ओलंपिक रजत पदक विजेता उर्फ खरगोश का दृढ़ निश्चय
ओलंपिक रजत पदक विजेता उर्फ खरगोश का दृढ़ निश्चय
नई दिल्ली:
ऐसे समय जब छत्रसाल स्टेडियम के एथलीट्स/कोच/स्टाफ सदस्य अपनी छवि को लेकर चिंतित थे और सुशील कुमार पर हत्या के आरोप में पुलिस की पूछताछ चल रही थी, उस वक्त सिर्फ एक पहलवान था जिसका लक्ष्य एकदम साफ था।मुझे याद है कि जब सुशील गिरफ्तारी से बच रहे थे और भाग रहे थे, तब अखाड़े में क्या हो रहा था, यह जानने के लिए मैंने रवि कुमार दहिया को फोन किया था।
उस वक्त एथलीट्स बाहर से आने वाले फोन कॉल को उठाने से बचते थे लेकिन रवि ने मेरे कॉल का सम्मान करते हुए उठाया और मुझसे कुछ देर बात की। पूरी बातचीत के दौरान उन्होंने अभ्यास, ट्रेनिंग कार्यक्रम, खान-पान और विदेशी दौरों की बात की लेकिन हत्या के मामले के बारे में कुछ नहीं कहा।
हालांकि, मैं यह पूछने से खुद को नहीं रोक सका, सुशील का मामला हुआ, अब कैसा माहौल है।
रवि ने बहुत शांति से जवाब दिया, भाईसाहब पदक जीतना है, इसलिए दिमाग को कहीं और ले जाना नहीं चाहता।
मुझे एक टूक जवाब मिल गया था और मैंने उन्हें ओलंपिक के लिए बधाई दी।
मैं रवि को 2010 से जानता हूं। वह कुछ ही शब्दों के व्यक्ति हैं। आप उनसे कितना भी लंबा सवाल पूछ लें लेकिन वह बस हां या ना में जवाब देंगे। उनसे और बातें निकलवाने के लिए काफी संयम की जरूरत होती है। हालांकि, भारतीय कुश्ती का चमकता सितारा मैट पर अलग व्यक्त्तिव का है।
छत्रसाल स्टेडियम मेरे घर से कुछ ही दूर है। मैं वहां हर वीकेंड पर रियल दंगल देखने जाता था। जब मैंने पत्रकारिता को चुना तो मैंने 2006 में खेल, विशेषकर कुश्ती को कवर करना शुरू किया। इसके बाद मैं आधिकारिक रूप से सुशील कुमार से मिला। सुशील ने फिर 2008 में ओलंपिक में कांस्य पदक जीता, उस साल जब रवि दहिया ने अकादमी ज्वाइन की।
रवि की उम्र उस वक्त 11 साल की थी। दो साल के बाद मैंने रवि को पहली बार ट्रेनिंग करते देखा। महाबली सत्पाल युवा पहलवानों को निर्देश दे रहे थे।
वर्षो बितते चले गए और मैंने उन्हें शांति से कोचों को सुनते हुए देखा। महाबली सत्पाल, सुशील और जयवीर सिंह उन्हें कुश्ती के गुर सिखाते। उम्र के साथ-साथ उनका भरोसा बढ़ा और उन्होंने कुश्ती के कई दावं पेच सीखे।
रवि उस वक्त चर्चा में आए जब उन्होंने ब्राजील के सालवाडोर डी बाहिया में 2015 जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में 55 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीता।
2019 में अपने विश्व चैंपियनशिप के डेब्यू में रवि ने यूरोपियन चैंपियन आरसेन हारुत्यूंयान को राउंड-16 में हराया और 2017 विश्व चैंपियन यूकी ताकाहाशी को क्वार्टर फाइनल में मात दी और 2020 ओलंपिक के लिए छह उपलब्ध कोटा में से एक को हासिल किया।
रवि को गत चैंपियन और स्वर्ण पदक विजेता जेयूर उगुएव के हाथों सेमीफाइनल में हार का सामना कर कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
रवि अपने प्रद्विंद्वी के खिलाफ काफी आक्रमक और मानसिक रूप से मजबूत रहते हैं जिसके कारण सीनियरों ने ओलंपिक के लिए उन्हें पदक का मजबूत दावेदार माना था। जब भी मैं सुशील से पूछता कि आपको क्या लगता है इस बार ओलंपिक पदक कौन जीतेगा, तो उनका पहला नाम रवि होते। सुशील कहते थे, यह जीतेगा स्वर्ण।
जब पिछले साल योग गुरु रामदेव छत्रसाल स्टेडियम पहुंचने तो मैं भी वहां मौजूद था जब सुशील ने रवि का परिचय उनसे कराया। उन्होंने कहा था, गुरूजी मिलिए ओलंपिक के हमारे स्वर्ण पदक विजेता से।
सुशील को रवि पर भरोसा था और हरियाणा का यह लड़का उनके भरोसे पर खरा उतरा। रवि को भले ही रजत पदक से संतोष करना पड़ा हो लेकिन उन्होंने कई लोगों के दिलों को जीता है।
उनके करीबी दोस्त दीपक उन्हें खरगोश बुलाते थे। आईएएनएस से बात करते हुए दीपक ने कहा कि उन्होंने रवि के जैसा सामान्य व्यक्तिव का इंसान अपने जीवन में नहीं देखा।
दीपक ने कहा, ना पार्टी, ना नए कपड़े, कुछ नहीं सिर्फ ट्रेनिंग। मैं उन्हें खरगोश बुलाता था।
छत्रसाल स्टेडियम में अभी जश्न का माहौल है और हर एक पहलवान इस पल को जी रहा है।
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