वनडे क्रिकेट में रिकॉर्ड्स के शिखर तक पहुंचा दिया...
highlights
- सचिन तेंदुलकर ने की थी मध्य क्रम से शुरुआत
- साल 1994 से सचिन को मिला ओपनिंग का मौका
- नवजोत सिंह सिद्धू के अनफिट होने की वजह से मिला था अवसर
नई दिल्ली:
How Sachin Tendulkar Became opening batsman in ODI Cricket: पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, कोई खेल अगर हमारे देश को जोड़ता है तो वो है क्रिकेट. क्रिकेट का आगाज भले ही इंग्लैंड में हुआ हो लेकिन इस खेल ने अपनी शोहरत का सबसे बड़ा मुकाम भारत में हासिल किया. भारत के करोड़ों लोगों पर अपना असर रखने वाले इस खेल और इसके खिलड़ियों के कई ऐसे किस्से हैं जो या तो कभी बताए नहीं गए या लोग अब उन्हें भूल चुके हैं. क्रिकेट को अगर हमारे देश में धर्म की तरह माना जाता है कि उसके गॉड हैं सचिन तेंदुलकर. 24 साल का शानदार करियर, हजारों रन, 100 शतक. ये ऐसे आंकड़े हैं जिनसे कोई भी क्रिकेटर रश्क कर सकता है.
मिडिल ऑर्डर बैट्समैन से ओपनर बनने का सफर
लेकिन क्या आप जानते हैं कि सचिन मिडिल ऑर्डर बैट्स मैन से सलामी बल्लेबाज कैसे बने? ये किस्सा बहुत इंटरेस्टिंग और अहम है क्योंकि सलामी बल्लेबाजी ही वो पोजिशन थी, जिसने सचिन तेंदुलकर को वनडे क्रिकेट में रिकॉर्ड्स के शिखर तक पहुंचा दिया. दरअसल साल 1989 में पाकिस्तान में अपने इंटरनेशनल करियर का आगाज करने वाले सचिन बेसिकली मिडिल ऑर्डर बैट्समैन थे और चौथे नंबर, पांचवें नंबर या छठे नंबर पर बल्लेबाजी किया करते थे. ये वो दौर था जब टेस्ट मैचों की तरह वनडे क्रिकेट में भी सलामी बल्लेबाजों का काम शुरुआती 15 ओवर्स में संभलकर खेलते हुए नई बॉल की चमक को कम करने का होता था. ताकि बाद में थोड़ी तेज बल्लेबाजी की जा सके. दुनिया की लगभग सारी टीमें ऐसा ही करती थीं. आज भले ही वनडे क्रिकेट में 300, 325 का स्कोर जीत की गारंटी नहीं होता हो, लेकिन तब 270 के आस पास के स्कोर को काफी मजबूत माना जाता था. हालांकि साल 1992 के वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड की टीम के सलामी बल्लेबाज मार्क ग्रेटबैच ने शुरुआत से ही ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करने का एक्सपेरिमेंट किया था जो कामयाब भी रहा था. और न्यूजीलैंड की टीम उस वर्ल्डकप के सेमीफाइनल तक पहुंची थी.
मार्क ग्रैटबैच को देखकर समझी ओपनिंग की अहमियत
सचिन का वो पहला वर्ल्ड कप था और मार्क ग्रैटबैच को देखकर वो ये बात समझ गए कि ताबड़तोड़ सलामी बल्लेबाजी कितनी अहम है. इसका एक और फायदा ये भी था कि चूंकि 50 ओवर के मैच में सलामी बल्लेबाज को ही सबसे ज्यादा बॉल खेलने का मौका मिलता है. यानी जितनी ज्यादा बॉल खेलने का मौका मिलेगा, उतने ही ज्यादा रन बनाने के चांस होंगे. सचिन ये चांस लेना चाहते थे और मौका आया 27 मार्च 1994 को. टीम इंडिया न्यूजीलैंड में वनडे सीरीज खेल रही थी. भारत पहला वनडे हार चुका था. उस वक्त अजय जडेजा और नवजोत सिंह सिद्धू भारत के लिए ओपनिंग किया करते थे. ऑकलैंड में दूसरे वनडे से ऐन पहले सिद्धू की गर्दन में जकड़न हो गई और वो अनफिट हो गए. अब कप्तान अजहरुद्दीन और मैनेजर अजीत वाडेकर के सामने सवाल था कि जडेजा के साथ ओपनिंग किससे कराई जाए. सचिन को शायद इसी मौके की तलाश थी. उन्होंने खुद आगे आकर अपने कप्तान और मैनेजर से कहा वो ओपनिंग करना चाहते थे, उन्हें बस एक मौका चाहिए.
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...जब भारत को मिला ओपनर
अजहर मान गए. इस मैच में न्यूजीलैंड की टीम पहले खेलते हुए महज 142 रन पर ऑल आउट हो गई. और ऑकलैंड के तेज विकेट पर बतौर सलामी बल्लेबाज खेलने उतरे सचिन के बल्ले ने कमाल कर दिया. सचिन ने 49 गेंदों पर 82 रन ठोक दिए, जिनमें दो छक्के और 15 चौके शामिल थे. भारत 24 वें ओवर में ही ये मैच जीत गया. नवजोत सिंह सिद्धू अगले मैच में फिट हो गए लेकिन सलामी बल्लेबाज तो अब सचिन बन चुके थे. तीसरे वनडे में उन्होंने 75 गेंदों पर 63 रन बनाए और चौथे वनडे में 26 गेंदों पर 40 रन. भारतीय टीम को अब नया सलामी बल्लेबाज मिल चुका था. एक ऐसा बल्लेबाज, जो पारी की शुरुआत करते वक्त दब कर नहीं बल्कि गेंदबाज पर हावी होकर खेलता था. इसी साल यानी 1994 में ही सचिन ने कोलंबो में खेले गए सिंगर कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की पारी का आगाज करते हुए 110 रन बनाए. ये सचिन के वनडे करियर का पहला शतक था. इसके बाद सचिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.. सलामी बल्लेबाज बनने से पहले सचिन ने 69 वनडे मैचों में न तो कोई शतक लगाया था और उनका एवरेज भी बस 31रन का आसपास का था. लेकिन जब साल 2012 में उन्होंने वनडे क्रिकेट को अलविदा कहा तो उनके नाम के आगे 49 शतक थे और लगभग 45 रन प्रति पारी का औसत था. सचिन तेंदुलकर के सलामी बल्लेबाज बनने की घटना ने दुनिया में वनडे क्रिकेट को बदल दिया. अब पहले 15 ओवर्स में टुक-टुक करके खेलने की रणनीति घाटे का सौदा बन गई थी.
सचिन के फॉर्मूले पर श्रीलंका बना चैंपियन
साल 1996 का वर्ल्डकप भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में खेला गया. श्रीलंका ने सनथ जयसूर्या और रमेश कालूवितर्णा की सलामी जोड़ी को शुरूआत से ही ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करने का जिम्मा सौंपा. ये रणनीति कामयाब रही और श्रीलंका की टीम पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बनी. यानी सचिन का फॉर्मूला अब हिट हो चुका था. बतौर सलामी बल्लेबाज सचिन को कई पार्टनर्स मिले. सौरव गांगुली और वीरेंद्र सहवाग के साथ तो उनकी जोड़ी ने कई रिकॉर्ड्स भी बनाए.
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