अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने विदेशी खिलाड़ियों के देश भर में विभिन्न प्रतियोगिताओं में खेलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है जिनको लेकर उसका मानना है कि यह स्थानीय खिलाड़ियों के विकास में बाधा है।
एआईएफएफ ने यह फैसला शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में अपने मुख्यालय में कार्यकारी समिति की बैठक में लिया।
बाद में आईएनएस से बात करते हुए एआईएफएफ के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने कहा कि अभी तक एआईएफएफ हर टीम में तीन विदेशी और एक एशियाई क्षेत्र के खिलाड़ी को खेलने की अनुमति देता था।
वर्षों तक महासंघ ने देखा कि अधिकतर क्लबों की विदेशी खिलाड़ियों को दो प्रमुख स्थानों पर लेने की आदत है
- सेंट्रल डिफेंडर और स्ट्राइकर। यहाँ तक कि इंडियन सुपर लीग के बड़े क्लब और आई लीग भी इस पैटर्न का अनुसरण करते हैं। एआईएफएफ का महसूस करना है कि यह एक प्रमुख कारण है कि इन स्थानों पर अच्छे भारतीय फुटबॉलरों की कमी है।
चौबे ने कहा, इसलिए हमने फैसला किया है कि हम पूरे भारत में राज्य लीगों में किसी विदेशी खिलाड़ी को अनुमति नहीं देंगे और दूसरी डिवीजन आई लीग में भी, जो आईएसएल और आई लीग के बाद भारतीय फुटबाल का तीसरा चरण है।
उन्होंने कहा, इसका कारण है कि ये वे प्रतियोगिताएं हैं जहाँ भारतीय खिलाड़ी अपने शुरूआती वर्षों में तैयार होते हैं। यदि हम विदेशियों को अनुमति देंगे जो शारीरिक रूप से ज्यादा श्रेष्ठ हैं वे इन जगहों पर कब्जा कर लेंगे जिससे स्थानीय फुटबॉलरों के लिए मौके कम हो जाएंगे।
चौबे ने कहा,यह नियम आईएसएल या आई लीग पर लागू नहीं है क्योंकि ये प्रतियोगी लीग हैं लेकिन अन्य लीगों में यदि हमारे खिलाड़ियों को शुरूआती वर्षों में उचित मार्गदर्शन मिले जब वे अपने राज्यों और आयु वर्ग टूर्नामेंटों में खेलते हैं तो वे आईएसएल और आई लीग में विदेशी खिलाड़ियों के खिलाफ अपने स्थानों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के योग्य रहेंगे।
38 वर्षीय सुनील छेत्री को छोड़कर राष्ट्रीय परि²श्य में ऐसा कोई भारतीय खिलाड़ी नहीं है जो इस करिश्माई स्ट्राइकर की क्षमता का मुकाबला कर सके। लेकिन राष्ट्रीय कोच इगोर स्टिमैक ने हाल में कहा था कि सुनील का यह आखिरी सत्र हो सकता है जिसके बाद बड़ा सवाल यह है कि उनकी जगह कौन लेगा।
इस सन्दर्भ में एआईएफएफ का राज्य लीगों में विदेशी खिलाड़ियों को प्रतिबन्धित करने का फैसला लम्बे समय में भारतीय फुटबॉल के लिए फायदेमंद हो सकता है।
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Source : IANS